त्यौहारों का उत्सव है नागालैंड का हॉर्नबिल फेस्टिवल
पूर्वोत्तर भारत की तमाम जनजातियों के त्योहार और उत्सव अनोखे हैं. नागालैंड में हर साल हॉर्नबिल महोत्सव होता है जो 10 दिन तक चलता है. यह पूर्वोत्तर के सबसे प्रमुख उत्सवों में एक है जिसे त्योहारों का महोत्सव भी कहा जाता है.
हॉर्नबिल फेस्टिवल
हर साल दिसंबर के महीने में राजधानी कोहिमा से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित नागा हेरिटेज विलेज में इसका आयोजन किया जाता है. हॉर्नबिल फेस्टिवल में देशी-विदेशी पर्यटक बेहद चाव से हिस्सा लेते हैं.
संस्कृति की रक्षा
इस उत्सव में नागालैंड की सभी जनजातियां हिस्सा लेती हैं. इस त्योहार का मकसद नागालैंड की समृद्ध संस्कृति को पुनर्जीवित करना, उसकी रक्षा करना और देश-दुनिया को नागा समाज की संस्कृति से रूबरू कराना है.
स्थापना दिवस पर शुरुआत
पहला हॉर्नबिल उत्सव दिसंबर 2000 में आयोजित किया गया था. यह उत्सव नागालैंड सरकार आयोजित करती है. हर साल नागालैंड राज्य के स्थापना दिवस (1 दिसंबर, 1963) पर इस उत्सव की शुरुआत होती है.
हॉर्नबिल पक्षी के नाम पर
इस महोत्सव का नाम हॉर्नबिल पक्षी के नाम पर रखा गया है.नागा लोग इस पक्षी का बेहद सम्मान करते हैं और इसके पंख को अपनी पारंपरिक टोपी में लगाते हैं.
कई तरह की प्रदर्शनी
उत्सव में सबसे तीखी मिर्चों की प्रदर्शनी भी लगाई जाती है. इसके अलावा राज्य की परंपरागत कला जिसमें पेंटिंग, लकड़ी की नक्काशी और मूर्तियां शामिल हैं, भी प्रदर्शित की जाती है.
त्यौहारों का उत्सव
फेस्टिवल में फूलों के शो और बिक्री, सांस्कृतिक कार्यक्रम, फैशन शो, सौंदर्य प्रतियोगिता, पारंपरिक तीरंदाजी, नागा कुश्ती और स्वदेशी खेलों का आयोजन किया जाता है.
नागा लोगों का जीवन और इतिहास
इस उत्सव का सबसे बड़ा आकर्षण यहां के नागा नायकों की बहादुरी की प्रशंसा में गाए जाने वाले गीत हैं. यह गांव नागा के जीवन और उनके इतिहास के बारे में झलक दिखाता है.
दूसरे विश्वयुद्ध से जुड़ी प्रदर्शनी
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान कोहिमा युद्ध से जड़ी प्रदर्शनियां इस हॉर्नबिल फेस्टिवल का खास हिस्सा हैं. इसके लिए भी जोर शोर से तैयारी होती है.
तरह तरह के स्टॉल
महोत्सव के दौरान पारंपरिक नागा मोरंग प्रदर्शनी और कला और शिल्प, खाने-पीने की चीजों, हर्बल दवाओं के स्टाल लगाए जाते हैं.
हथियारों की प्रदर्शनी
उत्सव के दौरान द्वितीय विश्वयुद्ध में इस्तेमाल होने वाले हथियारों की प्रदर्शनी भी लगाई जाती है. इस उत्सव के दौरान प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध होता है