भारत और जर्मनी, एक-दूसरे को कितनी राहत दे पाएंगे?
३ सितम्बर २०२५जर्मनी के विदेश मंत्री योहान वाडेफुल ने द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर भारत के सकारात्मक रुख का स्वागत किया है. वाडेफुल की दो दिन की भारत यात्रा बुधवार (3 सितंबर) को संपन्न हुई. यात्रा के दौरान उन्होंने वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की.
भारत की यात्रा पर जर्मन विदेश मंत्री, कारोबारी संबंध मजबूत करने पर जोर
ईयू और भारत की ट्रेड डील पर जर्मनी ने क्या कहा?
जयशंकर के साथ मीटिंग में वाडेफुल ने कहा, "मुझे खुशी है कि संभावनाओं को लेकर आप भी उतने ही आशावादी हैं, जितना मैं हूं." वाडेफुल ने यह उम्मीद भी जताई कि कुछ महीनों में भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) पूरा हो जाएगा. उन्होंने कहा, "अगर बाकी (देश) व्यापार में रुकावट खड़ी कर रहे हैं, तो हमें उन्हें घटाकर जवाब देना चाहिए."
भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने भी व्यापार वार्ता में आगे बढ़ने पर जोर दिया. उन्होंने जर्मनी से द्विपक्षीय व्यापार दोगुना करने की अपील की. जयशंकर ने कहा कि ईयू से अपने संबंध मजबूत करने और ट्रेड वार्ता को गति देने के लिए भारत, जर्मनी से सहयोग की अपेक्षा करता है.
भारत और ईयू, दोनों के लिए लंबे समय से ट्रेड वार्ता होती और लटकती आ रही है. करीब आठ साल तक थमी रहने के बाद बातचीत 2021 में फिर शुरू हुई. सहमतियां अब भी नहीं बनी हैं. ईयू का जोर है कि भारत, कारों और डेयरी उत्पादों से आयात शुल्क घटाए. साथ ही, वह भारतीय उत्पादों पर जलवायु और श्रम नियम सख्त करना चाहता है.
ट्रंप के टैरिफ, भारत का रुख
वाडेफुल की इस यात्रा के समांतर वैश्विक भूराजनीति में ट्रेड और टैरिफ, दो गर्मागर्म कीवर्ड हैं. भारत की अमेरिका से ठनी हुई है. डॉनल्ड ट्रंप ने भारतीय सामानों पर लगाया टैरिफ दोगुना कर दिया. बाद में आया 25 प्रतिशत टैरिफ खासतौर पर रूसी तेल खरीदने के कारण लगा.
ईयू को भी भारत और रूस की कारोबारी घनिष्ठता से शिकायत रही है. भारत, अमेरिका और ईयू दोनों की आपत्तियों की निंदा करता रहा है. नई दिल्ली का पक्ष है कि रूसी तेल खरीदने पर उसे निशाना बनाना गलत है, क्योंकि वॉशिंगटन और ब्रसेल्स खुद भी मॉस्को से व्यापार कर रहे हैं.
शीत युद्ध का दौर याद करके वाडेफुल ने क्या कहा?
आजाद देश बनने के बाद से ही भारत, वैश्विक भूराजनीति की खेमेबाजियों के बरक्श खुद को गुटनिरपेक्ष का समर्थक बताता रहा है. रूस के साथ व्यापारिक संबंधों पर भी भारत का रुख यही कहता है कि उसके फैसले, घरेलू जरूरतों और राष्ट्रीय हित के अनुरूप हैं. भारत की इस नीति के ऐतिहासिक संदर्भों का जिक्र विदेश मंत्री वाडेफुल ने भी किया.
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मीडिया के एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, "जब आप भारत के इतिहास को देखते हैं, तो यह स्पष्ट है कि जब मैं किशोर था और स्कूल गया, और फिर जब यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की, तब मैंने भारत को एक गुट-निरपेक्ष देश के रूप में जाना. उस बात ने इस देश पर अपनी छाप छोड़ी है और इसे जर्मनी से अलग करती है."
इसी क्रम में आगे शीत युद्ध का उल्लेख करते हुए वाडेफुल ने कहा, "कोल्ड वॉर के दौरान, हमारा सोवियत संघ से विरोध था. दुर्भाग्य से, चूंकि हम सोचते थे कि हम उससे उबर जाएंगे और हम वापस एक ऐसी स्थिति में हैं, जहां हम रूस के आमने-सामने हैं. रूस और यूरोप के बीच विरोध है, क्योंकि वहां अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है. हम खुद को फिर से इस हालत में पा रहे हैं, और भारत खुद को एक अलग स्थिति में पा रहा है."
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि शीत युद्ध का तनाव एक नए रूप में वापसी कर चुका है. युद्ध और वैचारिक टकराव के लंबे दशकों के बाद यूरोप में फिर से सैन्य संघर्ष चालू है. हालांकि, व्यापारिक और आर्थिक चुनौतियों के बीच खेमों का बंटवारा पहले की तरह स्पष्ट नहीं है.
भारत सरीखे देश पश्चिमी देशों और रूस के बीच अपने लिए एक मनमाफिक संतुलन बिठाने की कोशिश में हैं. साथ ही जर्मनी जैसे देश चीन से आत्मनिर्भरता घटाने, व्यावसायिक हितों में विविधता लाने और अपनी आर्थिक चुनौतियों से पार पाने के लिए भारत के साथ संतुलन बनाने की चाहत रखते हैं.
भारत और जर्मनी, दोनों को एक-दूसरे की जरूरत?
साल 2011 से भारत और जर्मनी की सरकारें एक वार्षिक संवाद करती हैं. इसे कहा जाता है, इंटरगवर्मेंटल कंसल्टेशन. हालिया सालों में दोनों का पारस्परिक संवाद बढ़ा है. भूतपूर्व जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स तीन बार भारत यात्रा पर गए. उनका आखिरी दौरा करीब एक साल पहले अक्तूबर 2024 में हुआ था. इसमें शॉल्त्स के मंत्रिमंडल के सदस्यों में आर्थिक मामलों के मंत्री रोबर्ट हाबेक और श्रम मंत्री हुबर्टस हाइल भी थे.
वाडेफुल के साथ भी एक काफी बड़ा कारोबारी प्रतिनिधिमंडल भारत गया. इसमें रक्षा, चिकित्सा तकनीक और एयरोस्पेस कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल थे. अपनी यात्रा की शुरुआत में ही वाडेफुल ने फोकस स्पष्ट करते हुए सुरक्षा, हथियारों में सहयोग और आर्थिक संबंधों का दायरा बढ़ाने की बात कही. उन्होंने कहा कि यह दोनों देशों के हित में है.
टैरिफ की जंग और भारत का बढ़ता महत्व
जर्मनी में कामगारों की गंभीर कमी देश की आर्थिक उत्पादकता पर असर डाल रही है. इस कमी को पाटने में जर्मनी, भारत की बड़ी भूमिका देखता है. इस जरूरत को दोहराते हुए वाडेफुल ने भी कहा, "जर्मनी को उच्च प्रशिक्षित कामगारों की तत्काल जरूरत है." उन्होंने ध्यान दिलाया कि भारत में ऐसे कई लोग हैं, खासतौर पर आईटी सेक्टर में.
कई विशेषज्ञ रेखांकित करते हैं कि संस्थागत भिन्नताओं के बावजूद भारत और जर्मनी के पास एक-दूसरे के लिए काफी कुछ है. इसमें तकनीक, जलवायु, श्रम और उत्पादन-निर्माण जैसे विषय भी शामिल हैं. और सबसे बढ़कर, ट्रंप के अप्रत्याशित व्यवहार और कार्यशैली के बीच दोनों देशों को आर्थिक सहयोग की जरूरत है.