सेंसर की वजह से किस तरह बदल जाती हैं हॉलीवुड फिल्में
२५ जुलाई २०२५भारत में फिल्मों के शौकीन यह जानकर बेहद नाराज हुए कि उनके देश के सेंसर बोर्ड ने ‘सुपरमैन' फिल्म के 33 सेकंड वाले किसिंग सीन में काट-छांट करके उसे छोटा कर दिया. इस फिल्म को भारत में 13+ की रेटिंग दी गई थी. इसका मतलब कि यह फिल्म सिर्फ 13 वर्ष की आयु से ऊपर के लोग ही देख सकते हैं. इसके बावजूद, भारत के केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को उस किसिंग सीन को हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसे उन्होंने ‘अत्यधिक कामुक' बताया था.
जब सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952 के तहत सीबीएफसी का गठन किया गया था, तब इसका आधिकारिक काम फिल्मों को उम्र के हिसाब से श्रेणियों के लिए प्रमाणित करना था. हालांकि, इस बोर्ड की पहचान फिल्मों को काटने-छांटने यानी सेंसर करने वाले बोर्ड के तौर पर बन गई है.
हॉलीवुड की बड़ी फिल्मों में हाल ही में किए गए बदलावों में एक उदाहरण फिल्म ‘एफ1: द मूवी' से जुड़ा हुआ है. इस फिल्म में मिडिल फिंगर वाला जो इमोजी था उसे बदलकर मुट्ठी वाला इमोजी कर दिया गया.
मार्वल की ‘थंडरबोल्ट्स' और ‘मिशन: इम्पॉसिबल - द फाइनल रेकनिंग' में गालियों को म्यूट कर दिया गया था. निर्देशक क्रिस्टोफर नोलन की 2023 में रिलीज हुई फिल्म ‘ओपेनहाइमर' में एक सीन था जिसमें अभिनेत्री फ्लोरेंस प्यू बिना कपड़ों के दिखाई देती हैं. भारत में यह सीन दिखाने से पहले सेंसर बोर्ड ने उस सीन में कंप्यूटर की मदद से उन्हें कपड़े पहना दिए.
भारतीय ऑनलाइन पत्रिका ‘होमग्रोन' में लेखिका दिशा बिजोलिया इस मामले पर तर्क देती हैं, "अगर कोई सीन सिर्फ समझदार या वयस्क दर्शकों के लिए है, तो उसे बस उसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए. हालांकि, भारतीय सेंसर बोर्ड उस सीन को उचित श्रेणी में रखने के बजाय, बार-बार फिल्म की कहानी में हस्तक्षेप करता है और भावनाओं के बहाव को तोड़ता है. इससे कहानी का असर कम हो जाता है और फिल्म का असली मकसद खो जाता है.”
फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की जगह उसमें काट-छांट
फिल्मों पर प्रतिबंध लगाना ही नहीं, बल्कि उनका एक अलग संस्करण रिलीज करना भी सेंसरशिप का एक जाना-पहचाना तरीका है. यह सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि कई दूसरे देशों में भी आम बात है.
सत्तावादी सरकारें जानती हैं कि अगर किसी फिल्म पर प्रतिबंध भी लगा दिया जाए, तो वह चोरी-छिपे या गैरकानूनी तरीके से लोगों तक पहुंच सकती है. इसलिए, वे खुद ही उस फिल्म का ‘अपने मन-मुताबिक' या सेंसर किया हुआ संस्करण रिलीज कर देती हैं, ताकि लोग वही देखें जो सरकारें चाहती हैं.
क्या बॉलीवुड के महिला किरदारों की तुलना हॉलीवुड से हो सकती है
काफी पहले, जब एआई से तस्वीरें बनाना सामान्य बात नहीं थी, तब ईरान ने 2010 में ही अपने सेंसर अधिकारियों को नई डिजिटल तकनीक से लैस कर दिया था. इस तकनीक की मदद से, वे उन डायलॉग और तस्वीरों को बदल सकते थे जो इस्लामी नियमों के मुताबिक सही नहीं मानी जाती थीं।
इस तरीके का जिक्र ‘द अटलांटिक' की 2012 की एक रिपोर्ट में किया गया है. इसमें यह भी दिखाया गया है कि असली सीन को ईरानी संस्करण में कैसे बदला गया. महिलाओं को या तो फ्रेम से पूरी तरह हटा दिया गया या उनके गले के निचले हिस्से को ढकने के लिए वहां बड़ा फूलदान रख दिया गया. यहां तक कि 2006 में रिलीज हुई मोटरस्पोर्ट्स कॉमेडी ‘टैलाडेगा नाइट्स: द बैलाड ऑफ रिकी बॉबी' में विल फेरेल के कमर के नीचे के हिस्से को एक दीवार के पीछे छिपा दिया गया.
समलैंगिक सितारों के निजी जीवन को नजरअंदाज करना
कई देशों में समलैंगिकता पर प्रतिबंध है. 2018 में रिलीज हुई फिल्म ‘बोहेमियन रैप्सोडी' में फ्रेडी मर्करी की समलैंगिकता से जुड़े दृश्यों को मिस्र सहित कई देशों में हटा दिया गया था. ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस पर मिस्र की दोहरी मानसिकता की आलोचना की थी.
उसने कहा कि एक ओर मिस्र ने फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाले अभिनेता रामी मालेक के ऑस्कर जीतने की खुलकर तारीफ की, जिनके माता-पिता कॉप्टिक मिस्री हैं. वहीं दूसरी ओर, उसी देश में रामी मालेक को फिल्म के बारे में सार्वजनिक रूप से बोलने तक की इजाजत नहीं दी गई.
रूस में, 2019 में रिलीज हुई एल्टन जॉन की बायोपिक ‘रॉकेटमैन' से लगभग पांच मिनट का सीन हटा दिया गया था. मुख्य रूप से वे सीन हटाए गए जिनमें पुरुषों के बीच किसिंग, सेक्स और ओरल सेक्स दिखाया गया था. हालांकि, यह सेंसरशिप सीधे तौर पर सरकार ने नहीं लगाई थी, बल्कि रूसी डिस्ट्रीब्यूटर ने खुद ही पहले से सीन काट दिए, ताकि 2013 के ‘समलैंगिक-विरोधी' कानून का पालन किया जा सके जिसके तहत एलजीबीटीक्यू+ संस्कृति के प्रचार पर रोक लगाई गई है.
ड्रग्स ठीक नहीं है, लेकिन न्यूड स्ट्रिपर ठीक है!
2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से कई बड़े हॉलीवुड स्टूडियो ने वहां अपनी फिल्में रिलीज करना बंद कर दिया है. फिर भी, कुछ विदेशी फिल्में अब भी रूस के सिनेमाघरों या स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर दिखाई देती हैं.
हाल ही में ‘अनोरा' (2024) नाम की अवॉर्ड विनिंग अमेरिकी फिल्म का बदला हुआ वर्जन रूस में दिखाया गया. रूसी भाषा की स्वतंत्र न्यूज वेबसाइट ‘मेदुजा' के मुताबिक, सेंसर बोर्ड ने फिल्म के कुछ सीन को जूम-इन करके उन हिस्सों को हटा दिया जिनमें किरदारों को ड्रग्स लेते हुए दिखाया गया था. वहीं दूसरी ओर, फिल्म में स्ट्रिपर का किरदार निभा रहीं माइकी मैडिसन के न्यूड सीन वैसे के वैसे ही छोड़ दिए गए. उनमें कोई बदलाव नहीं किया गया.
तुर्की में सिगरेट और शराब के दृश्यों को धुंधला करना
‘अनोरा' जैसी फिल्म तुर्की टेलीविजन पर कभी नहीं दिखाई जाएगी. राष्ट्रपति एर्दोआन की रूढ़िवादी पार्टी एकेपी की सरकार ने लगभग 95 फीसदी मीडिया को अपनी रूढ़िवादी नीतियों के मुताबिक ढाल दिया है.
टीवी चैनल या अन्य प्रसारक आम तौर पर सेक्स सीन और एलजीबीटीक्यू+ किरदारों को दिखाने से बचते हैं. ये ऐसे ऐतिहासिक विषय हैं जिन्हें ‘तुर्की विरोधी सोच' को बढ़ावा देने वाला माना जाता है और इन्हें लेकर विवाद हो सकता है.
टीवी पर सिगरेट और शराब वाले दृश्य को भी धुंधला कर दिया जाता है. कुछ चैनल इन चीजों को छुपाने के लिए रचनात्मक तरीके अपनाते हैं.
इस बीच, कुछ हॉलीवुड स्टूडियो ने बैन और सेंसरशिप से बचने के लिए खुद ही फिल्म का संशोधित वर्जन रिलीज करना शुरू कर दिया है. सोनी पिक्चर्स ने ‘ब्लेड रनर 2049' फिल्म का एक बदला हुआ वर्जन तुर्की और दूसरे गैर-पश्चिमी देशों के लिए जारी किया, जिसमें नग्नता वाले दृश्यों को हटा दिया गया या क्रॉप कर दिया गया है. फिल्म समीक्षक बुराक गोराल ने सबसे पहले इस पर ध्यान दिलाया.
तुर्की के फिल्म क्रिटिक्स एसोसिएशन (एसआईवाईएडी) ने इस सेंसरशिप की निंदा करते हुए एक खुला पत्र जारी किया और कहा कि ऐसे काट-छांट ‘तुर्की के सिने प्रेमियों का अपमान है.'
चीन के प्रतिबंधित, लेकिन आकर्षक बाजार तक पहुंच बढ़ाने की कोशिश
चीन फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने और उन्हें छोटा करने के लिए भी जाना जाता है. आधिकारिक सेंसरशिप नियमों के तहत ‘अंधविश्वास या पंथों के प्रचार' पर रोक है. इसी वजह से 2016 की फिल्म ‘घोस्टबस्टर्स' को वहां रिलीज करने की अनुमति नहीं मिली. भले ही, उसका नाम बदलकर ‘सुपर पावर डेयर डाई टीम' कर दिया गया था. हैरानी की बात यह रही कि डिज्नी की फिल्म ‘कोको' को एक साल बाद रिलीज करने की अनुमति मिल गई. जबकि, यह फिल्म पूरी तरह मैक्सिको के 'डे ऑफ द डेड' जैसे अंधविश्वास पर आधारित है.
चीन के सेंसर बोर्ड ने जिन प्रमुख फिल्मों में बदलाव किए हैं उनमें 2012 की जेम्स बॉन्ड की फिल्म ‘स्काईफॉल' शामिल है. इस फिल्म में एक सीन था जिसमें चीनी सुरक्षा गार्ड को मारा जाता है. इस सीन को पूरी तरह हटा दिया गया, क्योंकि इससे यह संदेश जा रहा था कि चीन विदेशी जासूसों से अपनी जमीन की रक्षा नहीं कर पा रहा है. इसके अलावा, कुछ ‘विवादास्पद' दृश्यों में स्क्रीन पर जो बोला गया था और सबटाइटल में जो अनुवाद दिखाया गया, दोनों अलग-अलग थे, यानी दर्शकों को असल बात नहीं दिखाई गई.
जेम्स कैमरून की ‘टाइटैनिक 3डी' (2012) की उस मशहूर पोर्ट्रेट सीन को ठोड़ी तक क्रॉप कर दिया गया जिसमें केट विंसलेट न्यूड पोज देती हैं, ताकि उनकी न्यूडिटी ना दिखाई दे. इस सेंसर को लेकर चीन के एक अधिकारी ने अजीब तर्क दिया, "3डी इफेक्ट्स इतने जीवंत हैं कि हमें डर है कि दर्शक उन्हें छूने के लिए अपने हाथ बढ़ा सकते हैं. इससे पास बैठे लोगों का फिल्म देखने का अनुभव खराब हो सकता है.”
2022 में, जब ‘मिनियंस: द राइज ऑफ ग्रू' फिल्म का अंत सेंसर बोर्ड ने बदल दिया, तो सोशल मीडिया पर लोगों ने उसका खूब मजाक उड़ाया. असली फिल्म में, खलनायक ग्रू और वाइल्ड नकल्स पुलिस से बच निकलते हैं, क्योंकि वाइल्ड नकल्स अपनी मौत का झूठा नाटक करता है.
वहीं, चीनी वर्जन वाली फिल्म में, बहुत घटिया क्वालिटी की तस्वीरों और लिखे हुए संवादों के जरिए दिखाया गया कि वाइल्ड नकल्स पकड़ा गया और उसे 20 साल के लिए जेल भेज दिया गया. जेल में उसने एक नाटक मंडली बनाई. फिल्म में ग्रू को इस तरह दिखाया गया है कि वह अपने परिवार के पास लौट आता है और उसके लिए सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि वह पिता बनता है.
अभिव्यक्ति की आजादी से समझौता
चीन में सख्त सेंसरशिप से बचने के लिए हॉलीवुड कंपनियां खुद ही अपनी फिल्मों के ऐसे वर्जन बना रही हैं जो वहां की सरकारी नीतियों के अनुसार हों. ऐसा करने से वे सरकार की ओर से जबरदस्ती किए जाने वाले बदलावों और हास्यास्पद पावरपॉइंट स्लाइड वाले अंत से बच सकती हैं.
चीन ने 1994 से हर साल कुछ गिनी-चुनी हॉलीवुड फिल्मों को ही देश में रिलीज होने की इजाजत दी. इन सीमित और कमाई वाले स्लॉट्स को पाने के लिए हॉलीवुड की कंपनियों ने अपनी फिल्मों की कहानियों को चीन के दर्शकों की पसंद के अनुसार ढालना शुरू कर दिया.
2020 की रिपोर्ट में ‘पीईएन' नाम की गैर-सरकारी संस्था ने यह बताया कि हॉलीवुड के निर्माता अब खुद ही चीन के सेंसर के हिसाब से फिल्मों में बदलाव करने लगे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, ये फिल्म निर्माता ‘स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर मुश्किल और परेशान करने वाले समझौते कर रहे हैं' यानी अभिव्यक्ति की आजादी से समझौता कर रहे हैं, जो चिंता की बात है.
2013 में रिलीज हुई फिल्म ‘आयरन मैन 3' इस बात को पूरी तरह उजागर करती है. आमतौर पर फिल्में एडिट होने पर उनकी अवधि कम हो जाती हैं, लेकिन मार्वल की इस ब्लॉकबस्टर फिल्म में चार मिनट का अतिरिक्त कॉन्टेंट जोड़ा गया. इसमें चीनी स्टार फैन बिंगबिंग और अभिनेता वांग श्वेकी के कुछ खास सीन थे. साथ ही, दूध के एक स्थानीय ब्रांड का प्रचार भी किया गया था. चीनी वर्जन में, यही दूध आयरन मैन यानी टोनी स्टार्क को चोट से उबरने में मदद करता है.