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चुनावी गर्मी में तपते कोलकाता में आग ने उठाए सवाल

प्रभाकर मणि तिवारी
९ मार्च २०२१

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुगली के किनारे एक बहुमंजिली इमारत में सोमवार रात को लगी भयावह आग ने महानगर की बहुमंजिला इमारतों में आग से बचाव के इंतजाम पर एक बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है.

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Indien Brand in einem Hochhaus in Kolkata
आग की इस घटना ने सुरक्षा इंतजामों पर फिर सवाल उठाए हैंतस्वीर: AFP/Getty Images

इस आग में फायर ब्रिगेड के चार कर्मचारियों, दो पुलिसवालों और पूर्व रेलवे के एक अधिकारी समेत नौ लोगों की झुलस कर और दम घुटने से मौत हो गई. 13 मंजिल की जिस इमारत में आग लगी वहां पूर्व और दक्षिण रेलवे के दफ्तर हैं. इसके अलावा रेलवे के सिग्नलिंग सिस्टम और आनलाइन टिकट बुकिंग का सर्वर भी वहीं है. अब इस घटना के बाद राज्य सरकार और रेल मंत्रालय में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है.

आग लगने के बाद देर रात मौके पर पहुंचीं ममता बनर्जी ने आरोप लगाया था, "रेलवे ने इमारत के भीतर का नक्शा नहीं मुहैया कराया है. इससे फायर ब्रिगेड कर्मचारियों को भारी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.” उनका कहना था कि रेलवे का दफ्तर होने के बावजूद मौके पर कोई बड़ा अधिकारी नहीं पहुंचा है. उन्होंने मृतकों के परिजनों को दस-दस लाख रुपए के मुआवजे और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का एलान किया. लेकिन साथ ही जोड़ा कि वह इतनी बड़ी घटना पर राजनीति नहीं करना चाहतीं.

मौके पर पहुंचे फायर ब्रिगेड मंत्री सुजित बोस का कहना था, "इमारत में आग से बचाव के जो उपकरण लगे थे वे काम नहीं कर रहे थे.” हालांकि मंगलवार को पूर्व रेलवे के महाप्रबंधक मनोज जोशी ने कहा कि मौके पर रेलवे के अधिकारी मौजूद थे और उन्होंने फायर ब्रिगेड कर्मचारियों के साथ सहयोग किया. लेकिन उन्होंने माना कि शायद तत्काल इमारत का नक्शा नहीं मिल पाया होगा.

ममता बनर्जी
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घटना के लिए रेलवे पर निशाना साधा हैतस्वीर: DW/P. Mani Tiwari

जिम्मेदारी किसकी?

कोलकाता पुलिस ने इस घटना का संज्ञान लेते हुए एक मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. फोरेंसिक टीम ने मौके से नमूने भी जुटाए हैं. दूसरी ओर, रेल मंत्रालय ने भी इस घटना की उच्च-स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं. लेकिन इसके साथ ही यह सवाल उठ रहा है कि आखिर साल दर साल ऐसे हादसे होने के बावजूद सरकार सबक क्यों नही सीखती? यह सही है कि इमारत रेलवे की थी. लेकिन उसमें फायर लाइसेंस और आग से बचाव के इंतजाम की जांच करना फायर ब्रिगेड और कोलकाता नगर निगम की जिम्मेदारी थी. फायर ब्रिगेड इस बात की जांच कर रहा है कि इमारत में आग से बचाव का समुचित इंतजाम था या नहीं. और अगर नहीं तो क्यों नहीं था. फायर ब्रिगेड के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, "जांच में तमाम पहलुओं को ध्यान में रखा जाएगा और उसकी जवाबदेही भी तय की जाएगी.”

अमूमन देखने में आया है कि ऐसे किसी बड़े हादसे के बाद कुछ दिनों तक तो तमाम एजेंसियां सक्रिय रहती हैं. लेकिन उसके बाद फिर सब कुछ जस का तस हो जाता है. बीते एक दशक में अकेले कोलकाता में ऐसी करीब एक दर्जन बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं. मिसाल के तौर पर दिसंबर, 2011 में महानगर के एमआरआई अस्पताल में लगी भयावह आग में 93 लोग मारे गए थे. इनमें से ज्यादातर मरीज ही थे. उस घटना के बाद फायर ब्रिगेड के पांच सदस्यों को लेकर एक सुरक्षा जांच और निगरानी समिति बनाई गई थी जिसने महानगर और आसपास के 39 बड़े अस्पतालों का दौरा किया था. लेकिन उनमें से किसी में भी आग से बचाव के संतोषजनक उपाय नहीं थे. बावजूद इसके घटना के तीन महीने बाद यह समिति भी निष्क्रिय हो गई. इसके दो सदस्य हट गए हैं. कुछ दिनों बाद कर्मचारियों की कमी की दुहाई देकर अस्पतालों की निगरानी का काम भी ठप हो गया. उसके बाद पार्क स्ट्रीट की बहुमंजिली इमारत में लगी आग के बाद ऐसा ही हुआ था. कुछ साल पहले महानगर का थोक बागड़ी मार्केट आग से पूरी तरह जल गया था. करीब दो साल बाद उसे खोला गया है. लेकिन ऐसे मामलों में अब तक न तो किसी की जवाबदेही तय की जा सकी है और न ही किसी को सजा हुई है.

कोताही पर सवाल

रेल भवन हुगली के किनारे जिस स्ट्रैंड रोड पर स्थित है वहां हमेशा ट्रैफिक जाम रहता है. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि सोमवार शाम को भी सड़क पर भारी ट्रैफिक होने की वजह से फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को मौके पर पहुंचने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. इस दौरान आग तेजी से दूसरी मंजिलों तक फैल गई. इसके साथ ही यह सवाल भी उठ रहा है कि आखिर फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों ने आग लगने के दौरान ऊपर जाने के लिए लिफ्ट का इस्तेमाल क्यों किया? आग लगने पर लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं करने की चेतावनी तो सबको मालूम है. बावजूद इसके वे लोग लिफ्ट से ऊपर क्यों गए? हाल के वर्षों में यह पहला मौका है जब आग बुझाने के लिए मौके पर पहुंचे विभाग के चार कर्मचारियों की झुलस कर मौत हो गई है.

पश्चिम बंगाल में अमित शाह का चुनाव प्रचार
पश्चिम बंगाल में चुनाव से ठीक पहले आग की यह घटना सामने आई हैतस्वीर: DW/P. Mani Tiwari

 

फायर ब्रिगेड के सेवानिवृत्त सहायक निदेशक उदय अधिकारी कहते हैं, "मुझे अपने जीवन में यहां ऐसी कोई घटना याद नहीं आती. क्या इन कर्मचारियों को सही ट्रेनिंग नहीं मिली थी? इससे वहां तैनात विभागीय अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल खड़े होते हैं. अगर लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं किया जाता तो इन मौतों को रोका जा सकता था.” फायर ब्रिगेड मंत्री सुजित बसु कहते हैं, "अमूमन ऐसे मामलों में लिफ्ट का इस्तेमाल नहीं किया जाता. कर्मचारियों ने जान हथेली पर लेकर काम किया है. लेकिन लिफ्ट के इस्तेमाल के मामले की जांच की जाएगी.” मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की दलील है, "शीघ्र ऊपर जाने के लिए ही उन लोगों ने लिफ्ट का इस्तेमाल किया था.”

पूर्व रेलवे का दावा है कि इमारत में आग से बचाव के समुचित इंतजाम थे. उसकी ओर से कोई कमी नहीं थी. लेकिन सवाल पैदा होता है कि आखिर वह तमाम इंतजाम धरे के धरे क्यों रह गए? इन सवालों के जवाब तो जांच के बाद ही मिलेंगे. लेकिन पहले के ऐसे मामलों की तरह यह घटना और इसकी जांच रिपोर्ट भी कुछ दिनों बाद राजनीति और विधानसभा चुनावों के शोर में दब जाए तो कोई हैरत नहीं होनी चाहिए.

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