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आजादी के करीब आठ दशक बाद किस हाल में है पूर्वोत्तर?

प्रभाकर मणि तिवारी
१५ अगस्त २०२५

उग्रवाद और राजनीतिक अस्थिरता से जूझता पूर्वोत्तर भारत प्राकृतिक सौंदर्य और धनी विरासत के बावजूद विकास की दौड़ में पिछड़ा दिखाई देता है.

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2025 में मिजोरम भी रेलवे नेटवर्क में शामिल हो गया है
असम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा के बाद अब मिजोरम भी रेलवे नेटवर्क में शामिल हो गया है. अब मणिपुर की राजधानी इंफाल को इस साल के आखिर तक और नागालैंड की राजधानी कोहिमा को 2026 तक ब्रॉड गेज से जोड़ने पर काम चल रहा हैतस्वीर: North-east frontier Railway

दुर्गम भौगोलिक स्थिति और सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता के अलावा दशकों लंबा उग्रवाद और सत्ता में रहने वाली पार्टियों में इच्छाशक्ति के अभाव के कारण आजादी के आठ दशकों बाद भी पूर्वोत्तर राज्य राष्ट्र की मुख्यधारा में उतनी गहराई से शामिल नहीं दिखते.

यह कहना सही नहीं होगा कि आजादी के बाद पूर्वोत्तर इलाके में कोई बदलाव नहीं आया है. इलाके में देर से और धीमी गति से ही सही विकास की प्रक्रिया शुरू हुई है. इस वजह से खासकर केंद्र की लुक ईस्ट नीति के तहत सीमावर्ती इलाको में कनेक्टिविटी मजबूत करने करने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई है. इसी कवायद के तहत पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों की राजधानियों को रेलवे नेटवर्क पर लाने की कोशिश हो रही है. बीते महीने ही सुदूर मिजोरम तक पहली बार ट्रेन पहुंची.

इन आठ दशकों में एक चीज जो ज्यादा नहीं बदली है वह है देश के बाकी हिस्सों से इन इलाको में जाकर रहने और रोजी-रोटी कमाने वाले लोगों के प्रति कुछ समुदायों का सौतेला नजरिया. मेघालय में बाहरी लोगों के किलाप अक्सर आंदोलन होते रहे हैं. मणिपुर में भी हिंदीभाषियों के खिलाफ अक्सर हिंसा की खबरें आती हैं. यही स्थिति नागालैंड में है. असम में बांग्लाभाषी मुसलमान सरकार के निशाने पर हैं.

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उग्रवाद में गिरावट लेकिन निवेश अब भी कम

आजादी से पहले इस इलाके को नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एरिया यानी नेफा कहा जाता था. देश की आजादी के बाद इसे असम का नाम दिया गया. उसके बाद प्रशासनिक सहूलियतों और स्थानीय आबादी की मांग को ध्यान में रखते हुए यह धीरे-धीरे सात छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया. लेकिन राज्यों के छोटे होने के साथ समस्याएं कई गुनी बढ़ती रहीं. असम से सबसे पहले 1 दिसंबर, 1963 को नागालैंड अलग हुआ. उसके बाद वर्ष 1972 में मणिपुर, त्रिपुरा व मेघालय का गठन हुआ. बाद में मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश भी अलग राज्य बने. 30 दिसंबर, 1971 को संसद में पारित दो कानूनों--पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम और पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम के जरिए इलाके को पूर्वोत्तर नाम मिला था.

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इलाके में ऐसा कोई राज्य नहीं है जो बीते आठ दशक के दौरान किसी न किसी दौर में अलगाववाद और उग्रवाद से प्रभावित नहीं रहा हो. लेकिन फिलहाल एकाध राज्यों को छोड़ दें तो यह समस्या पहले के मुकाबले काफी कम हुई है. हालांकि कुछ राज्यों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम अब भी लागू है. लेकिन बीते कुछ साल के दौरान जमीनी स्थिति काफी बेहतर हुई है.

वैसे, इलाके की छवि की वजह से अब भी निवेश बहुत कम हुआ है. रोजगार में आजीविका के ज्यादातर संसाधन सरकारी ही हैं. चाय उद्योग को छोड़ दें तो निजी पूंजी निवेश अब तक नहीं हो सका है. इसी वजह से रोजगार के लिए पलायन मूल समस्या बनी हुई है. अरुणाचल प्रदेश में स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद हजारों मेगावाट की पनबिजली परियोजनाओं का काम चल रहा है. इससे हजारों लोगों को रोजगार मिला है. अब राजनीतिक स्थिरता के कारण विकास परियोजनाएं शुरू हुई हैं. लेकिन विभिन्न वजहों से इसकी गति अब भी धीमी है. 

जनजातियों के बीच संतुलन की चुनौती

अपनी दुर्गम भौगोलिक स्थिति के कारण कई इलाके अब भी विकास की छाया से दूर हैं. असम और त्रिपुरा के कुछ इलाकों को छोड़ दें तो बाकी राज्य पर्वतीय इलाको में बसे हैं. बावजूद इसके अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम के ज्यादातर दुर्गम इलाकों तक सड़कें पहुंच गई हैं या इनका काम चल रहा है. इस दौरान ज्यादातर इलाकों तक मोबाइल नेटवर्क और बिजली भी पहुंच गई है.

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अंतरराष्ट्रीय सीमा से घिरे होने की वजह सीमा पार की घटनाओं से इलाके का प्रभावित होना लाजिमी है. बांग्लादेश और म्यांमार में होने वाली उथल-पुथल का असर असम, मणिपुर, मिजोरम और मेघालय पर पड़ता है. असम और मेघालय बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ की समस्या से जूझ रहे हैं तो मिजोरम सीमा पार से बड़ी तादाद में आने वाले शरणार्थियों से. दूसरी ओर, अरुणाचल प्रदेश का सीमावर्ती इलाका चीन की बढ़ती सक्रियता के कारण अक्सर सुर्खियों में रहता है.

फिलहाल मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश को उग्रवाद के लिहाज अपेक्षाकृत शांत माना जा सकता है. लेकिन मिजोरम भी लालदेंगा और फिजो की अगुवाई में दो दशक तक उग्रवाद का दंश झेल चुका है. मणिपुर और नागालैंड जैसे राज्यों के लोग तो अब भी खुद को मन से भारतीय नहीं मानते. म्यांमार से सटा मणिपुर बीते तीन साल से जातीय हिंसा की चपेट में है. इसी तरह नागालैंड में करीब 28 साल से जारी शांति प्रक्रिया अब तक किसी मुकाम पर नहीं पहुंच सकी है. असम में उग्रवाद की समस्या लगभग खत्म हो गई है. लेकिन अब बीते कुछ साल से यह मूल बनाम बाहरी निवासियों के विवाद से जूझ रहा है. इसी तरह मिजोरम पड़ोसी मणिपुर की जातीय हिंसा और म्यांमार की घरेलू स्थिति के कारण बड़े पैमाने पर शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहा है.

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पर्यटन की अपार संभावना

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर होने और धनी साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत की वजह से पूर्वोत्तर में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. मेघालय को पूरब का स्कॉटलैंड कहा जाता है तो अरुणाचल प्रदेश के कई इलाकों की तुलना स्विट्जरलैंड से की जाती है. लेकिन बावजूद इसके मेघालय के कुछ हिस्सो के अलावा असम के काजीरंगा नेशनल पार्क और अरुणाचल के खासकर तवांग इलाके को छोड़ कर बाहरी पर्यटकों की संख्या अंगुली पर गिनी जा सकती है. अब तक कभी पर्यटन को बढ़ावा देने की कोई टोस कोशिश ही नहीं की गई थी. अब मेघालय के अलावा अरुणाचल और मिजोरम सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है. लेकिन बाकी राज्यों में न तो ऐसी कोई कोशिश हो रही है और न ही जमीनी स्थिति इसके लिए अनुकूल है.

सिक्किम की चांगू लेक का इलाका
पर्यटन के लिहाज से बेहतरीन है सिक्किम की चांगू लेक का इलाकातस्वीर: Zakir Hossain/Pacific Press/IMAGO

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इलाके के चौतरफा विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे. विकास की धीमी गति के लिए सरकार की इच्छाशक्ति ही जिम्मेदार है. उनके मुताबिक, पूर्वोत्तर के तमाम राज्यों में अलग-अलग हजारों जनजातियां हैं. उनके बीच अक्सर टकराव होता रहा है. उनके बीच बेहतर तालमेल कायम करना भी एक बड़ी चुनौती है.

राजनीतिक विश्लेषक देवेन भट्टाचार्य डीडब्ल्यू से कहते हैं, "आजादी के बाद ज्यादातर दलों और नेताओं की दिलचस्पी अपनी कुर्सी बचाने में रही है. इसके अलावा उग्रवाद उनके लिए एक ऐसा रक्षा कवच साबित होता रहा है जिसके पीछे तमाम कमियां छिपती रही हैं. लेकिन अब उग्रवाद के धीरे-धीरे कमजोर पड़ने के कारण यह कमियां नजर आने लगी हैं."

सामाजिक कार्यकर्ता सुमति बसुमतारी डीडब्ल्यू से कहती हैं,"इलाके को विकास के लिए जमीनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए उसकी छवि सुधारने के उपाय किए जाने चाहिए. इलाके में पर्यटन की काफी संभावनाएं हैं. जरूरत है उसके समुचित दोहन की. इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार को साथ मिल कर काम करना होगा. लेकिन उसके साथ ही इलाके के लोगों में गहरे रची-बसी अलगाववाद और उपेक्षा की भावना को दूर करने की दिशा में भी ठोस पहल की जाना चाहिए."