गाजा युद्ध को कैसे देखते हैं इस्राएल के लोग?
१४ अगस्त २०२५जैसे-जैसे इस्राएल की सरकार कब्जे वाले गाजा पट्टी में अपने सैन्य अभियान को बढ़ाने की कोशिश कर रही है, उसे घरेलू स्तर पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. पिछले हफ्ते ही गाजा में चल रहे सैन्य अभियान के खिलाफ देश में बड़े स्तर पर विरोध-प्रदर्शन हुए. इनमें दसियों हजार इस्राएली सड़कों पर उतरे. गाजा पट्टी में उग्रवादी समूह हमास अभी भी लगभग 50 इस्राएली बंधकों को अपने कब्जे में रखे हुए है. बंधकों के परिजनों को डर है कि गाजा को लेकर राष्ट्रपति बेन्यामिन नेतन्याहू की नई योजना उनके प्रियजनों के लिए अभी और खतरा पैदा करेगी.
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इस्राएली बंधक कार्मेल गैट को अपहरणकर्ताओं ने मार डाला था. उनके चचेरे भाई गिल डिकमान ने डीडब्ल्यू को बताया, "हम जानते हैं कि और ज्यादा जमीन पर कब्जा करने का फैसला बंधकों की जान को खतरे में डाल देगा. कार्मेल के साथ ठीक यही हुआ. वह राफा में थीं. इस्राएली सेना ने राफा पर कब्जा करने का फैसला किया. इस वजह से उनके पहरेदारों ने उन्हें और पांच अन्य बंधकों को मार डाला.”
हाल ही में हमास की ओर से जारी एक वीडियो में देखे गए इस्राएली बंधक एव्यातर डेविड के चचेरे भाई नामा शुएका ने कहा, "हम जानते हैं कि उन्हें जिंदा वापस लाने का एकमात्र तरीका उन सभी के लिए एक समझौता करना है. इसलिए, हम नारे लगा रहे हैं: कृपया लड़ाई बंद करें. हमारे प्रियजनों को बचाएं. उन्हें भूख से न मरने दें.”
समझौता चाहते हैं ज्यादातर इस्राएली
बंधकों के परिवार की बातों से सहमति रखने वाले इस्राएली लोगों की संख्या बढ़ रही है. एक निर्दलीय थिंक टैंक ‘इस्राएल डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट (आईडीआई)' की ओर से किए जा रहे सर्वे से पता चलता है कि लोगों के नजरिए में कितना बदलाव आया है. अक्टूबर 2023 के मध्य में, 7 अक्टूबर को इस्राएल पर हमास के हमले के तुरंत बाद सिर्फ 17 फीसदी इस्राएली लोगों का मानना था कि उनकी सरकार को बंधकों को छुड़ाने के लिए बातचीत करनी चाहिए. भले ही, इसका मतलब लड़ाई खत्म करना ही क्यों न हो. हमले की बरसी तक, 53 फीसदी इस्राएली लोगों की सोच बदलकर ऐसी हो गई. वे भी समझौते के पक्ष में बात करने लगे.
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इस वर्ष जुलाई के मध्य में, स्थानीय इस्राएली मीडिया ‘चैनल 12' की ओर से कराए गए एक सर्वे से पता चलता है कि इस्राएल के 74 फीसदी लोग चाहते हैं कि उनकी सरकार हमास के साथ समझौता करे, ताकि सभी बंधकों को रिहा कराया जा सके और गाजा में लड़ाई खत्म की जा सके.
गाजा के लिए ज्यादा सहानुभूति नहीं
इस्राएल के ज्यादातर लोग कहते हैं कि वे बंधकों की रिहाई चाहते हैं, इस्राएली सैनिकों की जान बचाना चाहते हैं और नेतन्याहू सरकार के काम करने के तरीके से असहमत हैं. हालांकि, अन्य शोध से पता चलता है कि उन्हें फलीस्तीनियों के लिए ज्यादा सहानुभूति नहीं है और न ही वे उनके साथ सहयोग करने की बात को पसंद करते हैं.
जुलाई के आखिर में आईडीआई की ओर से किए गए एक सर्वे में, शोधकर्ताओं ने पूछा, "गाजा में फलीस्तीनी आबादी के बीच अकाल और पीड़ा की खबरों से आप व्यक्तिगत रूप से किस हद तक परेशान हैं या आपको कोई परेशानी नहीं है?”
तीन-चौथाई से ज्यादा यहूदी इस्राएली यानी 79 फीसदी या तो ज्यादा परेशान नहीं थे या बिल्कुल भी परेशान नहीं थे. यहूदी इस्राएली लोगों ने यह भी कहा कि उनका मानना है कि इस्राएल की सेना गाजा के लोगों को परेशानियों और कष्टों से बचाने के लिए पर्याप्त कदम उठा रही है. वहीं, अरब इस्राएली लोगों का रुख इसके विपरीत था. उनमें से 86 फीसदी लोग अकाल और कष्टों की खबरों से बहुत या कुछ हद तक परेशान थे.
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पहले भी, आईडीआई ने इस्राएली लोगों से युद्ध खत्म करने का सबसे महत्वपूर्ण कारण पूछा था. आधे से ज्यादा लोगों ने कहा कि बचे हुए बंधकों को रिहा कराना जरूरी है. सिर्फ 6 फीसदी ने तर्क दिया कि युद्ध ‘मानव जीवन की भारी कीमत' और शांति की इच्छा की वजह से खत्म किया जाना चाहिए.
तेल अवीव के एक निवासी ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह सच है कि अब ज्यादा से ज्यादा लोग गाजा में हो रही घटनाओं के बारे में बात कर रहे हैं. उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "लेकिन आम तौर पर मुख्य ध्यान बंधकों और सैनिकों पर है. लोग ऐसे युद्ध में नहीं उलझे रहना चाहते हैं जिसके खत्म होने की संभावना दूर-दूर तक न दिखती हो.”
उन्होंने बताया कि गाजा और इस्राएल के लोग बिल्कुल अलग-अलग दुनिया में जी रहे हैं. वह कहते हैं, "वैसे भी, गाजा की दूरी तेल अवीव से महज एक घंटे की है. गाजा पर 17 साल तक नाकाबंदी रही, जिससे युद्ध से पहले ही वहां की आबादी पर काफी ज्यादा असर पड़ा है. लेकिन उसमें इस्राएल के लोगों की खास दिलचस्पी नहीं रही. इस्राएली लोगों ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.”
क्या चरमपंथी सोच अब आम हो गई है?
पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तामिर सोरेक इस्राएल-फलीस्तीन संघर्ष से जुड़े सांस्कृतिक पहलुओं पर शोध करते हैं. उन्होंने मार्च 2025 में एक सर्वे कराया. इसमें पाया गया कि 82 फीसदी यहूदी इस्राएली यह सोच सकते हैं कि फलीस्तीनियों को गाजा से पूरी तरह हटा दिया जाए.
मार्च 2025 के उस सर्वे के आधार पर, सोरेक ने यह निष्कर्ष निकाला कि फलीस्तीनियों को लेकर जो विचार पहले कुछ लोगों के बीच देखे जाते थे और चरमपंथी समझे जाते थे, वे अब इस्राएली समाज में मुख्यधारा की सोच बन गए हैं. सोरेक ने लिखा, "ये चरमपंथी विचार 1930 के दशक से चले आ रहे हैं. 1990 के दशक में शांति की संभावना लगातार कम होने, इस्राएली लोगों में अपना अस्तित्व बचाए रखने से जुड़ी चिंताएं बढ़ने और 21वीं सदी में धार्मिक यहूदीवादियों के राजनीतिक रूप से अधिक शक्तिशाली होने से ये विचार और मजबूत हुए हैं. इन वजहों से, जो विचार पहले हाशिए पर थे, उन्हें अब जनता में ज्यादा स्वीकृति मिल रही है. इन विचारों को ज्यादा लोग मानने लगे हैं.”
अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर की ओर से मार्च 2025 में किए गए एक सर्वे में पाया गया कि सिर्फ 21 फीसदी इस्राएली मानते हैं कि इस्राएल और फलीस्तीन दो अलग-अलग देश बनकर शांति से रह सकते हैं, जो तथाकथित ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन' का हिस्सा है. शोधकर्ताओं ने लिखा कि यह आंकड़ा 2013 के बाद से सबसे कम है.
ब्रिटेन के बीबीसी, न्यूयॉर्क टाइम्स और जर्मनी के ज्यूड डॉयचे त्साइटुंग जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के पत्रकारों की ओर से आम इस्राएली नागरिकों के नजरिए पर हाल ही में की गई ग्राउंड रिपोर्टिंग इन निष्कर्षों की पुष्टि करती है.
अब देश की बड़ी आबादी कर रही सरकार की आलोचना
इस्राएली लेखक एटगर केरेट महीनों से अपनी सरकार के काम करने के तरीके का विरोध कर रहे हैं. उन्हें खुशी है कि अब उनके देश के ज्यादा लोग भी इस आलोचना में शामिल हो रहे हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "मैं चाहता हूं कि मेरे साथ लड़ने वाले लोग मानवता या इंसानियत के लिए लड़ें. हालांकि, अगर उनका विचार मेरे विचार से मेल नहीं भी खाता है, तो भी हमारा आखिरी लक्ष्य एक ही है. हमारी मंजिल एक ही है.”
केरेट ने यह भी समझाने की कोशिश की कि इस्राएल के लोग फलीस्तीनियों की दुर्दशा और पीड़ा को लेकर कम चिंतित क्यों हैं. उन्होंने कहा, "कुछ लोग सदमे में हैं और डरे हुए हैं. उन्हें नहीं पता कि नेतन्याहू क्या कर रहे हैं. वे सिर्फ नेतन्याहू के एक के बाद एक बयानों पर विश्वास करते जा रहे हैं. अगर आप इस्राएल में खबरें देखें, तो हफ्ते-दर-हफ्ते बिल्कुल उल्टी बातें कही जाती हैं. कोई भी बात एक जैसी नहीं रहती और बहुत कम ही चीजें समझ में आती हैं.”
इस्राएल के ज्यादातर लोग वैसे भी सोशल मीडिया से जानकारी हासिल करते हैं, जहां गाजा की तस्वीरें बहुत ज्यादा शेयर की जाती हैं. अप्रैल 2025 के आईडीआई के एक अन्य सर्वे के मुताबिक, तीन-चौथाई से ज्यादा इस्राएली कहते हैं कि उन्होंने ‘गाजा में बड़े पैमाने पर तबाही दिखाने वाली बहुत सारी या कुछ तस्वीरें और वीडियो' देखे हैं.