अविश्वास मत पारित होने के बाद फ्रांस की सरकार गिरी
८ सितम्बर २०२५सोमवार की शाम 364 सदस्यों वाली फ्रांस की राष्ट्रीय संसद के 194 सदस्यों ने सरकार के खिलाफ मत दिया. अब बेयरु को अपना इस्तीफा राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों को सौंपना होगा. संभावना है कि राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों उनका इस्तीफा स्वीकार कर लेंगे और नया प्रधानमंत्री चुने जाने तक उनसे कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहने का अनुरोध करेंगे. सरकार ने सरकारी खर्चों में कटौती की एक बड़ी योजना बनाई है. इसका व्यापक विरोध हो रहा है. बेयरु एक अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे थे. विपक्ष ने पहले ही यह जता दिया था कि वह सरकार की योजना का समर्थन नहीं करेगा.
9 महीने से भी कम समय के लिए सरकार में रहे बेयरु अपनी योजना को संसद की मंजूरी दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे थे. उनका मानना है कि इन सुधारों को लागू करना जरूरी है क्योंकि सरकार का कर्ज बढ़ता जा रहा है और देश पर सार्वजनिक खर्चों का बोझ यूरोप में सबसे ज्यादा है.
राष्ट्रपति माक्रों ने दिसंबर में बेयरु को प्रधानमंत्री बनाया था. बीते कुछ समय से फ्रांस में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती जा रही है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूक्रेन और गाजा के युद्ध के साथ ही देश में वैधानिक खींचतान और बजट की समस्याओं ने देश की मुश्किल बढ़ा दी है.
उत्तराधिकारी की तलाश
अगस्त में बेयरु के विश्वास मत हासिल करने की घोषणा के बाद उनका उत्तराधिकारी चुनने के लिए माक्रों को दो हफ्ते का समय मिला था. हालांकि अब तक किसी उम्मीदवार का नाम सामने नहीं आया है. दिसंबर 2024 में मिषेल बारनियर के हटाए जाने के बाद बेयरु को प्रधानमंत्री बनाया गया था. उनसे पहले सितंबर 2024 में प्रधानमंत्री गाब्रिएल अटाल के हटने के बाद देश इसी तरह की स्थिति में घिरा था और तब बारनियर की नियुक्ति हुई थी. माक्रों के लिए फिलहाल नए प्रधानमंत्री का चुनाव एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि फ्रांस की संसद में फिलहाल राष्ट्रपति के विरोधी बहुमत में हैं.
राष्ट्रपति के रूप में देश की विदेश नीति और यूरोपीय मामलों में ज्यादातर अधिकार रखने के साथ ही सेना के सुप्रीम कमांडर के रूप में सारी ताकत उन्हीं के पास है. हालांकि घरेलू मोर्चे पर अपनी नीतियां लागू कराने में उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ रहा है.
मौजूदा सरकार के गिरने की वजह माक्रों का वह फैसला है, जब उन्होंने 2024 में राष्ट्रीय संसद भंग कर दी थी. इसके बाद देश में संसदीय चुनाव हुए. माक्रों को उम्मीद थी कि उनके यूरोप समर्थक मध्यमार्गी गठबंधन का हाथ मजबूत होगा. हालांकि ऐसा हुआ नहीं और खंडित जनादेश वाली संसद कई धड़ों में बंट गई. आधुनिक फ्रांस के इतिहास में पहली बार ऐसा है जब देश की संसद में कोई एक ज्यादा मजबूत धड़ा नहीं है. ऐसे में सत्ता संभालने वाली अल्पमत सरकार को एक के बाद एक संकट का सामना करना पड़ रहा है. वामपंथी और धुर दक्षिणपंथी धड़ों के पास पर्याप्त संख्या में सीटें होने की वजह से वो आपस में मिल कर सरकार गिरा दे रहे हैं.