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जर्मनी में अब ज्यादा कपड़े फेंक रहे हैं लोग

२८ जनवरी २०२५

जर्मनी में फेंके जाने वाले कपड़ों की मात्रा लगातार बढ़ रही है. इसलिए रीसाइक्लिंग की बहुत जरूरत महसूस की जा रही है.

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फास्ट फैशन
नए कपड़े जल्दी जल्दी खरीदे जा रहे हैंतस्वीर: DreamstimexTea/Panthermedia/IMAGO

जर्मनी में फेंके जाने वाले कपड़े के कारण पैदा होने वाले कचरे की मात्रा लगातार बढ़ रही है. देश के ‘फेडरल स्टैटिस्टिकल ऑफिस' के मुताबिक, 2023 में जर्मन घरों से लगभग 1,75,000 टन कपड़ा कचरा इकट्ठा हुआ. यह आंकड़ा 2013 की तुलना में 55 फीसदी ज्यादा है. प्रति व्यक्ति औसतन दो किलो कचरा पैदा हुआ.

हालांकि, यह 2020 के रिकॉर्ड से थोड़ा कम है. उस साल, कोरोना महामारी के दौरान, कपड़ा कचरा 1,87,000 टन तक पहुंच गया था.

यूरोपीय संघ में 2025 से एक नया कानून लागू हुआ है, जिसमें कहा गया है कि पुराने कपड़े और टेक्सटाइल को सामान्य कचरे से अलग फेंकना जरूरी होगा. इससे कपड़े के बेहतर रीसाइक्लिंग और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी.

एक दशक में तेजी से बढ़ा कचरा

पिछले 10 सालों में कपड़े के कचरे में यह बढ़ोतरी तेज फैशन (फास्ट फैशन) की वजह से हुई मानी जाती है. जर्मनी इस्तेमाल किए गए कपड़ों का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है. 2022 में देश ने 4,62,500 टन पुराने कपड़े निर्यात किए. इनमें से सबसे ज्यादा कपड़े पोलैंड (16.9 फीसदी) और नीदरलैंड्स (15.2 फीसदी) को भेजे गए. इन देशों में इन कपड़ों को छांटा और फिर निर्यात किया जाता है. 

जर्मनी के फोर्सा इंस्टिट्यूट ने 2022 में एक सर्वे किया था, जिसके मुताबिक, जर्मनी में 86 फीसदी लोग पुराने कपड़े दान करते हैं. इनमें से 94 फीसदी यह सुनिश्चित करते हैं कि वे केवल पहनने लायक कपड़े ही दें.

लेकिन समस्या यह है कि दान किए गए कपड़ों का एक बड़ा हिस्सा इस्तेमाल के लायक नहीं होता. यह या तो विदेशों में भेजा जाता है या फिर कचरे में फेंक दिया जाता है.

फास्ट फैशन से बढ़ी समस्या

विशेषज्ञों के मुताबिक कपड़ा-कचरे की बढ़ती समस्या का मुख्य कारण फास्ट फैशन है. इसमें सस्ते और कम गुणवत्ता वाले कपड़े बनाए जाते हैं, जो जल्दी खराब हो जाते हैं और रीसाइक्लिंग में मुश्किल पैदा करते हैं.

जर्मनी में एचएंडएम जैसे ब्रांड्स की लोकप्रियता इसका एक उदाहरण है. एचएंडएम ने 2022 में जर्मनी में 3.2 बिलियन यूरो की बिक्री की. इसी तरह, जालांडो जैसे ई-कॉमर्स ब्रांड भी तेज फैशन को बढ़ावा दे रहे हैं.

मैकिन्जी एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में एक फीसदी से भी कम कपड़ा-कचरा फाइबर-टु-फाइबर रीसाइक्लिंग से गुजरता है. इसकी वजह कचरे को इकट्ठा करने और छांटने में आने वाली दिक्कतें हैं.

ग्लोबल साउथ में कचरा और रीसाइक्लिंग

जर्मनी न केवल अपने कचरे से जूझ रहा है, बल्कि इसका बड़ा हिस्सा ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों में निर्यात भी करता है. 2021 में जर्मनी ने अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा टेक्सटाइल निर्यातक होने का दर्जा हासिल किया था.

भारत के पानीपत को इस कचरे का एक बड़ा हिस्सा निर्यात होता है. पानीपत में पश्चिमी देशों से आने वाले कपड़ों को रिसाइकिल किया जाता है, नए यार्न बनाए जाते हैं और कपड़े फिर से बुने जाते हैं.

यह स्थानीय रोजगार और संसाधनों की बचत करता है. लेकिन इसमें "रीसाइक्लिंग उपनिवेशवाद" का खतरा है. पर्यावरण के लिए काम करने वाली एक संस्था कोश (सीओएसएच) की एक रिपोर्ट के अनुसार, "ग्लोबल नॉर्थ (विकसित देश) अपना कचरा सस्ते श्रम वाले ग्लोबल साउथ में भेजते हैं. इससे पर्यावरण और समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है."

यूरोपीय संघ का नया कानून

1 जनवरी 2025 से यूरोपीय संघ में नया कानून लागू हो गया है. इस नए कानून में पुराने कपड़ों को सामान्य कचरे से अलग फेंकने का नियम बनाया गया है. इससे रीसाइक्लिंग में सुधार होगा.

बेकार कपड़ों से ऐसा कमाल देखा है कभी

मैकिन्जी की रिपोर्ट बताती है कि यूरोप में टेक्सटाइल रीसाइक्लिंग को बढ़ाने के लिए 6-7 अरब यूरो का निवेश करना होगा. इससे 2030 तक 18-26 फीसदी कपड़ा-कचरे को रीसाइकिल किया जा सकेगा.

लेकिन यह कदम आसान नहीं है. रीसाइक्लिंग तकनीक महंगी है और कपड़ों की घटती गुणवत्ता इसे और मुश्किल बना रही है.

जर्मनी के लिए यह समस्या सिर्फ स्थानीय नहीं है. यह एक वैश्विक मुद्दा है. बेहतर तकनीक, सहयोग, और न्यायसंगत व्यवस्था के जरिए ही इस समस्या का समाधान संभव है.