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राजनीतिब्रिटेन

मुस्लिम प्रवासियों से चिंतित हैं 40 फीसदी ब्रिटिश

विवेक कुमार एएफपी, एपी
२६ जुलाई २०२५

ब्रिटेन में हुए एक सर्वे में पाया गया कि 40 फीसदी लोग इस्लाम को लेकर चिंतित हैं. हिंदुओं के लिए यह संख्या 15 फीसदी है.

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2023 में रमजान के दौरान रोजा खोलते मैनचेस्टर के लोग
ब्रिटेन में मुसलमानों को लेकर लोगों में सबसे ज्यादा चिंता तस्वीर: Molly Darlington/REUTERS

ब्रिटेन में मुस्लिम प्रवासियों को लेकर सोच में अब भी गहरी शंका और विभाजन दिखाई देता है. हाल ही में किए गए एक सर्वे में सामने आया है कि हर दस में से चार ब्रिटिश नागरिक मानते हैं कि मुस्लिम प्रवासियों का देश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इतना ही नहीं, 53 प्रतिशत लोगों ने यह भी कहा कि इस्लाम ब्रिटिश मूल्यों के अनुकूल नहीं है. यह सर्वे ऐसे समय में सामने आया है जब ब्रिटेन के हैंपशर इलाके में इस सप्ताहांत पर देश के सबसे बड़े मुस्लिम सम्मेलन ‘जलसा सालाना' का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें करीब 40 हजार अनुयायियों के भाग लेने की उम्मीद है.

इस सम्मेलन के आयोजक, अहमदिया मुस्लिम समुदाय, ने इस बार विशेष तौर पर ऐसे लोगों को आमंत्रित किया है जो इस्लाम के बारे में संदेह रखते हैं या जिनके मन में सवाल हैं. आयोजकों का कहना है कि ‘रिफॉर्म यूके' पार्टी के दो समर्थक भी सम्मेलन में शरीक होंगे ताकि वे खुद आकर जान सकें कि यह धर्म वास्तव में क्या है.

बाकी धर्मों से पीछे इस्लाम

शोध संस्थान यूगव ने जुलाई में 2,130 लोगों पर यह सर्वे किया जिसमें लोगों से पूछा गया कि विभिन्न धर्मों के प्रवासियों का ब्रिटेन पर क्या प्रभाव है. मुस्लिम प्रवासियों को लेकर 41 फीसदी लोगों ने नकारात्मक राय रखी, जबकि हिंदू, सिख, यहूदी और ईसाई प्रवासियों को लेकर यह आंकड़ा क्रमशः 15, 14, 13 और 7 फीसदी रहा. केवल 24 फीसदी लोगों ने मुस्लिम प्रवासियों को ब्रिटेन के लिए सकारात्मक माना, जो कि अन्य धर्मों की तुलना में सबसे कम था.

जब उनसे पूछा गया कि क्या इस्लाम ब्रिटिश मूल्यों के साथ मेल खाता है, तो 53 फीसदी ने इससे इनकार किया, 25 फीसदी ने हां कहा और 22 फीसदी अनिश्चित थे. इस प्रतिक्रिया को देखकर ऑनलाइन मंचों पर ‘यंग इमाम' के नाम से पहचाने जाने वाले 30 वर्षीय सबाह अहमदी ने चिंता जताई. उन्होंने कहा कि यह इस बात का संकेत है कि समाज में मुस्लिमों को लेकर अब भी व्यापक गलतफहमियां हैं और यह डर खासकर अज्ञानता की देन है.

अहमदी ने कहा, "एक ब्रिटिश मुस्लिम के रूप में यह दुखद है कि हमारे धर्म के कारण ही हमसे घृणा की जाती है. जबकि सच्चाई यह है कि बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रवासी एनएचएस, सेना, पुलिस और शिक्षा संस्थानों में सेवा कर रहे हैं.”

"हम देश से प्रेम करते हैं”

सबाह अहमदी ने मीडिया से भी अपील की कि वह मुस्लिमों की बेहतर छवि पेश करे और "छोटे समूह की नकारात्मक गतिविधियों” को पूरे समुदाय पर थोपने से बचे. उन्होंने यह भी कहा कि सम्मेलन के दौरान यूनियन जैक के साथ अहमदिया समुदाय का इस्लामी झंडा भी फहराया जाएगा, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि देश और धर्म दोनों से प्रेम किया जा सकता है.

इस सर्वे में यह बात भी सामने आई कि युवा पीढ़ी मुस्लिमों के प्रति अधिक सहिष्णु और खुले विचारों वाली है. अहमदी ने इसे "उम्मीद की किरण” बताया और कहा कि आने वाले वर्षों में शायद ब्रिटेन ऐसा समाज बने जहां मुस्लिमों को खतरे के रूप में नहीं बल्कि समाज की ताकत के रूप में देखा जाएगा.

अहमदिया मुस्लिम समुदाय की जड़ें पाकिस्तान में हैं. 1980 के दशक में धार्मिक उत्पीड़न के कारण बहुत से अहमदिया अनुयायी ब्रिटेन आए थे. लेकिन अब उन्हें ब्रिटेन में भी दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. एक ओर कुछ मुस्लिम समूहों से जो उनके विश्वास को स्वीकार नहीं करते, और दूसरी ओर नस्लीय भेदभाव की घटनाएं, जिनमें उनके पाकिस्तानी मूल के कारण उन्हें अपशब्दों और हिंसा का सामना करना पड़ता है. ऐसा यूरोप के बाकी देशों में भी देखा जा रहा है.

ब्रिटिश सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया कि मुस्लिमों ने आधुनिक ब्रिटेन के निर्माण में हर स्तर पर योगदान दिया है. एक प्रवक्ता ने कहा, "किसी को भी उसके धर्म या विश्वास के कारण असहिष्णुता या घृणा का सामना नहीं करना चाहिए. सरकार मुस्लिम विरोधी नफरत के हर रूप से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है.”

 

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