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पक्षियों का प्रवास कैसे बदल रहा है जलवायु परिवर्तन

मेलिसा एस्कारिया पारा
१४ मई २०२५

प्रवासी पक्षी खाना ढूंढने और प्रजनन करने के लिए अक्सर लंबी दूरी की यात्रा तय करते हैं. लेकिन बढ़ते वैश्विक तापमान का असर अब इनके प्रवास के तरीके को भी बदल रहा है.

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जर्मनी के कोलोन के आकाश में उड़ता परिंदों का झुंड
लंबी दूरी तयकरने वाले परिंदे कभी बढ़ते तापमान तो कभी बदलती जलवायु का दंश झेल रहे हैंतस्वीर: Federico Gambarini/dpa/picture alliance

पक्षी हमेशा से इंसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहे हैं. हवाई जहाज भी कहीं न कहीं पक्षियों से ही प्रेरित रहा है. इंसान बस उड़ने के लिए ही नहीं बल्कि कई तरीके से पक्षियों से प्रेरित रहा है. साल में दो बार, जब भालू और गिलहरी जैसे जानवर ठंड में हाइबरनेशन में जाने की तैयारी कर रहे होते हैं और फिर वसंत में उससे बाहर निकल रहे होते हैं, तब प्रवासी पक्षी जमीन और समुद्र पार करके लंबी यात्राओं के लिए आगे बढ़ रहे होते हैं.

प्रवासी पक्षी प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. वह जहां-जहां से उड़ते हैं, वहां-वहां परागण करने वाले पौधों का बीज फैलाते हुए और कीड़े-मकोड़े खाकर उनकी संख्या नियंत्रित करते आगे बढ़ते हैं. इससे पारिस्थितिकी तंत्र स्वस्थ रहता है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करता है.

सिर्फ इतना ही नहीं. वन्यजीव विशेषज्ञ और संयुक्त राष्ट्र में प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर काम करने वाले, फ्रांसिस्को रिल्ला बताते हैं कि प्रवासी पक्षी "बायोइंडिकेटर" की तरह भी काम करते हैं. इसका मतलब हुआ कि यह पक्षी प्रदूषित जगहों से दूर रहते हैं. इसलिए इनकी आवाजाही से हमें पानी और हवा की गुणवत्ता के बारे में भी कई तरह की जरूरी जानकारी मिलती है.

धरती के दूसरे छोर तक जाकर फिर वापसी

शरद ऋतु में जब दिन छोटे होने लगते हैं, तो पक्षी समझने लगते हैं कि अब भोजन की कमी होने वाली है. यही संकेत होता है कि अब उन्हें दक्षिण की ओर उड़ान भरनी है.

कुछ पक्षी, जैसे छोटे आर्कटिक टर्न, सर्दियों में अंधेरे से भरे ठंडे आर्कटिक क्षेत्र को छोड़कर सीधा अंटार्कटिक की ओर उड़ जाते हैं. वह लगभग 90,000 किलोमीटर की कुल यात्रा करते हैं. यह यात्रा सबसे लंबी प्रवास यात्रा मानी जाती है.

जर्मनी में फ्रैंकफर्ट के पास स्टोर्क परिंदे का परिवार
प्रवासी परिंदे हजारों किलोमीटर का सफर तय करते हैं तस्वीर: Michael Probst/AP Photo/picture alliance

इनके अलावा बार-टेल्ड गॉडविट भी प्रवास यात्रा के चैंपियन माने जाते हैं. यह पक्षी अमेरिका के अलास्का राज्य से उड़कर ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया द्वीप तक जाते हैं. मात्र 5 महीने के एक गॉडविट ने बिना रुके सबसे लंबी उड़ान का गिनीज रिकॉर्ड बनाया है. 13,560 किलोमीटर की दूरी उसने  केवल 11 दिन और 1 घंटे में तय की थी.

बार-टेल्ड गॉडविट, अलास्का में दो महीने तक खाते हैं और लंबी उड़ान के लिए अपने शरीर को तैयार करते है. वह अपने कुछ आंतरिक अंगों को छोटा कर लेते हैं ताकि शरीर में फैट को इकठ्ठा करने के लिए जगह बनाई जा सके. हालांकि जलवायु परिवर्तन के कारण अब  कुछ प्रजातियों के लिए इतनी लंबी उड़ान भर पाना मुश्किलहोता जा रहा है.

मानव गतिविधियों का प्रवासी पक्षियों पर असर

प्रवासी पक्षी यात्राओं में दिशा पता लगाने के लिए सूरज, सितारों, समुद्री तटों और बड़े जल निकायों का सहारा लेते हैं. हालांकि जिन तटीय क्षेत्रों पर रुक कर वह आराम करते हैं और भोजन जुटाते हैं, वह अब समुद्र का स्तर बढ़ने के कारण बाढ़ से प्रभावित हो रहे हैं.

इसके अलावा छोटे समुद्री जीव (क्रस्टेशियंस), जो प्रवासी पक्षियों के लिए एक अहम भोजन का स्रोत होते हैं, वह समुद्र के अधिक एसिडिक हो जाने के कारण अपने खोल और कंकाल ठीक से नहीं बना पा रहे हैं. जिसका असर सीधा प्रवासी पक्षियों पर पड़ता है. पर्याप्त भोजन ना मिल पाने के कारण वह लंबी और कठिन यात्राओं में या तो जिंदा नहीं बच पाते या तो सफलतापूर्वक प्रजनन नहीं कर पाते है.

इंसानो की तरह पक्षी भी अब बढ़ती हुई तूफान जैसे चरम मौसमी घटनाओं से लगातार प्रभावित हो रहे हैं. तेज हवाओं के कारण वह नीचे गिर सकते है और उनकी जान जाने का खतरा भी बढ़ जाता है.

नॉर्वे में आर्कटिक सागर के ऊपर से उड़ते आर्कटिक टर्न का झुंड
प्रवासी परिंदे बदलती जलवायु की वजह से परेशान हो रहे हैंतस्वीर: picture-alliance/blickwinkel/McPHOTO/E. u. H. Pum

इसके अलावा जलवायु परिवर्तन उनके व्यवहार को भी प्रभावित करता है. गर्म तापमान के कारण जब भोजन की कमी नहीं होती है तो पक्षी अपनी यात्राएं छोटी कर देते हैं और कई बार तो वह अपने घर की ओर लौटते ही नहीं है.

इस कारण कई बार प्रवासी पक्षियों और स्थानीय जानवरों के बीच भोजन को लेकर संघर्ष बढ़ जाता है. आर्कटिक टर्न जैसे कुछ पक्षी तेज हवाओं को सहन करने के लिए ज्यादा ऊर्जा खर्च करते हैं. पक्षियों की कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं, जो इस दबाव को झेल नहीं पाती हैं.

ऐसा ही एक पक्षी, स्लेंडर-बिल्ड कर्ल्यू था. जिसे साल 2024 में विलुप्त घोषित कर दिया गया. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह प्रजाति खुद को अपने आवास के खत्म होने के साथ ढाल नहीं पाई.

प्रवासी पक्षियों की यात्रा में कैसे मदद की जा सकती है

इंसान अक्सर पक्षियों को खाना खिलाते हैं, लेकिन विशेषज्ञ फ्रांसिस्को रिल्ला का कहना है कि प्रवासी पक्षियों को इस तरह से खाना देना नुकसानदायक हो सकता है. अगर उन्हें इंसानों के लिए बनाए गए बीज दिए जाएंगे, तो वह इतना पेट भर लेंगे कि फिर जरूरी पोषक तत्वों वाला खाना नहीं खा पाएंगे. इसके अलावा, अगर खाना ऐसी जगह पर रखा जाएगा, जो ज्यादा खुली होगी तो पक्षियों के शिकार का खतरा भी बढ़ सकता है.

पवनचक्की के पास से उड़ता परिंदों का झुंड
पवनचक्की जैसी चीजों में परिंदों के लिए सुरक्षा उपाय करके हम उनकी मुश्किल आसान कर सकते हैंतस्वीर: Patrick Pleul/dpa/picture alliance

रिल्ला का सुझाव है कि इन प्रवासी पक्षियों की मदद के लिए हमें सरकार से गुहार करनी चाहिए कि वह कन्वेंशन ऑन द कंजर्वेशन ऑफ माइग्रेटरी स्पीशीज ऑफ वाइल्ड एनिमल्स जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौतों के तहत संरक्षित क्षेत्रों का दायरा बढ़ाएं.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम भी इस सुझाव से सहमत है और मानता है कि हमें संरक्षित क्षेत्रों को और ज्यादा बढ़ावा देना चाहिए. इस साल 10 मई को मनाए गए वर्ल्ड माइग्रेटरी बर्ड डे (विश्व प्रवासी पक्षी दिवस) ने इंसानों और पक्षियों के बीच आपस में मिलजुल कर रहने की धारणा को बढ़ावा देने पर जोर दिया है. जिसका मुख्य संदेश है, स्वस्थ आवास बनाना, प्रदूषण को कम करना और कांच की इमारतों से बचना, क्योंकि इससे टकराकर पक्षियों की जान जाने का खतरा बढ़ जाता है.

अगर प्रवासी पक्षी धीरे-धीरे गायब होने लगेंगे, तो इसका असर खेती और फूड चेन पर भी पड़ेगा. रिल्ला कहते हैं, "अगर उनके साथ कुछ बुरा होता है, तो हमारे साथ भी वैसा ही होगा.”