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दो महीने में कितना बदला जर्मनी के चुनाव में पार्टियों का हाल

५ फ़रवरी २०२५

जर्मनी में 23 फरवरी को होने वाले मध्यावधि चुनाव से पहले राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव देखने को मिल रहे हैं. दो महीने में कई पार्टियों की स्थिति बदल गई है.

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बर्लिन में प्रदर्शन
बर्लिन में फ्रीडरिष मैर्त्स के विरोध में प्रदर्शनतस्वीर: Omer Messinger/Getty Images

पिछले हफ्ते जब जर्मन संसद में आप्रवासन विरोधी प्रस्ताव पारित हुआ तो सर्वेक्षणों में सबसे आगे चल रही पार्टी सीडीयू के नेता फ्रीडरिष मैर्त्स की खासी आलोचना हुई. उनके लाए इस प्रस्ताव को पारित कराने में धुर-दक्षिणपंथी पार्टी आल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड (एएफडी) के सांसदों ने सीडीयू के साथ मतदान किया. इसे बहुत से लोगों ने जर्मन मूल्यों के खिलाफ माना. करीब डेढ़ लाख लोगों ने सीडीयू के विरोध में बर्लिन में प्रदर्शन भी किया. सीडीयू की पूर्व नेता और पूर्व जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने भी मैर्त्स की आलोचना की.

इसके बावजूद, सीडीयू की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. जर्मनी में चुनाव 23 फरवरी को होने हैं, जिसकी घोषणा दिसंबर में हुई थी. दो महीने पहले के सर्वेक्षणों से तुलना की जाए तो सीडीयू की स्थिति लगभग वैसी ही बनी हुई है. हालांकि दिसंबर के आखिर में अपने चरम से यह काफी नीचे आ गई है.

चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के नेतृत्व में तीन पार्टियों के गठबंधन सरकार के पतन के बाद, देश के शीर्ष आठ जनमत सर्वेक्षण संस्थानों - अलेंसबाख, वेरियन, फोर्सा, जीएमएस, इन्फ्राटेस्ट डीमैप, आईएनएसए, यूगव और फोर्शुंग्सग्रुप वैलेन द्वारा जारी किए गए आंकड़े दर्शाते हैं कि मतदाता प्रवृत्तियों में काफी उतार-चढ़ाव आया है.

सीडीयू/सीएसयू अब भी सबसे आगे है, लेकिन इसकी स्थिति पिछले दो महीनों में थोड़ी कमजोर हुई है. फरवरी की शुरुआत में यह 29-31 फीसदी पर थी, जबकि दिसंबर में इसका समर्थन 36 फीसदी तक पहुंच गया था. आप्रवासन पर प्रस्ताव के बाद इसकी रेटिंग में थोड़ी गिरावट दिखी है. 4 फरवरी को आए एक सर्वेक्षण के नतीजों में इसे 28 फीसदी मत मिलने की संभावना बताई गई है, जो पिछले हफ्ते के 30 फीसदी से कम है.

मैर्त्स को सीधा नुकसान

आप्रवासन प्रस्ताव का मैर्त्स को निजी तौर पर खासा नुकसान हुआ है. उनकी चांसलर पद की स्वीकृति रेटिंग तीन अंकों की गिरावट के साथ 22 फीसदी पर आ गई. इसका मतलब है कि अब वह ग्रीन पार्टी के चांसलर उम्मीदवार रॉबर्ट हाबेक के बराबर हैं. चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और एएफडी की चांसलर उम्मीदवार ऐलिस वाइडेल स्थिर बनी हुई है और वह 16 फीसदी पर बने रहे.

फोर्सा और टीवी चैनल आरटीएल-एनटीवी का यह सर्वेक्षण 28 जनवरी से 3 फरवरी के बीच हुआ, जब पूरे देश में मैर्त्स के एएफडी के साथ सहयोग के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए. हालांकि, सप्ताहांत में डीडब्ल्यू को दिए एक इंटरव्यू में, मैर्त्स ने खुद को और अपनी पार्टी को एएफडी से अलग दिखाने की कोशिश की.

उन्होंने कहा, "मेरा संदेश हमेशा बहुत स्पष्ट रहा है: हम उस (एएफडी) पार्टी के साथ काम नहीं कर रहे हैं. ऐसा ना तो पिछले हफ्ते हुआ था, ना इस हफ्ते होगा, ना अगले हफ्ते और ना ही उसके बाद."

कमजोर होते एसपीडी और ग्रीन्स

दूसरी ओर, एसपीडी की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है. पार्टी का समर्थन दिसंबर में 16-18 फीसदी के बीच था, लेकिन अब यह 15-18 पर आ गया है. जनवरी में कुछ समय के लिए इसका समर्थन 19 फीसदी तक गया था, लेकिन यह स्थिति ज्यादा देर तक नहीं रही. चांसलर शॉल्त्स की पार्टी के लिए यह संकेत अच्छा नहीं है, क्योंकि मतदाता उनके नेतृत्व से असंतुष्ट नजर आ रहे हैं.

ग्रीन पार्टी को समर्थन भी पिछले दो महीनों में गिरा है. जनवरी में यह 14-15 फीसदी पर स्थिर था, लेकिन अब यह 12-15 फीसदी के बीच झूल रहा है. जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने वाली यह पार्टी धीरे-धीरे समर्थन खोती दिख रही है. वहीं, एफडीपी की स्थिति और भी खराब है. यह लगातार 3-5 फीसदी पर बनी हुई है, जिससे इसकी संसद में वापसी संदिग्ध लग रही है. अगर यह 5 फीसदी की सीमा पार नहीं कर पाती, तो यह जर्मनी की राजनीति के लिए बड़ा बदलाव होगा. जर्मन चुनाव व्यवस्था में उसी पार्टी को संसद में जगह मिलती है, जिसे 5 फीसदी से ज्यादा वोट मिलें.

एएफडी का उछाल

सबसे बड़ा उछाल एएफडी को मिला है. इस धुर दक्षिणपंथी पार्टी का समर्थन अब 20-23 फीसदी पर पहुंच चुकी है, जबकि दिसंबर में इसका समर्थन 17-19 फीसदी के बीच था. यह वृद्धि दिखाती है कि मतदाता बड़ी पार्टियों से नाखुश हैं और नए विकल्पों की तलाश में हैं. इसी तरह, वामपंथी पार्टी डी लिंके भी 4-6 फीसदी के बीच बनी हुई है, हालांकि दिसंबर में यह 2.5 फीसदी तक गिर गई थी. पिछले कुछ हफ्तों में इसमें हल्का सुधार हुआ है, लेकिन यह अब भी संकट में है.

जर्मन चुनाव 2025: पार्टियों के बीच छाया प्रवासियों का मुद्दा

एक अन्य प्रमुख बदलाव बीएसडब्ल्यू के बढ़ते समर्थन में दिखता है. दिसंबर में यह पार्टी केवल 3-4 फीसदी पर थी, लेकिन अब 6 फीसदी तक पहुंच चुकी है. इसका समर्थन धीरे-धीरे बढ़ रहा है और यह संभव है कि यह 5 फीसदी की सीमा पार कर संसद में प्रवेश कर ले. ऐसा लगता है कि बीएसडब्ल्यू एसपीडी और डी लिंके के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा रही है और खुद को एक नए लोकलुभावन विकल्प के रूप में पेश कर रही है.

कुल मिलाकर, सीडीयू/सीएसयू अब भी सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है, लेकिन इसकी स्थिति पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है. एसपीडी और ग्रीन पार्टी गिरावट देख रहे हैं, जिससे उनके लिए चुनाव चुनौतीपूर्ण बन सकता है. एएफडी की लोकप्रियता बढ़ रही है, जबकि बीएसडब्ल्यू भी धीरे-धीरे मजबूत हो रही है. लेफ्ट और एफडीपी की हालत अब भी कमजोर बनी हुई है.

चुनाव में अब कुछ ही हफ्ते बचे हैं और इस दौरान होने वाले राजनीतिक घटनाक्रम और प्रचार अभियान चुनावी नतीजों को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे. यह चुनाव जर्मनी की राजनीति में ऐतिहासिक मोड़ ला सकता है और सत्ता संतुलन को पूरी तरह बदल सकता है.

वीके/एनआर (रॉयटर्स, डीपीए)

 

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