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फुटबॉलनीदरलैंड्स

एक मुकदमा जो बदल सकता है फुटबॉल जगत की तस्वीर

मैट पियर्सन
८ अगस्त २०२५

फुटबॉल में अब ट्रांसफर फीस और खिलाड़ियों का वेतन भी चर्चा का उतना ही बड़ा विषय बन गया है जितना कि गोल और ट्रॉफियां. हालांकि, अब फीफा और जर्मनी समेत कई फुटबॉल संघों के खिलाफ एक नए मुकदमे का नतीजा इस तस्वीर को बदल सकता है.

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फ्रांस के पूर्व खिलाड़ी लसाना डियारा
यह मुकदमा पिछले साल अक्टूबर में ईसीजे के एक ऐतिहासिक फैसले के बाद दायर किया गया है जो रियल मैड्रिड और फ्रांस के पूर्व खिलाड़ी लसाना डियारा के (फोटो में बीच में) एक मामले से संबंधित थातस्वीर: Sefa Karacan/Anadolu Agency/picture alliance

फुटबॉल जगत में एक ऐसे मुआवजे का दावा किया गया है जो अरबों यूरो का हो सकता है. इसमें पिछले 23 सालों में यूरोपीय संघ में पेशेवर रूप से खेलने वाले लगभग 1 लाख फुटबॉल खिलाड़ी शामिल हो सकते हैं. यह मामला फुटबॉल की दुनिया की आर्थिक तस्वीर को पूरी तरह बदल सकता है.

डच फाउंडेशन ‘जस्टिस फॉर प्लेयर्स' (जेएफपी) ने फुटबॉल की वैश्विक संस्था ‘फीफा' के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. इस केस में जर्मन फुटबॉल एसोसिएशन (डीएफबी) के साथ-साथ फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड्स और डेनमार्क के फुटबॉल संघों को भी सह-प्रतिवादी बनाया गया है. 

जेएफपी के वकील और बोर्ड सदस्य डॉल्फ सेगर ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस मामले में मुआवजे की रकम अरबों में होगी. यह सिर्फ पैसे की बात नहीं हैं. यह निष्पक्ष नियमों की भी बात है, जो मेरे हिसाब से काफी मायने रखती है. हम मुआवजे के निपटारे पर बातचीत करना चाहते हैं, लेकिन हम यह भी चाहते हैं कि यह मौका हमें ऐसे नए नियम बनाने के लिए प्रेरित करे, जिससे फुटबॉल की दुनिया में खिलाड़ियों और क्लबों के लिए बेहतर माहौल बन सके.”

यह मुकदमा पिछले साल अक्टूबर में यूरोपीय कोर्ट ऑफ जस्टिस (ईसीजे) के एक ऐतिहासिक फैसले के बाद दायर किया गया है. यह फैसला, रियल मैड्रिड और फ्रांस के पूर्व खिलाड़ी लसाना डियारा की ओर से दायर किए गए एक मामले से संबंधित था.

मिडफील्डर लसाना डियारा 2014 में लोकोमोटिव मॉस्को के साथ अपना कॉन्ट्रैक्ट खत्म करना चाहते थे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए. रूस छोड़ने के बाद भी वह बेल्जियम के किसी क्लब में नहीं खेल पाए, क्योंकि उनका रजिस्ट्रेशन लोकोमोटिव के पास ही था और कॉन्ट्रैक्ट खत्म करने का उनके पास कोई ‘उचित कारण' नहीं था.

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ईसीजे ने फैसला सुनाया कि उस समय लागू फीफा के ट्रांसफर कानून ‘उन पेशेवर फुटबॉलरों को दूसरे क्लबों में जाने से रोकते हैं जो नए क्लब के लिए काम करके अपने करियर को आगे बढ़ाना चाहते हैं'. इस फैसले के बाद, दिसंबर में फीफा ने अपने नियमों में कुछ बदलाव किए. हालांकि, वकीलों का मानना है कि ये बदलाव उतने सख्त नहीं थे जितनी उम्मीद की जा रही थी.

फुटबॉल खिलाड़ियों के साथ नहीं होता ईयू के अन्य कर्मचारियों जैसा व्यवहार

यूरोपीय संघ के अन्य श्रम कानूनों के विपरीत, फुटबॉल खिलाड़ी अपने कॉन्ट्रैक्ट से बंधे होते हैं. जब वे किसी क्लब से जुड़ते हैं या समझौते को रिन्यू करते हैं, तो वे एक कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करते हैं. इस वजह से, वे दूसरे कर्मचारियों की तरह अपने मालिक यानी क्लब की सहमति के बिना कहीं और काम नहीं ढूंढ सकते. वे तभी किसी दूसरे क्लब में जा सकते हैं, जब या तो उनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो जाए या उनका क्लब किसी इच्छुक पार्टी से ट्रांसफर फीस पर सहमत हो जाए.

फुटबॉल में कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद क्लब छोड़ने का अधिकार भी एक नया नियम है. इसे 1995 में आए बॉसमैन रूलिंग नामक एक ऐतिहासिक मामले के बाद लागू किया गया था. इस नियम का नाम उस खिलाड़ी जीन-मार्क बॉसमैन के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने यह मुकदमा लड़ा था. यह दिलचस्प है कि जीन-लुईस डुपोंट, जो उस समय बेल्जियम के खिलाड़ी बॉसमैन और बाद में लसाना डियारा के वकील थे, अब जेएफपी को इस नए मुकदमे में कानूनी सलाह दे रहे हैं.

बॉसमैन रूलिंग ने फुटबॉल की दुनिया में एक बड़ा बदलाव लाया. इस ऐतिहासिक फैसले ने खिलाड़ियों को अपने करियर से जुड़े फैसले लेने की ज्यादा आजादी दी. इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले 30 सालों में खेल के शीर्ष स्तर पर खिलाड़ियों के वेतन में काफी ज्यादा बढ़ोतरी हुई.

इंग्लैंड की पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी में अकाउंटिंग और स्पोर्ट फाइनेंस की एसोसिएट प्रोफेसर क्रिस्टीना फिलिप्पोऊ का मानना है कि जेएफपी के लिए इस मामले में समझौता या जीत, फुटबॉल जगत पर बॉसमैन रूलिंग जैसा ही बड़ा और महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है.

उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "अगर खिलाड़ियों को अपना कॉन्ट्रैक्ट बीच में ही छोड़ने की अनुमति मिल जाती है, तो इससे फुटबॉल जगत में एक बड़ा बदलाव आएगा. इससे क्लबों की तुलना में खिलाड़ियों के पास ज्यादा ताकत आएगी और यह सामान्य नौकरी की तरह हो जाएगा.”

फिलिप्पोऊ ने कहा कि वर्तमान में फुटबॉल खिलाड़ी क्लबों के लिए ‘अमूर्त संपत्ति' माने जाते हैं. क्लब उन्हें एक कीमत देकर अपने रिकॉर्ड में दर्ज करते हैं. इस तरीके से क्लब, खिलाड़ियों के लंबे कॉन्ट्रैक्ट पर उनकी कीमत को अलग-अलग समय के लिए बांट सकते हैं. ऐसे तरीकों से क्लबों को कुछ छूट भी मिलती है. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यूरोपीय क्लबों को अक्सर घरेलू लीगों और यूरोपीय फुटबॉल की नियामक संस्था ‘यूईएफए' की ओर से तय किए गए फायदों और स्थिरता से जुड़े वित्तीय नियमों का पालन करना पड़ता है.

कम ट्रांसफर फीस और ज्यादा वेतन?

चूंकि इसमें भारी भरकम आर्थिक हित जुड़े हैं, इसलिए फिलिप्पोऊ उम्मीद करती हैं कि जेएफपी, फुटबॉल संघों और फीफा के साथ किसी न किसी समझौते पर पहुंचेगा. इससे ट्रांसफर सिस्टम में थोड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है. हालांकि, यह भी हो सकता है कि ट्रांसफर फीस या तो बहुत कम हो जाए या पूरी तरह खत्म हो जाए.

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उन्होंने कहा, "ट्रांसफर फीस असल में किसी खिलाड़ी को उसके कॉन्ट्रैक्ट से ‘खरीदने' जैसा होता है. हालांकि, अगर हम सामान्य नौकरी के अधिकारों की तरफ लौटते हैं, जैसा कि इस केस का मकसद है, तो फिर ट्रांसफर फीस जैसी चीज पूरी तरह खत्म हो सकती है.”

वह यह भी अनुमान लगाती हैं कि खेल के शीर्ष खिलाड़ियों का वेतन और ज्यादा बढ़ सकता है. साथ ही यूरोप, ईयू से बाहर के खिलाड़ियों के लिए और भी ज्यादा आकर्षक बन जाएगा. इसके अलावा, खिलाड़ियों के कॉन्ट्रैक्ट की अवधि भी शायद कम हो सकती है. अगर कोई खिलाड़ी कभी भी बिना ज्यादा ट्रांसफर फीस दिए कॉन्ट्रैक्ट तोड़कर जा सकता है, तो लंबी अवधि वाले कॉन्ट्रैक्ट बेकार हो सकते हैं.

यह स्थिति छोटे क्लबों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है, क्योंकि वे खिलाड़ियों की बिक्री से होने वाली कमाई पर निर्भर रहते हैं. इसके अलावा, अगर छोटे कॉन्ट्रैक्ट आम हो जाएं, तो निचली लीग के खिलाड़ियों को चोट लगने या बीमारी का ज्यादा जोखिम उठाना पड़ सकता है.

जर्मन फुटबॉल में बढ़ी खेल मनोविज्ञान की अहमियत

सेगर को उम्मीद है कि फुटबॉल में खिलाड़ियों के ट्रांसफर मॉडल में कुछ बदलाव जरूर होगा. हालांकि, उनका मानना है कि यह बदलाव उतना बड़ा नहीं होगा, जितना कुछ लोग सोच रहे हैं. उनका कहना है कि सभी पक्षों के बीच होने वाली बातचीत से एक ऐसा समाधान निकलेगा जो इस बदलाव को उतना बड़ा नहीं होने देगा. 

वह कहते हैं, "मुझे अब भी लगता है कि अगर किसी खिलाड़ी को एक क्लब से दूसरे क्लब में ट्रांसफर किया जाता है, तो मौजूदा कॉन्ट्रैक्ट के तहत उस खिलाड़ी के ट्रांसफर के लिए एक क्लब दूसरे क्लब को किसी न किसी तरह का मुआवजा जरूर देगा.”

उन्होंने आगे कहा, "मुझे ऐसा नहीं लगता है कि बहुत सारे खिलाड़ी बिना किसी उचित कारण के अपने कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर देंगे. इसकी वजह यह है कि अगर आप किसी अन्य क्लब में जाना चाहते हैं और आपको ऐसे खिलाड़ी के तौर पर देखा जाता है जो आसानी से अपना कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर देता है, तो कोई अन्य क्लब जोखिम क्यों उठाएगा?”

फीफा, फुटबॉल एसोसिएशन और क्लबों को चुकानी पड़ सकती है मुकदमे की लागत

डच वकील ने डीडब्ल्यू को बताया कि चूंकि जेएफपी ने सोमवार को ही पत्र भेजे हैं, इसलिए अभी तक बहुत कम खिलाड़ियों ने हस्ताक्षर किया है. यह मामला नीदरलैंड्स में लाया जा रहा है. इसलिए, वहां रहने वाले खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व अपने-आप हो जाएगा. हालांकि, 2002 से यूरोपीय संघ या यूके में पेशेवर रूप से खेलने वाला कोई भी पुरुष या महिला खिलाड़ी इसमें शामिल हो सकता है. उनका मानना है कि खिलाड़ियों को मुकदमे में शामिल होने के लिए मनाना ‘कोई बड़ी चुनौती नहीं है'.

उन्होंने कहा, "यह मायने नहीं रखता कि आपने इस दौरान ट्रांसफर लिया था या नहीं. आपको नुकसान इसलिए हुआ है, क्योंकि नियमों की वजह से आपकी सौदेबाजी की ताकत कम हो गई थी और आपको कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ीं.”

जेएफपी का दावा है कि फीफा के ट्रांसफर नियमों के कारण खिलाड़ियों ने अपने करियर के दौरान 8 फीसदी कम कमाई की है. अगर सेगर और जेएफपी इस मुकदमे को जीत जाते हैं, तो फीफा और यूरोपीय संघ के राष्ट्रीय फुटबॉल संघों को भारी नुकसान हो सकता है. अगर स्पेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों के बड़े क्लबों पर जुर्माना लगाया जाता है, तो यह उनके लिए बहुत भारी पड़ सकता है. यह जुर्माना उन क्लबों की स्थिति को खस्ताहाल कर सकता है, क्योंकि खिलाड़ी को वेतन क्लब ही देते हैं. इसलिए, फुटबॉल संघ इन जुर्मानों का बोझ क्लबों पर डाल सकते हैं.

फिलिप्पोऊ ने कहा, "बहुत सारे क्लब पहले से ही घाटे में हैं. यह काफी समस्याजनक हो सकता है. यह बहुत बड़ी रकम है. चूंकि, यह मुआवजे का दावा है, इसलिए कुछ ही समय में इसे चुकाना होगा. यह ऐसा मामला नहीं है जिस पर आप सिस्टम को ठीक करने के लिए बातचीत करें, बल्कि यह ऐसा है जिसके लिए आपको अभी पैसे देने होंगे.”

खबरों के अनुसार, जेएफपी ने फीफा को कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है और उसे सितंबर की शुरुआत तक इसका जवाब देने के लिए कहा है. जेएफपी का मानना है कि अगर इस दौरान कोई आपसी समझौता नहीं हो पाता है, तो यह मामला 2029 में अदालत में जाएगा.

फिलहाल, फीफा ने अभी तक डीडब्ल्यू के सवाल का जवाब नहीं दिया है. वहीं, डीएफबी ने डीडब्ल्यू को पुष्टि की है कि उसे जेएफपी का पत्र मिला है, जिसकी ‘आंतरिक रूप से समीक्षा की जा रही है.' उसने यह भी कहा कि वह ‘अभी इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता या अन्य किसी तरह की जानकारी नहीं दे सकता.'