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शिक्षासंयुक्त राज्य अमेरिका

अमेरिका की नामी यूनिवर्सिटियों के पास पैसा कहां से आता है?

मोनीर गाएदी
२५ अप्रैल २०२५

अमेरिका की सबसे अमीर यूनिवर्सिटियां भी बड़े आर्थिक संकट में नजर आ रही है. अरबों डॉलर की रिसर्च फंडिंग के अभाव में दशकों की वैज्ञानिक तरक्की पर गंभीर असर पड़ सकता है.

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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बजट में कटौती का विरोध
तस्वीर: Nicholas Pfosi/REUTERS

सत्ता में वापस आने के कुछ महीनों बाद से ही राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका की उच्च शिक्षा व्यवस्था को बदलना शुरू कर दिया है. वह देश के मशहूर और शीर्ष विश्वविद्यालयों की रिसर्च फंडिंग में लगातार भारी कटौती कर रहे है.

सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब ट्रंप ने पिछले हफ्ते हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के लिए तय की गई लगभग दो अरब डॉलर के रिसर्च ग्रांट को रद्द कर दिया. इससे पहले अप्रैल में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के लगभग एक अरब डॉलर और नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की 79 करोड़ डॉलर की फंडिंग को भी रोक दिया गया था.

फंडिंग रोकना ट्रंप प्रशासन के बड़े अभियान का हिस्सा है, जिसका मकसद सरकारी खर्च से चलने वाले संस्थानों पर नियंत्रण हासिल करना है और उन यूनिवर्सिटियों को सजा देना है, जिन पर वैचारिक पक्षपात, यहूदी-विरोधी सोच और फिलिस्तीन के समर्थन वाले प्रदर्शनों को सही ढंग से ना संभालने के आरोप हैं. यह कटौतियां ना सिर्फ शिक्षा पर बल्कि जलवायु विज्ञान, वैक्सीन रिसर्च और लैंगिक समानता जैसे क्षेत्रों पर भी असर डाल रही हैं.

इसके विरोध में 22 अप्रैल को 100 से ज्यादा यूनिवर्सिटियों ने एक संयुक्त पत्र जारी किया, जिसमें इस कदम को प्रशिक्षण संस्थानों में "सरकार की दखलअंदाजी" करार दिया गया. पत्र में लिखा गया, "हम तर्क संगत सुधारों के लिए तैयार हैं और सरकार की उचित निगरानी का विरोध नहीं करते हैं. लेकिन जब सरकार जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी करने लग जाए, तो हमें उसका विरोध करना होगा. रिसर्च फंडिंग के नाम पर दबाव बनाने की नीति को हम खारिज करते है.”

स्पुतनिक वन सैटेलाइट
स्पुतनिक उपग्रह लॉन्च ने बढ़ाई अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विज्ञान को लेकर होड़ तस्वीर: dpa/picture-alliance

अमेरिका के शीर्ष विश्वविद्यालयों का अनोखा फाइनेंशियल सिस्टम

इन विश्वविद्यालयों को फेडरल (संघीय) सरकार से मिलने वाली फंडिंग की शुरुआत 20वीं सदी में आए ग्रेट डिप्रेशन के समय हुई थी, शीत युद्ध में यह फंडिंग परवान चढ़ी. 1958 में जब सोवियत यूनियन ने दुनिया का पहला उपग्रह स्पुतनिक लॉन्च किया, तब अमेरिका ने इसके जवाब में नेशनल डिफेन्स एजुकेशन एक्ट पास किया. जिसके तहत विज्ञान और तकनीक में बड़े पैमाने पर निवेश किया गया. इस फंडिंग के जरिये फेडरल सरकार ने अमेरिकी विश्वविद्यालयों को मजबूती दी और वैश्विक स्तर पर उन्हें रिसर्च, इनोवेशन और टैलेंट का हब बनने में मदद की.

नेशनल साइंस फाउंडेशन के डेटा के अनुसार, 2023 में अमेरिकी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों ने शोध और अनुसंधान पर कुल 108.8 बिलियन डॉलर खर्च किए थे. जिसमें से करीब 60 बिलियन डॉलर यानी लगभग 55 फीसदी पैसा फेडरल सरकार ने दिया था.

कई देशों के विपरीत अमेरिका में राष्ट्रीय विश्वविद्यालय जैसी कोई प्रणाली नहीं है. वहां की शिक्षा व्यवस्था मुख्य रूप से राज्यों की जिम्मेदारी होती है और वहां के विश्वविद्यालय कई तरह के आय स्रोतों पर निर्भर होते हैं. फेडरल फंडिंग इसका सिर्फ एक हिस्सा है.

अमेरिका के उच्च विश्वविद्यालयों की असली ताकत उनके विभिन्न स्रोतों से आय प्राप्त करने की क्षमता में है. खासकर दान और निवेश से प्राप्त हुए पैसों में. यह कोष दशकों के दान और पूंजी की बढ़त से तैयार हुआ है.

उदाहरण के लिए, 2024 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का दान कोष 53.2 अरब डॉलर तक पहुंच गया था. जो दुनिया की सभी यूनिवर्सिटी में सबसे ज्यादा है. अंदाज के तौर पर यह पैसा जॉर्डन, जॉर्जिया और आइसलैंड जैसे देशों की जीडीपी से भी अधिक है.

नेशनल एसोसिएशन ऑफ कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी बिजनेस ऑफिसर्स (एनएसीयूबीओ) के अनुसार यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास, येल, स्टैनफोर्ड, प्रिंस्टन और एमआईटी जैसे संस्थान भी इस लिस्ट में ज्यादा पीछे नहीं हैं. उनका दान कोष भी 23.5 अरब डॉलर से लेकर 40 अरब डॉलर तक की व्यवस्था रखता है.

हालांकि, यह कोई असीमित फंड नहीं हैं. इन पैसों का ज्यादातर हिस्सा नियंत्रित होता है यानी दान देने वाले लोगों ने यह पैसा जिस खास काम के लिए निर्धारित किया है, इसे केवल उसी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. जैसे स्कॉलरशिप, प्रोफेसरशिप या कोई खास रिसर्च. विश्वविद्यालय द्वारा जारी जानकारी से पता चलता है कि हार्वर्ड के दान कोष में 14,600 से भी अधिक अलग-अलग तरह के फंड्स हैं, लेकिन लगभग सभी नियंत्रित फंड्स का हिस्सा है.

ट्रंप प्रशासन के बजट कटौती वाले आदेशों के खिलाफ न्यूयॉर्क में प्रदर्शन
बजट कटौती के खिलाफ अमेरिका के कई शहरों में ट्रंप और मस्क के खिलाफ प्रदर्शनतस्वीर: Andrea Renault/STAR MAX/IPx/picture alliance

दान, फंड जुटाने के अभियान और ट्यूशन फीस

विश्वविद्यालयों की आर्थिक व्यवस्था बनाए रखने में दान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह दान अक्सर नए निर्माण करने, सुविधाओं के विस्तार और यूनिवर्सिटी की प्रतिष्ठा बढ़ाने में मदद करते हैं. हालांकि, यह दान आमतौर पर कुछ शर्तों के साथ आते हैं. एनएसीयूबीओ के अनुसार, दान कोष का लगभग 90 फीसदी फंड किसी खास उद्देश्य जैसे कि छात्रवृत्ति, शोध या आधारभूत ढांचे में इस्तेमाल के लिए निर्धारित होता है.

बड़े-बड़े फंड जुटाने के अभियान भी अरबों डॉलर की व्यवस्था कर देते है. लेकिन अधिकतर दान लंबी अवधि के प्रोजेक्ट्स जैसे नए भवन निर्माण, प्रोफेसरों के लिए स्थायी पद या शैक्षणिक कार्यक्रमों के विकास के लिए होते हैं, ना कि आपात स्थिति या अचानक आई आर्थिक कमी को पूरा करने के लिए. इसके लिए अनियंत्रित दान होते है, जिनका उपयोग यूनिवर्सिटी अपने सामान्य खर्चे पूरे करने के लिए या फंडिंग में अचानक आई गिरावट का सामना करने के लिए कर सकती है लेकिन इस तरह के फंड बहुत कम होते हैं.

ऐसा ही कुछ कोविड-19 महामारी के दौरान भी देखने को मिला था. जब कई संस्थान फंड होने के बावजूद भी आर्थिक संकट से जूझ रहे थे क्योंकि उनका ज्यादातर पैसा लंबे समय वाले प्रोजेक्ट्स में फंसा हुआ था और उसे तुरंत उपयोग नहीं लाया जा सकता था.

इसके अलावा, ट्यूशन फीस विश्वविद्यालयों के संचालन खर्च का केवल एक ही हिस्सा पूरा करती है. लेकिन राजनीतिक रूप से यह संवेदनशील और सीमित आय का स्रोत है. यही स्थिति सहायक आय की भी है, जो कि छात्रावास, खाना, टेक्नोलॉजी लाइसेंसिंग और प्रशासनिक शिक्षा से आती है. इसे आमतौर पर वैकल्पिक खर्च के लिए नहीं, बल्कि केवल मुख्य शैक्षिक कार्यो में फिर से निवेश के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

अमेरिका में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के कैंपस में छात्र
बजट कटौती के एलान के तुरंत बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को 48 घंटे में 11.4 लाख डॉलर का दान मिलातस्वीर: Faith Ninivaggi/REUTERS

अमेरिकी विश्वविद्यालय गैर-अमेरिकी संस्थानों से कैसे अलग हैं

ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अनुसार, अमेरिकी विश्वविद्यालय अपने वैश्विक समकक्षों से कहीं बड़े पैमाने पर काम करते हैं. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का कुल दान कोष लगभग 11 अरब डॉलर का है. जो कि हार्वर्ड के दान कोष के केवल पांचवे हिस्से के बराबर है.

वहीं, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का कोष लगभग 21 करोड़ पाउंड का है, और संस्था की कुल संपत्ति का मूल्य लगभग 2.62 अरब पाउंड है, जिसमें सभी कॉलेजों की संपत्तियां शामिल नहीं हैं.

यूरोप और चीन के अधिकांश हिस्सों में विश्वविद्यालयों की आय मुख्य रूप से सरकार की सब्सिडी और ट्यूशन फीस पर निर्भर करती है. जबकि यूरोपियन टर्शियरी एजुकेशन रजिस्टर के अनुसार, केवल कुछ ही यूरोपीय संस्थानों के पास एक अरब डॉलर से अधिक का कोष है.

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में फलीस्तीन के समर्थन में प्रदर्शनकरते एक छात्र को हिरासत में लेती पुलिस
इस्राएल के गाजा पर हमलों के विरोध में अमेरिका की कई यूनिवर्सिटियों में प्रदर्शन हुएतस्वीर: Mario Tama/AFP/Getty Images

शोध बजट में कटौती का असर

हालांकि, अमेरिका की शीर्ष यूनिवर्सिटियां बड़े दान-कोषों और विविध राजस्व स्रोतों का दावा करती हैं, लेकिन वैश्विक शोध में नेतृत्व बनाए रखने लिए वह मुख्य रूप से सार्वजनिक फंडिंग पर निर्भर करती है. यह निर्भरता अब गंभीर दौर से गुजर रही है. जिस कारण हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ने अब संभावित छंटनी की भी तैयारियां शुरू कर दी है, कई भवनों की लीज खत्म कर दी गई है और कुछ शोध ग्रांटों को भी निलंबित किया गया है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ, जो बायोमेडिकल शोध फंडिंग का प्रमुख स्रोत है. उसके बजट में भी 40 फीसदी की कटौती प्रस्तावित हुई है. कोलंबिया विश्वविद्यालय के वागेलोस कॉलेज ऑफ फिजिशियन एंड सर्जन ने भी तत्काल खर्चों पर रोक लगाने का निर्णय लिया है,  जो कि इस फैसले के गहरे प्रभावों की ओर साफ संकेत है.

यह कटौती केवल स्वास्थ्य विज्ञान तक ही सीमित नहीं है. बल्कि नासा का 7.6 बिलियन डॉलर का विज्ञान बजट भी मौजूदा प्रस्तावों के अनुसार लगभग आधा हो सकता है. नासा ने पुष्टि की है कि वह व्हाइट हाउस ऑफिस ऑफ मैनेजमेंट एंड बजट (ओएमबी) द्वारा प्रस्तुत बजट की समीक्षा कर रहा है. लेकिन ओएमबी ने सार्वजनिक रूप से इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है.

यह प्रभाव केवल प्रमुख विश्वविद्यालयों तक ही सीमित नहीं है. छोटे विश्वविद्यालय और वैज्ञानिक संस्थान, जो कि मुख्य रूप से संघीय समर्थन पर ही निर्भर हैं, उन पर इसका विशेष प्रभाव पड़ेगा. इससे स्थानीय नवाचार के विकास पर नकारात्मक असर हो सकता है और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था भी कमजोर हो सकती है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड एंड टेक्नोलॉजी के एटॉमिक स्पेक्ट्रोस्कोपी ग्रुप वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख प्रयोगशाला है. इसका उपयोग कॉस्मोलॉजी से लेकर निर्माण क्षेत्रों तक होता है.अब  इसके भी बंद होने की संभावना मंडरा रही है.

ज्यादातर शिक्षा और शोध संस्थानों के लिए, अब सवाल यह नहीं है कि वह प्रभावित होंगे या नहीं. बल्कि सवाल यह है कि इसका असर कितना गहरा होगा और यह क्षति कितने समय तक बरकरार रहेगी.