चरम गर्मी और जलवायु परिवर्तन से कैसे निपट रहा जर्मनी
२१ जुलाई २०२५जर्मनी ने इस साल काफी गर्म दिन देखे. जुलाई के महीने में कोलोन और हैम्बर्ग के इलाके में तापमान 37 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था. और कुछ इलाकों में तो तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के के करीब दर्ज किया गया था.
पिछले वर्षों में आमतौर पर इस तरह का तापमान अगस्त के बाद ही देखने को मिलता था. विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है. रेडियो, टीवी और सोशल मीडिया पर लोगों से अपील की गई है कि वे दोपहर के समय बाहर न निकले और घर के अंदर ही रहें.
गर्मी की लहर के दौरान डीडब्ल्यू ने बर्लिन की सड़कों पर लोगों से पूछा कि वह गर्मी से बचने के लिए किस तरह से इंतजाम कर रहे हैं. जिस पर एक युवती ने अपना छोटा-सा पंखा दिखाते हुए कहा, "घूम-फिर कर मेरे पास तो बस यही है.” एक दूसरी महिला ने कहा, "मैं खुद को ठंडा रखने की कोशिश करती हूं. खूब पानी पीती हूं और साथ-साथ धूप का आनंद भी लेती हूं.” एक अन्य पुरुष ने बताया, "मेरे पास मेरी टोपी है. मैं खूब पानी पीता हूं और छांव में चलता हूं.”
2025 में अब तक तो तापमान सिर्फ कुछ समय के लिए ही इतना ऊंचा रहा है, लंबी अवधि के लिए ऐसा नहीं हुआ है. लेकिन प्रशासन ऐसा क्या कर रहा है, जिससे लोगों को चरम गर्मी से बेहतर सुरक्षा मिल सके? डीडब्ल्यू ने बर्लिन में केंद्रीय मंत्रालयों के प्रवक्ताओं से पूछा कि जुलाई की शुरुआत में आई गर्मी की पहली लहर के बाद सरकार कौन से कदम उठाने की योजना बना रही है.
स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रवक्ता सबीने ग्रुनेबर्ग ने कहा, "कार्रवाई करना राज्य और स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी है. हमारी जिम्मेदारी है लोगों को जानकारी देना.” उन्होंने निवासियों को हिट्ससर्विस डॉट डीई वेबसाइट के बारे में ध्यान दिलाया, जहां पूरी जानकारी दी गई है. इसमें खासकर बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए सुझाव दिए हैं. यह वेबसाइट 2023 में शुरू की गई थी. हालांकि, फ्रांस जैसे अन्य देशों में ऐसी सेवाएं काफी पहले से ही मौजूद हैं.
पूर्वी जर्मनी के जंगलों में आग
गृह मंत्रालय ने कहा कि सेना हमेशा मदद के लिए तैयार रहती है, खासकर जंगलों में लगने वाली आग के मामलों में. सैक्सनी और ब्रांडेनबुर्ग में लगी भीषण आग को बुझाने के लिए सैनिकों ने हेलिकॉप्टर से पानी डालने में मदद की थी.
एक जुलाई को फायरफाइटर्स, फेडरल एजेंसी फॉर टेक्निकल रिलीफ और स्थानीय लोगों ने मिलकर स्थिति को और बिगड़ने से बचा लिया. जिसमें सैक्सनी के उत्तरी हिस्से का घोरिशहाइडे इलाका सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था. वहां, करीब 2,100 हेक्टेयर का इलाका कई दिनों तक जलता रहा था और कुछ घरों को एहतियातन खाली भी कराना पड़ा था.
केंद्र सरकार की नीना (NINA) ऐप भी ऐसी आग की घटनाओं के बारे में चेतावनी देती रहती है. इस ऐप को पिछले 10 सालों में 1.2 करोड़ लोग इस्तेमाल कर चुके हैं. इसमें बाढ़ और मौसम जैसे गर्मी की लहर, की ताजा जानकारी और चेतावनियां दी जाती है. हाल ही में इसमें पुलिस की तरफ से भी चेतावनियां देना शामिल किया गया है.
डॉक्टरों ने दी चेतावनी, गर्म मौसम को हल्के में न ले
अस्पतालों, बुजुर्ग देखभाल केंद्रों और बेघरों के लिए भी आश्रयों में गर्म दिनों पर कर्मचारी सामान्य से ज्यादा व्यस्त रहते हैं. क्योंकि वह यह सुनिश्चित करने में व्यस्त रहते हैं कि लोगों को पर्याप्त पानी मिले और धूप से बचाव हो सके.
बर्लिन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष पेटर बोबेर्ट ने डीडब्ल्यू से कहा, "गर्मी की लहर को हल्के में नहीं लेना चाहिए. हम सभी को खुद सुरक्षित रखना होगा. शहर के गर्म इलाकों से बचें, पर्याप्त पानी पिएं और सबसे जरूरी कि उन लोगों का ध्यान रखें, जो खुद को सुरक्षित नहीं रख सकते.”
इंसान ही नहीं, इकोनॉमी को भी झुलसा रही है तीखी गर्मी
पेटर बोबेर्ट जैसे डॉक्टर चेतावनी देते हैं कि ज्यादा तापमान न केवल लोगों की एकाग्रता और कार्यक्षमता को घटाता है, बल्कि दिल और रक्त संचार में भी गड़बड़ी कर सकता है, जो बीमार या बुजुर्ग लोगों के लिए सबसे ज्यादा जानलेवा हो सकता है.
जर्मन उपभोक्ता तुलना वेबसाइट, वेरीफॉक्स के अनुसार, 2023 में जर्मनी के केवल 13 फीसदी घरों में ही एयर कंडीशनिंग थी. पिछले साल भी यह दर सिर्फ 19 फीसदी तक ही थी. विशेषज्ञ जर्मनी में बिजली की ऊंची कीमतों को इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं. क्योंकि अस्पतालों, देखभाल केंद्रों और स्कूलों में एयर कंडीशनिंग अब भी बहुत काफी है.
सड़क निर्माण करने वाले मजदूरों के लिए तो गर्मी से बचना बेहद मुश्किल हो जाता है. जैसा कि जुलाई की शुरुआत में म्यूनिख की तेज गर्मी की लहर के दौरान भी सामने आया. एक मजदूर ने बताया कि आमतौर पर वे और उनके साथी रोज करीब 100 मीटर की नई सड़क बिछाते हैं, लेकिन गर्मी के कारण यह काम आधा ही रह जाता है. सिविल इंजीनियर चारिक्लिया कागियाओग्लू ने कहा, "हमें काफी पानी पीना पड़ता हैं. हम बार-बार ब्रेक लेते हैं और निर्माण स्थल पर जितना आराम मिल सके, उतना आराम करते हैं.”
शहरों पर गर्मी का सबसे ज्यादा असर
गेजुंडे एर्डे- गेजुंडे मेन्शेन (यानी स्वस्थ धरती - स्वस्थ लोग) नाम की संस्था मजदूरों की भलाई पर काफी जोर देती है. यह संस्था पांच साल पहले जर्मनी के डॉक्टर, लेखक और टीवी क्विज मास्टर एकहार्ट फॉन हिर्शहाउजेन ने शुरू की थी. संस्था की प्रमुख केर्स्टिन ब्लूम ने बताया, "जो लोग तेज गर्मी और तेज धूप से नहीं बच सकते या जिन्हें भारी कपड़े या सुरक्षात्मक सामान पहनकर काम करना पड़ता है. जैसे कि निर्माण स्थलों पर, खेती में या सड़क किनारे सहायता में वे लोग बहुत ज्यादा खतरे में रहते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, "शहरों में रहने वाले लोग, खासकर जो समाज के गरीब इलाकों में रहते हैं. जहां पेड़ों और हरियाली की कमी होती है, वे गर्मी से ज्यादा प्रभावित होते हैं और उनके पास गर्मी से बचने के लिए भी विकल्प काफी कम होते हैं.” ब्लूम ने नेताओं के लिए संदेश दिया, "हमें जलवायु सुरक्षा की जरूरत है वरना गर्मी का मौसम सुहावना न रहकर, लोगों के लिए खतरनाक मौसम बन जाएगा.”
जर्मनी की प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्था रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट के अनुसार, साल 2023 और 2024 में अत्यधिक गर्मी की वजह से जर्मनी में लगभग 6,000 लोगों की मौत हुई. और इस अवधि के दौरान सड़क हादसों में भी लगभग 5,600 लोगों की जान गई. बीमा कंपनी 'आलियांज' का अनुमान है कि 2025 की गर्मी में अब तक यूरोपीय संघ में स्वास्थ्य सेवाओं की लागत 4.9 फीसदी तक बढ़ चुकी है. सिर्फ जर्मनी में ही इसका खर्च लगभग 29.4 अरब अमेरिकी डॉलर आया है.