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जर्मन अदालत ने शरणार्थी के फोन की जांच को ठहराया अवैध

१७ फ़रवरी २०२३

जर्मनी की सर्वोच्च प्रशासनिक अदालत ने फैसला सुनाया है कि देश के प्रवासन अधिकारियों को एक अफगान शरणार्थी के फोन की तलाशी लेने का कोई अधिकार नहीं है. माना जा रहा है कि इस फैसले के दूरगामी और बड़े परिणाम हो सकते हैं.

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जर्मनी
जर्मनी में डाटा सुरक्षातस्वीर: Jens Schlüter/AFP/Getty Images

जब एक अफगान महिला* जर्मनी आई और वैध पासपोर्ट के बिना साल 2019 में उन्होंने शरण के लिए आवेदन किया, तो जर्मनी के फेडरल ऑफिस फॉर माइग्रेशन एंड रिफ्यूजीज यानी बीएएमएफ के अधिकारियों ने पहला काम यह किया कि उनके मोबाइल की जांच-पड़ताल की जिससे मिली जानकारी का उपयोग बाद में वो उस महिला की शरण आवेदन प्रक्रिया में करते.

गुरुवार को, लीपज़िग में संघीय प्रशासनिक न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यह गैरकानूनी था क्योंकि अधिकारियों ने पहले ही शरणार्थी की पहचान की पुष्टि करने के लिए उसे कम परेशान नहीं किया था.

फैसले की घोषणा के बाद वादी के एक वकील और सोसाइटी फॉर सिविल राइट्स (जीएफएफ) नामक एनजीओ की कानूनी टीम की सदस्य ली बेकमैन ने डीडब्ल्यू को बताया, "अदालत ने एक व्यक्तिगत मामले पर निर्णय दिया है लेकिन जर्मनी में हमारे मुवक्किल के साथ जो हुआ वह यहां के लिए आम बात है. अब यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित हो गया है कि बीएएमएफ में मौजूदा समय में जारी यह व्वस्था अवैध है. जिसका अर्थ है कि बीएएमएफ को इसे रोकना चाहिए.”

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इस अफगान शरणार्थी ने साल 2020 में बीएएमएफ पर मुकदमा दायर किया था और इसमें एनजीओ जीएफएफ ने उनका साथ दिया. जून 2021 में, बर्लिन की एक क्षेत्रीय अदालत ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया था. लेकिन बीएएमएफ ने फैसले को चुनौती दी और लीपजिग में देश के शीर्ष न्यायाधीशों से इस फैसले को फिर से देखने की अपील की.

गुरुवार को लीपजिग में जजों ने पहले फैसले को जांचा-परखा. उन्होंने कहा कि वादी के फोन की तलाशी लेने से पहले बीएएमएफ को अन्य दस्तावेजों की जांच करनी चाहिए थी जो उसने अपनी राष्ट्रीयता के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किए थे. मसलन, उनके विवाह प्रमाण पत्र या एक अफगानी पहचान से संबंधित दस्तावेज जिसमें बायोमेट्रिक डेटा की कमी थी.

डेटा संरक्षण के मामले में जर्मनी की दुनिया भर में एक अलग साख है. दुनिया भर के उन प्रवासन अधिकारियों ने जर्मनी जैसे देश के इस मामले में बहुत बारीकी से नजर रखी थी जो कि आश्रय संबंधी आवेदनों की जांच-पड़ताल करने में ऐसे ही तरीकों का उपयोग करते हैं. मार्च 2022 में, यूके की एक अदालत ने फैसला सुनाया था कि ब्रिटिश अधिकारियों ने शरणार्थियों के फोन से डेटा जब्त और डाउनलोड करके कानून तोड़ा है.

जर्मनी में भी इस फैसले के बड़े परिणाम होंगे. पीड़ित महिला के एक दूसरे वकील मैथियास लेहनर्ट कहते हैं, "इस फैसले के बाद, यह स्पष्ट है कि बीएएमएफ अब मौजूदा रवैये को बदलेगा. उन्हें सबसे पहले अन्य दस्तावेजों की चांच करनी चाहिए और किसी के सेल फोन डेटा तक पहुंचने से पहले उनकी बात भी सुननी चाहिए. और और चूंकि राष्ट्रीयता साबित करने के लिए कई अन्य साधन भी हैं, इसलिए मुझे लगता है कि यह पूरा तरीका ही बदल जाएगा.”

डाटा क्या है?

बीएएमएफ ने इस फैसले पर यह कहते हुए कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि वो अदालत के फैसले के प्रकाशित होने से पहले उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता. लेकिन आने वाले दिनों में वो प्रतिक्रिया जरूर देगा. हालांकि अदालत में यह मामला जाने से पहले, बीएएमएफ के एक प्रवक्ता ने डीडब्ल्यू को फोन पर दिए एक बयान में फोन की जांच करने को सही ठहराया था और कहा था, "यह हमारे देश की सुरक्षा और शरण निर्णयों की सटीकता के लिए महत्वपूर्ण है.”

फोन जांच की प्रक्रिया कैसे काम करती है

2017 में जर्मनी ने अपने शरण कानून में एक पैराग्राफ जोड़ा, जो अधिकारियों को यह अनुमति देता है कि यदि शरण चाहने वालों के पास पासपोर्ट जैसे कोई वैध पहचान पत्र नहीं हैं और उनकी पहचान हल्के तरीकों से नहीं हो पा रही है तो ये अधिकारी उनके सेल फोन, लैपटॉप और टैबलेट की जांच कर सकते हैं.

उपकरणों के भीतर, सॉफ़्टवेयर का उपयोग करके ये अधिकारी फाइलों को स्कैन करके ये पता लगते है कि फोन कहां था. इस तरह के डिजिटल साक्ष्य में फोटो से जुड़ा स्थान मेटाडेटा, फोन पर सहेजे गए नंबरों का देश कोड या टेक्स्ट संदेशों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा शामिल है.

इस तरीके से अपने आप रिपोर्ट तैयार हो जाती है. उस दस्तावेज़ को तब तक गोपनीय रखा जाता है जब तक कि बीएएमएफ का कोई वकील केस वर्कर्स को नहीं दे देता. इस रिपोर्ट का इस्तेमाल वो शरण देने या न देने का फैसला लेने में कर सकते हैं.

क्या इंटरनेट से कुछ मिटा सकते हैं

गुरुवार के परीक्षण के दौरान बीएएमएफ के एक प्रतिनिधि ने कहा कि साल 2017 में इस नियम के लागू होने के बाद से अब तक बीएएमएफ कार्यालय ने शरणार्थियों के 80,000 से भी ज्यादा उपकरणों की जांच की है.

जर्मनी के नागरिक समाज की प्रतिक्रिया

चूंकि इस नियम को पहली बार लागू किया गया था, इसलिए इसे जर्मनी में नागरिक स्वतंत्रता के पक्षधरों की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा. इस देश में दो बार के अधिनायकवादी शासनों के अनुभव ने लोगों को निजता के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बना दिया है. जर्मनी वह देश है जहां दुनिया का पहला डेटा संरक्षण कानून 1970 में पारित किया गया था.

उस लड़ाई में बर्लिन स्थित गैर-लाभकारी संगठन जीएफएफ सबसे आगे है. साल 2019 में, इस समूह ने यह तर्क देते हुए एक जांच रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि फोन जांच अप्रभावी भी है और निजता में घुसपैठ भी है.

साल 2020 तक, समूह ने बीएएमएफ पर मुकदमा करने के लिए सीरिया, अफगानिस्तान और कैमरून के तीन शरणार्थियों को तैयार कर लिया था. तीन अलग-अलग मुकदमों में, उन्होंने तर्क दिया कि एजेंसी ने कानूनी आवश्यकताओं को पूरा किए बिना उनके फोन में मौजूद बेहद अंतरंग डेटा जांचने की मांग की और इस तरह उनकी निजता के मौलिक अधिकार का अतिक्रमण किया. बीएएमएफ ने 20 महीनों में अपने तरीके को नहीं बदला है, लेकिन लीपजिग के फैसले से दबाव जरूर बढ़ेगा.

जर्मनी के प्रहरी क्या कर रहे हैं?

इस फैसले का असर जीएफएफ द्वारा दायर एक अन्य शिकायत पर भी पड़ेगा जो फोन जांच की प्रक्रिया को खत्म कर सकता है.

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साल 2021 की शुरुआत में, एनजीओ ने जर्मनी के डेटा सुरक्षा प्रहरी और फेडरल कमिश्नर फॉर डेटा प्रोटेक्शन एंड फ्रीडम ऑफ इनफॉर्मेशन से फोन जांच की प्रक्रिया पर गौर करने के लिए कहा. अदालतों के विपरीत, फेडरल कमिश्नर ऑफिस के पास बीएएमएफ को सीधे यह आदेश देने की शक्ति है कि वो जांच के तरीके को बंद कर दे.

दो साल बाद, वॉचडॉग ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. सोसाइटी फॉर सिविल राइट्स के वकील ली बेकमैन कहती हैं कि यह ‘निराशाजनक' है.

गुरुवार के फैसले के बाद, बेकमैन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वॉचडॉग ‘अदालत की लिखित राय का इंतजार करेगा जिसमें स्पष्ट होगा कि इस फैसले के पीछे वास्तविक वजह क्या हैं.'

वो आगे कहती हैं, ‘लेकिन उसके बाद, अब और इंतजार करने का कोई कारण नहीं है.'

* नतीजों के डर से महिला का नाम उनके वकीलों के अनुरोध पर प्रकाशित नहीं किया जा रहा है.

(यानोश डेलकर)