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कितने कारगर होंगे बर्नीहाट में प्रदूषण नियंत्रण के उपाय?

प्रभाकर मणि तिवारी
१४ मई २०२५

असम-मेघालय की सीमा पर बसे बर्नीहाट ने इस साल फरवरी में दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के तौर पर सुर्खियां बटोरी थी. सरकार ने प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल की. इसके नतीजे में यहां की हवा कुछ बेहतर हुई है.

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बर्नीहाट की एक फैक्ट्री की चिमनी से निकलता धुआं
असम और मेघालय की सीमा पर बसे बर्नीहाट की हवा में कुछ सुधार हुआ हैतस्वीर: Prabhakar Tewari/DW

बर्नीहाट का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक अब पहले के मुकाबले काफी बेहतर हुआ है. हालांकि यह सुधार कब तक कायम रहेगा यह कहना मुश्किल है. पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि शहर को प्रदूषण मुक्त करने के लिए इस दिशा में ठोस दीर्धकालिक योजना के साथ लंबे समय तक काम करना होगा.

सबसे प्रदूषित शहर

वायु गुणवत्ता की निगरानी करने वाली स्विट्जरलैंड की कंपनी ‘आईक्यू एयर' की वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट 2024 में प्रदूषित शहरों की सूची में बर्नीहाट पहले नंबर पर था. उससे पहले वर्ष 2023 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी इसे देश का सबसे प्रदूषित शहर करार दिया था. इस शहर का कुछ हिस्सा असम में है और कुछ मेघालय में. इसी वजह से दोनों राज्यों की सरकार इलाके में लगातार बढ़ते प्रदूषण के मुद्दे पर चुप्पी साधे रही.

असम की राजधानी गुवाहाटी को मेघालय की राजधानी शिलांग से जोड़ने वाले गुवाहाटी-शिलांग रोड (जी.एस. रोड) के किनारे बसे इस शहर में कई औद्योगिक इकाइयां हैं. उनमें से ज्यादातर असम वाले इलाके में हैं. इस हाइवे पर रोजाना भारी तादाद में गुजरने वाले ट्रक और दूसरे वाहन भी यहां प्रदूषण की एक वजह हैं.

प्रदूषण नियंत्रण की पहल

स्विस संस्था की रिपोर्ट सामने आने के बाद सरकार की नींद टूटी और यहां बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम की दिशा में पहल होने लगी. इसके तहत मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को पत्र भेज कर साझा कार्य योजना बनाने और उस पर अमल करने का अनुरोध किया.

बर्नीहाट के बगल से गुजरता हाईवे
बर्नीहाट को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया गया थातस्वीर: Prabhakar Tewari/DW

मेघालय राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सरकार के निर्देश पर इलाके के उद्योगों पर निगरानी तेज की और कई जगह औचक निरीक्षण के बाद कई इकाइयों को बंद करने का निर्देश दिया गया. बोर्ड के अध्यक्ष आर. नैनामलाई ने डीडब्ल्यू को बताया, "मुख्यमंत्री के निर्देश पर तैयार कार्य योजना को लागू करने के बाद इलाके में वायु प्रदूषण को काफी हद तक नियंत्रित करने में कामयाबी मिली है. इसके तहत प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों का पर्यावरण ऑडिट किया गया. इस जांच के नतीजों के आधार पर संबंधित इकाइयों के लिए प्रदूषण से संबंधित नियमों को सख्ती से लागू करना अनिवार्य बना दिया गया है."

नैनामलाई का कहना था कि प्रदूषण संबंधी नियमों के उल्लंघन के आरोप में कुछ इकाइयों को बंद कर दिया गया था. बाद में इन नियमों को लागू करने पर उनको काम शुरू करने की अनुमति दे दी गई, लेकिन अब भी नियमित रूप से उनकी निगरानी की जा रही है.

खासकर इन इकाइयों से होने वाले उत्सर्जन की नियमित रूप से जांच की जा रही है. हाल में की गई जांच से इलाके में वायु गुणवत्ता सूचकांक 110 और असम वाले इलाके में 123 पाया गया जो पहले के मुकाबले काफी बेहतर है.

मेघालय सरकार में वन और पर्यावरण विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "इलाके की तमाम औद्योगिक इकाइयों में प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाए गए हैं.  इससे आगे चल कर प्रदूषण को पूरी तरह नियंत्रित करने में मदद मिलेगी. हमारी टीमें नियमित रूप से इस बात की जांच करती हैं कि यह उपकरण काम कर रहे हैं या नहीं. लेकिन इस मामले में ढील नहीं दी जा सकती. वरना हालात पहले जैसे ही बदतर होने का खतरा है."

मौसम बदलने का फायदा

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष का कहना था कि इस मामले में असम सरकार का भी पूरा सहयोग मिल रहा है. वो बताते हैं, "हाल के दिनों में मौसम में बदलाव की वजह से होने वाली बारिश ने भी प्रदूषण को कम कर हवा की गुणवत्ता सुधारने में अहम भूमिका निभाई है."

क्या इन उपायों से यहां प्रदूषण की समस्या खत्म हो जाएगी? इस सवाल पर पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल तो दोनों राज्यों की सरकार इस मामले में काफी सक्रियता दिखा रही हैं. लेकिन औद्योगिक इकाइयों से होने वाले उत्सर्जन और प्रदूषण की निगरानी करना एक सतत प्रक्रिया है. प्रदूषण नियंत्रण के नियम बनाने के मुकाबले जमीनी स्तर पर उनको लागू करना सबसे अहम है.

असम के पर्यावरण विशेषज्ञ जयंत कुमार हाजरा डीडब्ल्यू से कहते हैं, "प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस मामले में कड़ा रुख अपनाना होगा. अमूमन कुछ दिनों की सक्रियता के बाद सब कुछ जस का तस हो जाता है. वैसी स्थिति में हालात फिर बिगड़ सकते हैं. प्रदूषण को रातों-रात नियंत्रित करना मुश्किल है. अभी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है."

बर्नीहाट में एक फैक्ट्री की चिमनी से निकलता धुआं
बर्नीहाट में कई फैक्ट्रियां हैं जो प्रदूषण बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाती हैंतस्वीर: Prabhakar Tewari/DW

मेघालय की पर्यावरण विशेषज्ञ मार्था संगमा ने डीडब्ल्यू से कहा, "यह मामला भले अब सुर्खियों में आया है. लेकिन बर्नीहाट में प्रदूषण की समस्या दशकों पुरानी है. दोनों राज्यों ने इस मामले में अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई है. अगर पहले से इन औद्योगिक इकाइयों में उत्सर्जन की नियमित जांच की गई होती तो आज प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर नहीं होती."

उनका कहना था कि फिलहाल हाल के दिनों में होने वाली बारिश से भी हवा की गुणवत्ता बेहतर हुई है. सरकारी पहल के नतीजे सामने आने में अभी कुछ और समय लग सकता है.

उद्योग और परिवहन उद्योग की जवाबदेही

थिंकटैंक द सेंटर फार एफिशिएंट गवर्नेंस (सीईजी) ने असम और मेघालय सरकार को ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) की तर्ज पर एक प्रणाली लागू करने की सलाह दी है. दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता के प्रबंधन में यह प्रणाली काफी प्रभावी रही है. संगठन के एक प्रवक्ता डीडब्ल्यू को बताते हैं, इस प्रणाली के तहत प्रदूषण के लिए उद्योग और परिवहन क्षेत्र की जवाबदेही तय करने का प्रावधान है. इसी तर्ज पर बनी योजना बर्नीहाट के मामले में भी काफी प्रभावी साबित होगी.

ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान वायु प्रदूषण से निपटने की एक आपातकालीन योजना है. वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे मंजूरी दी और 2017 में इसे कानूनी जामा पहनाया गया. दरअसल यह आपातकालीन उपायों का एक समूह है जो दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में एक निश्चित सीमा के बाद वायु गुणवत्ता में और गिरावट को रोकने के लिए लागू होता है.

भारत का यह इलाका है सबसे प्रदूषित

 पश्चिम बंगाल के एक पर्यावरण संगठन से जुड़ी मौमिता कुंडू डीडब्ल्यू से कहती हैं, "असम और मेघालय के लिए कानूनी प्रावधानों के तहत एक स्वायत्त प्राधिकरण की स्थापना जरूरी है जो वायु गुणवत्ता उपायों की निगरानी करे और सीधे गुवाहाटी हाईकोर्ट को रिपोर्ट दे. वैसी स्थिति में उसके पास नौकरशाही की देरी से बचते हुए सीधे कार्रवाई का अधिकार होगा."

काफी नहीं है मौजूदा उपाय

पर्यावरण विशेषज्ञों ने पूर्वोत्तर में मौजूदा वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणालियों की आलोचना करते हुए इसे नाकाफी बताया है. उनका कहना है कि ठोस आंकड़ों के बिना स्थिति में सुधार के उपाय भी बेअसर साबित होंगे.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बर्नीहाट की पर्यावरण संबंधी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक दीर्घकालिक योजना को कानूनी प्रावधानों की मदद से लागू करने पर ही तस्वीर में बदलाव आएगा.

असम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष अरूप कुमार मिश्र डीडब्ल्यू को बताते हैं, "सरकार मेघालय के साथ मिल कर इलाके में प्रदूषण पर नियंत्रण पाने और वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए दीर्घकालिक रणनीति पर काम कर रही है."