जर्मनी के लोगों को युद्ध से ज्यादा महंगाई का डर
२४ जुलाई २०२५हाल ही में एक सर्वे ने यह बताया कि जर्मनी के लोगों को जंग से ज्यादा महंगाई से डर लगता है. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में महंगाई पिछले एक साल के दौरान 1.6 फीसदी से 2.6 फीसदी के बीच रही है. 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पैदा हुए ऊर्जा संकट में यह 70 साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई थी.
गुरुवार को जब यूरोपीय सेंट्रल बैंक ब्याज दरों की घोषणा करेगा तो यही उम्मीद है कि इसमें कोई फेरबदल नहीं होगी. एक साल में यह पहली बार होगा इससे पहले लगातार आठ बार ब्याद दरों में कटौती की गई थी. महंगाई के आंकड़े बता रहे हैं कि देश में कीमतें अब स्थिर हो रही हैं.
उस लिहाज से देखा जाए तो फिलहाल हालात कुछ समय पहले की तुलना में बेहतर हुए हैं लेकिन घरेलू अर्थव्यवस्था अब भी वहीं अटकी हुई है. दूसरी तरफ अमेरिकी आयात शुल्कों के डर से भी लोग मुट्ठी खोल कर खर्च करने में हिचकिचा रहे हैं.
कीमतें कम नहीं हुई हैं
महंगाई की दर भले ही पिछले कई महीनों से नीचे जा रही है लेकिन कीमतें अब भी 2020 के स्तर से करीब 20 फीसदी से ज्यादा ऊपर हैं. बिजली से लेकर खाने पीने की चीजें और खाली वक्त में की जाने वाली गतिविधियों की कीमतें ऊंची रहने की शिकायत लोग लगातार कर रहे हैं.
27 साल के टिम श्नाइडर छात्र हैं. वह बर्लिन के बाहर अपने पसंदीदा म्यूजिक फेस्टिवल में जाना चाहते थे. तीन दिन के पास की कीमत जब 220 यूरो होने की बात पता चली तो उन्होंने अपना इरादा बदल लिया. 2019 की तुलना में यह करीब दोगुना है. श्नाइडर ने सामाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "पिछले 2-3 सालों में यह बेहद महंगा हो गया है...यह पागलपन है."
ओस्नाब्रुक के अलकीम एयरोनॉटिक्स की पढ़ाई कर रहे हैं, उन्हें भी अपने गोताखोरी के शौक में कमी करनी पड़ी है और वह खाने के लिए सबसे सस्ता पास्ता खरीद रहे हैं. उनका कहना है, "बढ़ती कीमतों के साथ जिंदगी ज्यादा मुश्किल हो गई है."
लंबे समय तक महंगाई के बने रहने से कुछ असामान्य उपाय करने की मांग उठ रही है. इस महीने की शुरुआत में जब गर्मी काफी ज्यादा बढ़ गई थी तब ग्रीन पार्टी के सांसदों ने अनुरोध किया कि आइसक्रीम की कीमत की सीमा 50 सेंट प्रति स्कूप तय की जाए ताकि गरीब परिवारों के बच्चे भी इसका मजा ले सकें. इसे पहले जर्मनी में आइसक्रीम की कीमतें बढ़ने की खबरें आई थीं.
खर्च करने से डर रहे हैं लोग
जीएफके इंस्टिट्यूट फॉर मार्केट डिसीजंस और सर्वे करने वाली एजेंसी जीएफके की तरफ से मई में जारी एक सर्वेक्षण के नतीजे में बताया गया कि बचत की दरें बढ़ रही हैं. सर्वे के मुताबिक उपभोक्ताओं का मनोबल अब भी "काफी गिरा हुआ है." इसके लिए प्रमुख रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उनकी अनिश्चित कारोबारी नीतियों को जिम्मेदार बताया जा रहा है. इसके साथ ही कमजोर पड़ी घरेलू अर्थव्यवस्था की भी भूमिका है जो पिछले दो साल से मंदी की चपेट में है. आधिकारिक आंकड़े बता रहे हैं कि जर्मनी में खुदरा बिक्री मार्च, अप्रैल और मई में लगातार नीचे गई. ऐसे में जर्मन ग्राहक दुकानों पर खरीदारी के लिए निकल पड़ेंगे इसके आसार बहुत कम ही नजर आ रहे हैं.
ट्रंप के आयात शुल्कों को लेकर कारोबारियों में भी चिंता है जो आम लोगों तक पहुंच रही है. जर्मनी के लोग 2022 में मिले महंगाई के सदमे से अब भी नहीं उबर पाए हैं. आईडब्ल्यू इकोनॉमिक रिसर्च इंस्टिट्यूट के माथियास डियरमायर का कहना है, "सच्चाई के साथ लोगों की धारणा के जुड़ने में एक से पांच साल तक का समय लग सकता है."
सोच और सच में फासला
कोलोन के इस इंस्टिट्यूट ने पिछले साल दिसंबर में 3,000 लोगों पर सर्वे किया था. औसत रूप से लोगों का मानना था कि 2024 में महंगाई की दर 15.3 फीसदी रही होगी जबकि वास्तव में यह सिर्फ 2.2 फीसदी थी. धुर दक्षिणपंथी एएफडी और धुर वामपंथी बीएसडब्ल्यू जैसी पार्टियों के समर्थकों में तो महंगाई को लेकर सोच और सच्चाई का फासला और भी बहुत ज्यादा था.
ऐतिहासिक अनुभवों ने भी जर्मन लोगों के मन में महंगाई के प्रति घृणा की जड़ें जमाई है. 1920 के दशक में भारी महंगाई ने ही नाजियों के उदय का रास्ता बनाया था. हाल ही में सेना के रिसर्च सेंटर के एक सर्वे ने दिखाया कि जर्मन ग्राहक पश्चिमी देशों और रूस की लड़ाई से ज्यादा बढ़ती कीमतों से खौफ खाते हैं.
यूरोजोन के पारंपरिक पावर हाउस की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए लोगों का खर्च बढ़ना जरूरी है. उत्पादन क्षेत्र में लंबे समय से चली आ रही कमजोरी भी इसी से दूर होगी. हालांकि महंगाई बढ़ने की यादें लोगों के मन में अभी ताजा हैं और ऐसा लगता नहीं कि वह जल्दी ही खर्च करने आगे आएंगे.