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प्रकृति और पर्यावरणसंयुक्त राज्य अमेरिका

गर्मी से मौत के लिए तेल कंपनियों पर पहला मुकदमा

स्टुअर्ट ब्राउन
१९ जून २०२५

बीपी और शेल जैसी बड़ी तेल और गैस कंपनियों के खिलाफ अमेरिका में एक शिकायत दर्ज की गई है, जिसमें कहा गया है कि उन्होंने जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दिया है. जिसकी वजह से सिएटल में एक महिला की मौत हो गई.

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सिएटल में एक पेड़ के नीचे अपने कुत्ते के साथ बैठी महिला आराम करते हुए
अमेरिका में अत्यधिक गर्मी से हुई एक मौत के मामले में बड़ी कंपनियों के खिलाफ मामला दायर हुा हैतस्वीर: Karen Ducey/REUTERS

28 जून 2021 को अमेरिका के शहर, सिएटल में तापमान 42 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया, जो कि अब तक का सबसे अधिक दर्ज तापमान था. उसी दिन, जुलियाना लियोन अपनी कार में बेहोश मिलीं और अत्यधिक गर्मी के कारण उनकी मौत हो गई.

अब उनकी बेटी, मिस्टी लियोन ने वॉशिंगटन की एक अदालत में सात बड़ी तेल और गैस कंपनियों पर इस मौत का मुकदमा दायर किया है. उनका आरोप है कि इन कंपनियों ने जीवाश्म ईंधन का उत्पादन और प्रचार करके खतरनाक गर्मी को बढ़ावा दिया है, जिससे उनकी मां की जान चली गई.

शिकायत में कहा गया है कि एक्सॉनमोबिल, शेवरॉन, शेल और बीपी जैसी कंपनियों को दशकों से यह पता था कि "उनके ईंधन उत्पाद धरती के तापमान को प्रभावित कर रहे है.” मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि इन कंपनियों ने जानबूझकर "जीवाश्म ईंधन पर आधारित ऐसा आर्थिक ढांचा” खड़ा किया है. जिससे और अधिक खतरनाक मौसमी आपदाएं बढ़ेंगी और इंसानों पर और खतरा बढ़ेगा.

न्यूयॉर्क सिटी के सेबिन सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज लॉ की ग्लोबल क्लाइमेट लिटिगेशन निदेशक, मारिया एंटोनिया टिग्रे का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से हुई मौत का इस तरह का यह पहला मुकदमा है. अगर मिस्टी लियोन यह मुकदमा जीत जाती हैं, तो यह जलवायु परिवर्तन से जुड़ी कानूनी लड़ाइयों में एक ऐतिहासिक मोड़ हो सकता है.

क्या है 35 सेल्सियस वेट टेंपरेचर जिसमें जान जा सकती है

टिग्रे बताती हैं कि अब तक जलवायु से जुड़े बहुत कम मामलों में कंपनियों को हर्जाना भरने का आदेश मिला है. हालांकि अगर सिएटल का यह केस सफल रहता है, तो आम लोग भी जीवाश्म ईंधन कंपनियों से जलवायु परिवर्तन में उनकी भूमिका के लिए मुआवजा और हर्जाना मांग सकते हैं.

केवल मुआवजा ही नहीं, बल्कि याचिकाकर्ता यह भी चाहती हैं कि आरोपी कंपनियां "जन जागरूकता अभियान” के लिए फंड दें, ताकि वर्षों से फैलाई गई गलत जानकारी को सुधारा जा सके. लियोन के अनुसार इस गलत जानकारी ने लोगों में यह भ्रम पैदा किया कि जीवाश्म ईंधन जलाने और पृथ्वी के तापमान बढ़ने के बीच कोई संबंध नहीं है.

शेवरॉन, बीपी, शेल और कोनोको फिलिप्स ने इस केस पर टिप्पणी करने के डीडब्ल्यू के अनुरोध का जवाब नहीं दिया.

ओलंपिया में 107 डिग्री फारेनहाइट का तापमान दिखाती घड़ी
अमेरिका और दुनिया के कई इलाकों में जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्मी बढ़ती जा रही हैतस्वीर: Ted S. Warren/AP/picture alliance

तेल कंपनियों ने मुकदमे के दावों को खारिज किया

दुनिया की सबसे बड़ी तेल और गैस उत्पादक कंपनी, शेवरॉन ने इस मुकदमे में लगाए गए आरोपों को खारिज किया है.

शेवरॉन के प्रवक्ता, थियोडोर बोट्रस जूनियर ने अमेरिकी प्रसारक, एनपीआर को बयान दिया कि एक व्यक्तिगत त्रासदी के सहारे जलवायु परिवर्तन पर राजनीति करना कानून, विज्ञान और सामान्य समझ, तीनों के खिलाफ है.

उन्होंने आगे कहा, "अदालत को इस असंभव से लगने वाले मुकदमे को भी उन कई निराधार जलवायु मुकदमों की सूची में शामिल कर देना चाहिए, जिन्हें राज्य और संघीय अदालतों ने पहले भी खारिज किया है.”

हालांकि विशेषज्ञ, मारिया एंटोनिया टिग्रे का मानना है कि यह केस "एक नए कानूनी आधार” की नींव तैयार कर सकता है. क्योंकि यह मुकदमा "टॉर्ट लॉ" पर आधारित है, ना कि उत्सर्जन कानून पर, जिस पर अब तक के ज्यादातर जलवायु संबंधी मुकदमे आधारित रहे हैं.

मेलबर्न के थिंक टैंक, क्लाइमेट फ्यूचर्स की शोधकर्ता, रेबेक्का मार्की-टॉलर के अनुसार, टॉर्ट लॉ का इस्तेमाल ऐसे मामलों में किया जाता है, जहां व्यक्ति जलवायु परिवर्तन से हुए नुकसान के लिए हर्जाने की मांग करता है.

उन्होंने समझाया कि अतीत में ऐसे ही मुकदमे बड़ी कंपनियों के खिलाफ लोगों को न्याय दिलाने का अहम जरिया बने है. उदाहरण के तौर पर, 2024 में पेनसिल्वेनिया के एक व्यक्ति को उसकी कंपनी से लगभग ₹32 करोड़ का मुआवजा मिला था, क्योंकि काम के दौरान एस्बेस्टस के संपर्क में आने से वह मेसोथेलियोमा (एक प्रकार का कैंसर) का शिकार हो गया था. उन्होंने कहा कि जलवायु से जुड़े मामले इससे अलग नहीं हैं.

क्लाइमेट इंटिग्रिटी सेंटर की लीगल वाइस प्रेसिडेंट, एलिसा जोहल ने बताया कि कई राज्य और स्थानीय सरकारें पहले से ही बड़ी तेल कंपनियों पर जलवायु धोखाधड़ी और हर्जाने के मुकदमे चला रही हैं. लेकिन यह मुकदमा इसलिए खास है क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी "व्यक्ति विशेष” ने खुद मुकदमा दायर किया गया है. ऐसे में यह "जवाबदेही तय करने की दिशा में एक बड़ा कदम” हो सकता है.

मार्की-टॉलर ने यह भी बताया कि इससे पहले दुनिया के दूसरे देशों में टॉर्ट लॉ के तहत दायर हुए जलवायु मुकदमे इस केस से सीधे तौर पर जुड़े ना भी हों, फिर भी "इस मामले के लिए एक मिसाल” बन सकते हैं.

2015 में नीदरलैंड्स में दायर हुआ ऐतिहासिक "उरजेंडा केस” जलवायु परिवर्तन पर दुनिया का पहला बड़ा नागरिक मुकदमा माना जाता है, जिसमें टॉर्ट लॉ के "खतरनाक लापरवाही” सिद्धांत का उपयोग किया गया था. इस केस में तर्क दिया गया था कि जलवायु परिवर्तन पर सरकार की निष्क्रियता नागरिकों के प्रति उसके "कर्तव्य” का उल्लंघन है.  जिसके के बाद, डच सरकार को उत्सर्जन में कटौती करने के लक्ष्य को कड़ा करना पड़ा था.

ऐसा ही मामला जर्मनी में एक पेरूवियन किसान ने ऊर्जा कंपनी, आरडब्ल्यूई के खिलाफ दायर किया था. इसमें किसान ने दावा किया कि आरडब्ल्यूई की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है और उसका घर भी खतरे में है. यह मुकदमा भी जलवायु परिवर्तन के कारण हुई क्षति के लिए मुआवजा मांगने की कोशिश थी.

हालांकि यह केस पूरी तरह सफल नहीं रहा, लेकिन शोधकर्ता रेबेक्का मार्की-टॉलर ने मई में आए अंतिम फैसले का जिक्र करते हुए कहा, "कोर्ट ने यह स्वीकार किया था कि एक निजी प्रदूषक अपने हिस्से के प्रदूषण के कारण हुई क्षति के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.”

जर्मनी में पेरु का किसान
जर्मनी में एक किसान ने जर्मन ऊर्जा कंपनी के खिलाफ जलवायु परिवर्तन के मामले में मुकदमा दायर कियातस्वीर: Alexander Luna/Germanwatch e.V.

हीटवेव के लिए जिम्मेदार, ‘एट्रिब्यूशन साइंस'

एट्रिब्यूशन साइंस, जलवायु मुकदमे में एक अहम भूमिका निभाने जा रहा है. यह एक वैज्ञानिक पद्धति है, जो यह बताती है कि जलवायु परिवर्तन ने हीटवेव, बाढ़ या जंगल की आग की कितनी संभावना बढ़ा दी है. मारिया एंटोनिया टिग्रे ने कहा कि यह विज्ञान "इस मुकदमे का मुख्य आधार” हो सकता है.

2021 में अमेरिका के पश्चिमी तट पर आई भीषण हीटवेव, जिसे "पैसिफिक नॉर्थवेस्ट हीट डोम” कहा गया था. उस समय के वैज्ञानिक विश्लेषण के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के बिना ऐसा होना लगभग असंभव था. इस रिसर्च में बताया गया कि लगातार तीन दिन तक चला रिकॉर्ड तोड़ तापमान जलवायु परिवर्तन के बिना तो "दुर्लभ” था.

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ऐसी भीषण गर्मी की घटनाएं, जो पहले 1000 साल में एक बार होती थीं. वह अब हर पांच से दस साल में होने की संभावना है क्योंकि ऐसा अनुमान है कि 2040 तक वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है.

संयुक्त राष्ट्र की 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, गर्मी एक "मौन हत्यारे” जैसी है क्योंकि साल 2000 से 2019 के बीच हर साल अत्यधिक गर्मी की वजह से औसतन 4,89,000 लोगों की मौत हुई है.

2021 की पैसिफिक नॉर्थवेस्ट हीट डोम घटना ने भी इस खतरे को उजागर किया, जिसमें अमेरिका और कनाडा में लगभग 850 लोगों की मौत ज्यादा गर्मी से हुई थी. मिस्टी लियोन के मुकदमे की सबसे बड़ी कानूनी चुनौती यह होगी कि वह अदालत को यह यकीन कैसे दिलाएंगी कि इसमें तेल कंपनियों की कितनी भूमिका थी यानी उन्होंने वैश्विक उत्सर्जन में कितना योगदान दिया है.

टिग्रे कहती हैं, "समस्या यह है कि अदालत को यह समझाना कठिन होगा कि किसी एक कंपनी ने इस गर्मी की लहर में कितना योगदान दिया है.”

मार्की-टॉलर ने यह भी यही सवाल उठाया, "अगर मान भी लिया जाए कि जलवायु परिवर्तन ने यह घटना उत्पन्न की है, लेकिन एक कंपनी की इसमें कितनी भूमिका निभाई है, यह पता करना बहुत मुश्किल होगा.”

नक्शा बनाकर जलवायु परिवर्तन से लड़तीं महिलाएं

जलवायु मुकदमों की एक "नई लहर”

विशेषज्ञों का मानना है कि "स्वास्थ्य से जुड़े तर्क” अब जलवायु मुकदमों में आम होते जा रहे हैं. साबिन सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज लॉ से संचालित क्लाइमेट चेंज लिटिगेशन डाटाबेस के अनुसार, अमेरिका और दुनिया भर में अब तक करीब 3,000 जलवायु मुकदमे दायर किए जा चुके हैं.

शोधकर्ता रेबेका मार्की-टॉलर का कहना है कि अगर वॉशिंगटन राज्य का यह मामला सफल होता है, तो यह एक मिसाल बन सकता है. यह  पहली बार "जीवाश्म ईंधन कंपनियों की गतिविधियों से किसी व्यक्ति को हुए नुकसान के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहरता है.”

मारिया एंटोनिया टिग्रे का मानना है कि इस मुकदमे की सफलता से "क्लाइमेट होमिसाइड” या "कॉरपोरेट मैनस्लॉटर” जैसे नए कानूनी सिद्धांतों को बल मिल सकता है यानी ऐसे मुकदमे आपराधिक तर्क से देखे जाएंगे. उन्होंने कहा, "अगर यह केस सफल रहता है, तो यह ऐसे मुकदमों की एक नई लहर को जन्म दे सकता है.”

इसका अर्थ यह है कि एक व्यक्ति की न्याय की लड़ाई, भविष्य में बड़ी कंपनियों की जवाबदेही तय करने का रास्ता खोल सकती है — और यह दुनिया भर में जलवायु न्याय के लिए एक नया अध्याय बन सकता है।