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कानून और न्यायजर्मनी

जर्मनी में मजदूर संघ इतने शक्तिशाली क्यों हैं?

१६ जुलाई २०२५

जर्मनी में टैक्स सुधारों के लिए सक्रिय एक लेबर यूनियन ने मांग की है कि आम कर्मचारियों के लिए टैक्स रिटर्न फाइल करने की अनिवार्यता को खत्म किया जाए. लेकिन जर्मनी में मजदूर संघ इतने शक्तिशाली कैसे हैं?

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27 मार्च, 2023 को जर्मनी के हामबुर्ग में वेतन विवाद को लेकर जर्मन ट्रेड यूनियन वर्डी द्वारा आहूत राष्ट्रव्यापी हड़ताल के दौरान बंदरगाह पर 'लैंडुंग्सब्रुएकेन' के सामने प्रदर्शन करते प्रदर्शनकारी
तस्वीर: Fabian Bimmer/REUTERS

जर्मनी विश्व भर में अपनी कई चीजों के लिए मशहूर है, जैसे इसकी शक्तिशाली अर्थव्यवस्था, पर्यटनइंजीनियरिंग, संगीत और उच्च गुणवत्ता वाली जीवनशैली. कई मामलों में यह देश बहुत सख्त भी माना जाता है, जैसे दस्तावेजीकरण और डेटा की सुरक्षा और संग्रहण. इन दो चीजों में किसी को भी छूट नहीं मिलती. और चूंकि दस्तावेजीकरण इतना है, इसलिए हर प्रक्रिया लंबी और धीमी, दोनों हो जाती है. और इसका अनुभव तब भी होता है जब कोई यहां अपना टैक्स रिटर्न फाइल करता है.

क्या है लेबर यूनियन की मांग?

कुछ समय से जर्मनी में टैक्स रिटर्न दर्ज करने की अवधि चल रही थी जो जुलाई के अंत में समाप्त होने वाली है. इस डेडलाइन के चंद दिनों पहले ही स्थानीय लेबर यूनियन ने एक बड़ी मांग उठाई है. टैक्स नियमों से जुड़ी 'डॉयचे श्टॉयर गेवेर्कशाफ्ट' (DSTG) नामकी एक प्रमुख लेबर यूनियन का कहना है कि कामगारों के लिए टैक्स रिटर्न दर्ज करने की प्रक्रिया को खत्म कर दिया जाना चाहिए और यह काम या तो उनकी कंपनी करे, या फिर सरकार.

फुंक मीडिया ग्रुप को दिए एक बयान में यूनियन लीडर फ्लोरियान कुब्लर ने कहा, "हम चाहते हैं कि टैक्स कानून को सरल बनाया जाए – कम फॉर्म, कम दस्तावेजीकरण, और डिजिटल समाधान को बढ़ाया जाए.”

कुब्लर ने कहा, "इसके बजाय, टैक्स रिटर्न पूरी तरह से स्वचालित रूप से तैयार किया जाए, और कर्मचारी को केवल इसकी समीक्षा करनी होगी और जरूरत पड़ने पर इसमें संशोधन करना होगा.” यह न केवल तकनीकी रूप से संभव है, बल्कि ऑस्ट्रिया जैसे देशों में इसे पहले ही सफलतापूर्वक लागू किया जा चुका है.

उनकी राय में, पेंशनभोगियों को कर रिटर्न दाखिल करने की बाध्यता से भी छूट दी जानी चाहिए. इसकी जगह "पेंशन फंड द्वारा सीधे एक स्वचालित कर कटौती लागू की जानी चाहिए.”

बाकी देशों से थोड़ा अलग है जर्मन दस्तावेजीकरण

डिजिटाइडेशन में काफी आगे निकल चुके भारत जैसे देश में जो काम सरल हो चुके हैं, उनके लिए आज भी जर्मनी में काफी दस्तावेजीकरण होता है. यह केवल ऑनलाइन या डिजिटल माध्यम से ही नहीं बल्कि ऑफलाइन, यानी पेपर के माध्यम से भी होता है. जर्मनी उन चुनिंदा देशों में से एक है जहां आज भी पोस्टल सेवा जोरों-शोरों से काम कर रही है और जहां आज भी किसी भी जरूरी संदेश या औपचारिक संचार के लिए कंपनियां, सरकारी संस्थान और खुद सरकारें आपको पत्र भेजती हैं.

यही कारण है कि आपको जर्मनी में जर्मनी में निवास स्थान बनाने या बदलने के बाद हर किसी को अपना पता पंजीकृत कराना ही होता है, ताकि आपको चिट्ठी भेजी जा सके. यदि ऐसा नहीं होता है तो आपके पास सरकार या कंपनी, किसी के साथ भी औपचारिक पत्राचार का कोई जरिया नहीं होगा. आपके पते से ही आपका सोशल सिक्योरिटी नंबर भी जुड़ा होता है. इसके बिना जर्मन प्रणाली में मान लीजिए कि आपकी गिनती ही नहीं होती.

जर्मन लोगों का तकनीक पर हमेशा संशय

जर्मनी को भले ही दुनिया के सबसे विकसित देशों में गिना जाता हो लेकिन जर्मन जनता के लिए विकास का अर्थ केवल हर चीज को डिजिटल बना देना नहीं है. टेक्निकरडार, एकाटेक - नेशनल साइंस एंड इंजीनियरिंग अकादमी और कोर्बर फाउंडेशन द्वारा किया गया एक सर्वेक्षण दिखाता है कि सर्वे में हिस्सा लेने वाले 73.7 प्रतिशत लोग ऐसी टेक्नोलॉजी चाहते हैं जो न्यायपूर्ण हो और पर्यावरण संरक्षण में मददगार भी.

सर्वे में ये भी पता चला है कि अधिकांश लोग (54.5 प्रतिशत) भले ही मानते हैं कि चीजें डिजिटल होने से उनका जीवन आसान हो जाएगा, लेकिन उससे ज्यादा यानी करीब 60.6 प्रतिशत लोग चिंतित भी हैं कि इससे वे अपने डेटा और निजता पर नियंत्रण खो देंगे.

जर्मनी में टैक्स फाइल करने में दिक्कत

यदि आप गूगल पर जर्मनी में टैक्स फाइल करने की प्रक्रिया ढूंढेंगे तो आपको ऐसे अनगिनत वीडियो और लेख मिल जाएंगे जो आपको शुरू से लेकर अंत तक समझाते हैं कि टैक्स रिटर्न कैसे फाइल करना है. लेकिन ये लेख और वीडियो इतनी बड़ी तादाद में इसलिए हैं क्योंकि आम जनता के लिए जर्मनी में टैक्स फाइल करना काफी कठिन है.

जर्मनी में अलग अलग टैक्स क्लास होते हैं जो आपके सिंगल, शादीशुदा, या बच्चों वाले होने के ऊपर आधारित होते हैं. फिर इनमें भी अलग श्रेणियां होती हैं, जैसे कि सिंगल पिता या मां तो नहीं, उसमें भी शादी हुई है या नहीं, इत्यादि. ये भी जानना जरूरी है कि टैक्स रिटर्न में से किस मदों पर किया गया खर्च रिफंड कराया जा सकता है और जर्मनी में काम करने वाले गैर जर्मन लोगों के लिए भाषा की चुनौती भी होती है. इसके ऊपर से अगर वे किसी पेशेवर से ये काम कराते हैं तो उसकी महंगी फीस को मिलाकर यह पूरी प्रक्रिया और भी कठिन हो जाती है.

जर्मनी में श्रमिक संघ का दबदबा

जर्मनी में कर्मचारियों के हित के लिए खड़े होना और उनके लिए मांगें करना जर्मनी के श्रमिक संघों के लिए कोई नई बात नहीं है. जर्मनी में श्रमिक संघ ऐतिहासिक, कानूनी, सांस्कृतिक और आर्थिक वजहों के कारण मजबूत हैं और इन संघों ने हमेशा ही प्रभावशाली श्रम वातावरण को बढ़ावा दिया है.

जर्मनी में बड़ी कंपनियों (जिनमें 500 से 2,000 कर्मचारी हैं) में कर्मचारी फैसले लेने की प्रक्रिया में कानूनी रूप से शामिल हो सकते हैं, और उन फैसलों को बदलने या उनपर बातचीत करने का हक भी रखते हैं. ऐसी प्राइवेट कंपनियों में कर्मचारियों के प्रतिनिधि शेयरधारकों के साथ सुपरवाइजरी बोर्ड में भी हिस्सा लेते हैं. 2,000 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनियों में, कर्मचारियों के प्रतिनिधियों को 50 प्रतिशत सीटें मिलती हैं. इसे जर्मन में 'मिटबेश्टिमुंग' (निर्णय लेने में प्रबंधन और श्रमिकों के बीच सहयोग) कहा जाता है. इसके अलावा कर्मचारियों की बिना बताये या अनुचित बर्खास्तगी भी नहीं की जा सकती. उन्हें ऐसी बर्खास्तगी के खिलाफ कानूनी सुरक्षा मिली हुई है.

जर्मन संस्कृति में ‘सोशल पार्टनरशिप' का तरीका भी कर्मचारियों की जगह कंपनी में मजबूत करता है. इसके तहत निरंतर टकराव के बजाय, यह व्यवस्था सहयोग और बातचीत को प्रोत्साहित करती है, जिससे यूनियनों को अन्य देशों की तुलना में अधिक सम्मान मिलता है और उनमें आक्रामकता कम होती है.

द्वितीय विश्व युद्ध भी मजबूत यूनियन की वजह

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, जर्मनी ने लोकतांत्रिक पूंजीवाद के विचार के साथ अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण किया. इसमें मजबूत मजदूर संघ भी शामिल थे ताकि पहले जैसे टकराव रोके जा सकें और शांति बनी रहे. यूनियनों को लोकतांत्रिक व्यवस्था में शामिल किया गया, जिससे उन्हें वैधता और राजनीतिक प्रभाव मिला.

युद्ध की तबाही और उसके बाद अलाइड नेशंस के कब्जे ने सामाजिक कल्याण, मजदूर अधिकारों और अर्थव्यवस्था में लोकतांत्रिक भागीदारी के मूल्यों पर यूनियनों के संगठित होने को भी बढ़ावा दिया. कार्ल मार्क्स जैसे अर्थशास्त्री और दार्शनिक के जर्मनी में होने और उनके द्वारा बताए गए अर्थव्यवस्था चलाने के तरीकों ने भी जर्मन जनता पर काफी प्रभाव डाला है. जर्मनी में भले ही यूनियनें मजबूत हैं, लेकिन वास्तविक सदस्यता में गिरावट आ रही है. खासकर पूर्व जर्मनी और नौजवान कामगारों के योगदान में कमी देखने को मिल रही है.

श्रमिक संघ लंबे समय से बड़ी सफलताएं हासिल करता आ रहा है, खासकर सामूहिक सौदेबाजी पर चर्चा और मजदूर अधिकारों के मामले में. जैसे 1990 में मजदूर संघों ने हफ्ते में 35 घंटा काम करने की मांग मनवा ली थी. 2010 में उन्होंने स्टील उद्योग में अस्थायी मजदूरों के लिए समान वेतन की मांग भी मनवाई. 2018 में आईजी मेटल के मजदूरों की हड़ताल हुई जिसमें काम करने के घंटों, बच्चों की देखभाल के समय और वेतन में 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी की मांग उठाई गई थी. ये सभी मांगें पूरी मानी गईं. हालांकि वेतन में 6 के बजाय 4.3 प्रतिशत का ही इजाफा हो पाया. इसके अलावा, हाल ही में जर्मनी की राष्ट्रीय रेलवे कंपनी डॉयचे बान की लगातार चली हड़तालों के बाद रेलवे कर्मचारियों को 2023-2024 में बेहतर वेतन भी मिलने लगा.