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आप्रवासियों की ज्यादा आबादी का मतलब ज्यादा अपराध नहीं

१९ फ़रवरी २०२५

जर्मनी में विदेशियों का अनुपात बढ़ने से अपराध दर में वृद्धि नहीं होती है. एक शोध संस्थान ने यह बात कही है. हालिया महीनों में देश में हुए कई बड़े अपराधों में शरणार्थी या विदेशी मूल के लोग शामिल रहे हैं.

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जर्मनी के माग्देबुर्ग में दिसंबर 2024 में हुए हमले के बाद मृतकों की याद में फूल और मोमबत्तियां रखते लोग.
जर्मनी में हो रहे आम चुनाव में आप्रवासन और अपराध सबसे बड़े मुद्दों में हैतस्वीर: Ronny Hartmann/AFP/Getty Images

म्यूनिख के इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक रिसर्च (आईएफओ) ने 23 फरवरी को होने वाले संसदीय चुनाव से पहले यह रिसर्च रिपोर्ट प्रकाशित की है. बीते महीनों में हुई कई हिंसक घटनाओं में आप्रवासियों का नाम आया है. इसी हफ्ते हो रहे आम चुनाव में आप्रवासन इन्हीं हमलों की वजह से सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है. 

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जर्मनी में हालिया हमलों की पृष्ठभूमि में एएफडी और सीडीयू ने इमिग्रेशन को सबसे अहम चुनावी मुद्दा बनाया तस्वीर: Kay Nietfeld/dpa/picture alliance

2018 से 2023 तक के पुलिस आंकड़ों का विश्लेषण करने पर आईएफओ संस्थान ने पाया कि "किसी इलाके में विदेशियों के बढ़ते अनुपात और अपराध दर के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है." रिसर्चर ज्यां-विक्टर अलीपोर के मुताबिक, यह बात शरणार्थियों पर भी लागू होती है.

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अपराध में विदेशियों का नाम ज्यादा क्यों

संस्थान ने ध्यान दिलाया है कि अपराध के आंकड़ों में विदेशियों का नाम उनकी आबादी के अनुपात से ज्यादा दिखता है. संस्थान के मुताबिक, प्रवासी यहां आने के बाद ज्यादातर शहरी इलाकों में बसते हैं जहां अपराध का खतरा आमतौर पर ज्यादा है, जर्मन लोगों के लिए भी. यह कम मायने रखता है कि विदेशी, औसतन युवा और ज्यादातर पुरुष होते हैं.

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रिसर्चर यूप आडेमा कहते हैं, "अगर आप इसके कारकों को गिनें तो विदेशियों की किसी एक क्षेत्र में आबादी और अपराध दर का आपस में कोई सांख्यिकीय संबंध नहीं है." उन्होंने कहा, "यह धारणा तर्कसंगत नहीं है कि विदेशियों या शरणार्थियों में अपराध करने की प्रवृति आबादी के हिसाब से तुलनात्मक रूप से मूल निवासियों (जर्मनों) से ज्यादा होती है."

यहां तक कि हत्या या यौन हमलों जैसे हिंसक अपराधों का भी विदेशियों या रिफ्यूजियों की बढ़ती आबादी के साथ कोई सांख्यिकीय संबंध नहीं दिखता.

चुनाव में छाया अपराध का मुद्दा

जर्मनी में संसदीय चुनाव के लिए 23 फरवरी को मतदान होने है. इससे पहले चुनाव प्रचार में आप्रवासन सबसे बड़े मुद्दे के तौर पर उभरा है. अब तक के सर्वेक्षण बता रहे हैं कि मध्य दक्षिणपंथी पार्टी सीडीयू/सीएसयू चुनाव में पहले नंबर पर है. धुर-दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी दूसरे नंबर पर चल रही है. इन दोनों पार्टियों ने आप्रवासन नीतियों को सख्त बनाने का वादा किया है. जर्मनी में बीते महीनों में हुए अपराध भी इसके पीछे एक वजह हैं.

इसी महीने म्यूनिख में मजदूर संघ की रैली में एक 24 वर्षीय हमलावर ने भीड़ पर गाड़ी चढ़ा दी थी, जिसमें दो लोगों की मौत हुई और करीब 30 लोग घायल हुए. दिसंबर 2024 में माग्देबुर्ग की क्रिसमस मार्केट में भी इसी तरह का हमला हुआ था, जिसमें छह लोगों की मौत और करीब 200 लोग घायल हुए थे.

जनवरी 2025 में जर्मनी के अशाफेनबुर्ग में एक पार्क में चाकू से हमला किया गया था जिसमें दो साल के बच्चे समेत दो लोगों की मौत हुई थी. अगस्त 2024 में जर्मनी के जोलिंगन शहर में भी चाकू से हमला हुआ था जिसमें तीन लोगों की जान चली गई थी. इन सभी घटनाओं में हमलावर विदेशी मूल के रहे हैं.

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आप्रवासियों में अपराध कैसे घटाया जाए

अलीपोर कहते हैं कि प्रवासी आबादी के बीच अपराध घटाने के लिए उन्हें लेबर मार्केट में जोड़ने की जरूरत है. ऐसी नीतियों की जरूरत है जो विदेशी डिग्रियों को मान्यता दे और किसी इलाके में मांग के हिसाब से शरणार्थियों को बसाने में मददगार हों.

वह कहते हैं, "प्रवासियों को कमाई के कानूनी साधन तेजी से मुहैया कराने से अपराध कम होंगे और साथ ही कामगारों की कमी से निपटने में भी यह मददगार होगा."

आरएस/एनआर (रॉयटर्स)