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राजनीतिफिनलैंड

क्या है ओएससीई, जिससे रूस को निकालने की मांग कर रहा यूक्रेन

स्वाति मिश्रा
१ अगस्त २०२५

"हेलसिंकी फाइनल एक्ट" पर दस्तखत के 50 साल पूरे हो गए हैं. इसने जिस यूरोप का सपना देखा था, वह आज भी प्रासंगिक है. लेकिन क्या यूक्रेन युद्ध के बाद उस विजन के हासिल होने की कोई उम्मीद बची है?

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1 अगस्त 1975 को सीएससीई कॉन्फ्रेंस के दौरान हेलसिंकी स्थित सोवियत संघ के दूतावास के सामने अमेरिकी राष्ट्रपति गेराल्ड फोर्ड (तस्वीर में बाईं ओर), सोवियत राष्ट्रपति ब्रेझनेव और प्रधानमंत्री ग्रोम्क्यो (दाहिनी तरफ) खड़े हुए
'हेलसिंकी फाइनल एक्ट' प्रतिद्वंद्विता, टकराव और वैमनस्य से भरे शीत युद्ध के दौर की एक अहम उपलब्धि थीतस्वीर: Vesa Klemetti/Lehtikuva/dpa/picture alliance

ठीक आधी सदी पहले, 1 अगस्त 1975 को उत्तरी यूरोप में बसे देश फिनलैंड में एक ऐतिहासिक समझौता अस्तित्व में आया. 'आयरन कर्टन' के आर-पार बसे 35 देशों के राष्ट्राध्यक्षों-प्रतिनिधियों ने एक समझौते पर दस्तखत किया. यह कार्यक्रम हुआ, फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में. इसी के नाम पर यह समझौता कहलाया, हेलसिंकी फाइनल एक्ट.

यूरोप की सुरक्षा में नाटो के आगे बड़ी चुनौतियां

1 अगस्त 1975 को हेलसिंकी स्थित फिनलैंड पैलेस के प्लीनरी हॉल में सीपीएसयू के महासचिव ब्रेझनेव हेलसिंकी फाइनल एक्ट पर दस्तखत करते हुए
'फिनलैंड फाइनल एक्ट' ने यह भी माना कि मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसी बुनियादी आजादी का सम्मान भी यूरोप में शांति के लिए अहम हैतस्वीर: Vladimir Musaelyan/TASS/picture alliance

कोल्ड वॉर: खेमे में बंटी दुनिया

'आयरन कर्टन' का शब्दश: अनुवाद होगा, लोहे का पर्दा. शीत युद्ध के दौरान क्षेत्र, राजनीति और विचारधारा के स्तर पर पूर्वी और पश्चिमी खेमे (ईस्टर्न और वेस्टर्न ब्लॉक) में बंटी दुनिया का विभाजन इतना ठोस, इतना अभेद्य था कि उसकी सबसे चर्चित उपमा मैटेलिक, या धातुई है. हालांकि, इस शब्द का इस्तेमाल पहले भी होता रहा था.

टाइम मैगजीन के एक लेख के अनुसार, 18वीं सदी में थिएटरों में सचमुच का 'आयरन कर्टन' होता था. बैकस्टेज में आग लगने की स्थिति में इसे नीचे गिरा दिया जाता था, ताकि मंच के सामने बैठे दर्शकों और सभागार को आग से नुकसान ना हो. तब से 'आयरन कर्टन' ऐसे अवरोधों के भाव में इस्तेमाल होने लगा, जिसे भेदा ना जा सके.

क्या नाटो की विस्तार योजना ने रूस को युद्ध के लिए भड़काया?

ईस्टर्न और वेस्टर्न ब्लॉक के बंटवारे के संदर्भ में इसके अभिप्राय का अतीत ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल से जुड़ा है. शीत युद्ध के एकदम शुरुआती दौर की बात है. 5 मार्च 1946 को तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने अपने एक भाषण में सोवियत संघ की निंदा करते हुए कहा, "बाल्टिक में श्टैटीन से लेकर एड्रिआटिक में ट्रीएस्ट तक, समूचे महाद्वीप पर एक आयरन कर्टन उतर आया है."

चर्चिल का यह भाषण 'आयरन कर्टन स्पीच' के नाम से मशहूर है. और यहीं से 'आयरन कर्टन' का अभिप्राय शीत युद्ध के दौरान विचारधारा के दो ध्रुवों में बंटी दुनिया से जुड़ गया.

यह तस्वीर फरवरी 1945 की है. 'क्रीमियन कॉन्फ्रेंस ऑफ दी लीडर्स ऑफ दी थ्री अलाइड पावर्स' के दौरान स्टालिन, रूजवेल्ट और विंस्टन चर्चिल एकसाथ बेंच पर बैठे हैं.
'आयरन कर्टन' का लोकप्रिय आशय कोल्ड वॉर से जुड़ा है. इस दौर में दोनों पक्ष अपनी-अपनी विचारधारा और ताकत के विस्तार, और दूसरे के प्रभाव को रोकने की कोशिश कर रहे थे तस्वीर: RIA Novosti/SNA/imago

हेलसिंकी फाइनल एक्ट और सीएससीई

प्रतिद्वंद्विता, टकराव और वैमनस्य से भरे शीत युद्ध में 1970 के शुरुआती सालों की एक अहम घटना थी, हेलसिंकी फाइनल एक्ट. इसमें पूर्वी और पश्चिमी यूरोप था. सोवियत संघ था. संयुक्त राज्य अमेरिका था और कनाडा भी था.

यह एक चरणबद्ध बातचीत का हासिल था. दरअसल, 1960 के दशक के आखिरी सालों और 70 के शुरुआती वर्षों में ईस्ट और वेस्ट, दोनों पक्षों के बीच तनाव कम करने की सहमति बनी. इसे "डेटॉन्ट पीरियड" कहते हैं.

इसका रास्ता यूं बना कि सोवियत संघ ने एक साझा यूरोपीय सुरक्षा सम्मेलन के गठन का प्रस्ताव दिया. नाटो ने इसे स्वीकार किया. मई 1969 में फिनलैंड की सरकार ने सभी यूरोपीय देशों को ज्ञापन भेजा.

फिनलैंड ने कहा कि वह अपनी राजधानी हेलसिंकी में एक सम्मेलन बुलाना चाहता है. तीन साल बाद अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव लियोनेद ब्रेझनेव में वार्ता के लिए सहमति बनी.

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इसके बाद 1973 में 'कॉन्फ्रेंस ऑन दी सिक्यॉरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप' (सीएससीई) के गठन के लिए बहुपक्षीय बातचीत शुरू हुई. 1973 से 1975 के बीच हेलसिंकी और जेनेवा में वार्ताएं हुईं. आखिरकार अगस्त 1975 में समझौते पर दस्तखत किया गया.

1 अगस्त 1975 को फिनलैंड पैलेस में कॉन्फ्रेंस ऑन सिक्यॉरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप की एक बैठक में बैठे सदस्य
'हेलसिंकी फाइनल एक्ट' चरणबद्ध वार्ताओं और कूटनीतिक प्रयासों का हासिल थातस्वीर: Vladimir Musaelyan/Valentin Sobolev/TASS/picture alliance

विशेषज्ञों की राय में, सोवियत और अमेरिकी खेमे के पास समझौते के अपने-अपने कारण थे. शुरुआती प्रस्ताव तो वैसे भी सोवियत का ही था. विशेषज्ञों के मुताबिक, वह दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप में कायम हुई राजनीतिक व्यवस्था पर मुहर लगाना चाहता था. यानी, बंटे हुए यूरोप में जो यथास्थिति बन चुकी हैं वह कायम रहे.

उधर, अमेरिका के पास वियतनाम युद्ध की पृष्ठभूमि थी. इसके अलावा, अक्टूबर 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट के समय दोनों महाशक्तियां परमाणु युद्ध छिड़ने के कगार पर पहुंच चुकी थीं. ऐसा फिर ना हो, आमने-सामने की खुली लड़ाई का खतरा कम हो, यह भी एक अहम लक्ष्य था.

शांतिपूर्ण सहअस्तित्व: किन सिद्दांतों पर बनी सहमति

फाइनल एक्ट में तीन भाग हैं, जिन्हें 'बास्केट' कहा जाता है. इनमें सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, विज्ञान, पर्यावरण और मानवाधिकार संबंधी मुद्दे शामिल हैं. सुरक्षा के अंतर्गत सभी पक्ष संप्रभुता में समानता के सिद्धांत पर सहमत हुए.

संप्रभुता के अधिकार का सम्मान करने पर सहमति बनी. ट्रीटी में लिखा है, "हिस्सा ले रहे सभी देश, एक-दूसरे की सीमाओं के साथ यूरोप में सभी देशों की सीमाओं को अउल्लंघनीय मानते हैं. और इसीलिए वे अब और भविष्य में इन सीमाओं पर हमला नहीं करेंगे."

यह तय हुआ कि सभी प्रतिभागी देशों को अपनी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था के चुनाव का अधिकार है. उन्हें अपने दोस्त चुनने का भी हक है. यह भी अधिकार है कि वो किसी गठबंधन का हिस्सा बनते हैं या नहीं बनते हैं.

इसके अलावा जिन प्रमुख सिद्धांतों पर सहमति बनी, वो हैं: ताकत का इस्तेमाल या ताकत का इस्तेमाल करने की धमकी देने से बचना, सीमाओं का उल्लंघन रोकना, देश की सीमायी अखंडता का सम्मान, विवादों का शांतिपूर्ण समाधान, एक-दूसरे पर हमला ना करना, शक्ति प्रदर्शन या किसी और तरीके से किसी की सीमा में बदलाव की कोशिश ना करना, किसी के आंतरिक मामलों में दखल ना देना, मानवाधिकारों व आधारभूत आजादी का सम्मान करना.

विश्वयुद्ध के बाद पहला दशक

सोवियत संघ के विघटन के बाद की भूमिका

1990 के दशक में सीएससीई ने अहम भूमिका निभाई. सोवियत संघ के विघटन के बाद मध्य-पूर्वी यूरोप और भूतपूर्व सोवियत सदस्यों के लोकतंत्र की ओर बढ़ने की प्रक्रिया में इसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है.

इसे शीत युद्ध के बाद के नए यूरोप में हो रहे ऐतिहासिक बदलावों में हिस्सा निभाने की भूमिका सौंपी गई. यह सोचा गया कि पोस्ट-कोल्ड वॉर यूरोप में नई चुनौतियां होंगी, और इनके मद्देनजर सीएससीई की जरूरत होगी.

इसी विचार के तहत दिसंबर 1994 में हुए बुडापेस्ट सम्मेलन में इसे नया नाम मिला: ऑर्गनाइजेशन फॉर सिक्यॉरिटी एंड को-ऑपरेशन इन यूरोप (ओएससीई). वर्तमान में 57 देश इसके सदस्य हैं. इसमें सिर्फ यूरोप के नहीं, मध्य एशिया के देश (कजाखस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान) भी शामिल हैं. यूक्रेन और रूस, दोनों ही इसके सदस्य हैं.

21वीं सदी में पुतिन का रूस और यूरोप

नई सदी के पहले दशक में ही रूस और नाटो के बीच बढ़ते तनाव के कारण ओएससीई के आधारभूत सिद्धांत कमजोर होते गए. साल 2008 में रूस ने जॉर्जिया पर हमला किया. यह 21वीं सदी का पहला यूरोपीय युद्ध था.

अब भी जॉर्जिया के करीब 20 फीसदी भूभाग पर रूस का नियंत्रण है. जॉर्जिया भी ओएससीई का हिस्सा है.

फिर 2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया. और इसके बाद, फरवरी 2022 में शुरू हुआ यूक्रेन युद्ध अब भी जारी है. यूरोप की बदली हुई स्थितियों के बीच ओएससीई की स्थिति काफी डंवाडोल है.

हेलसिंकी +50 सम्मेलन के उद्घाटन समारोह को ऑनलाइन संबोधित कर रहे यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की
यूक्रेन मांग करता रहा है कि रूस को ओएससीई से बाहर निकाल दिया जाएतस्वीर: Mikko Stig/Lehtikuva/REUTERS

"हेलसिंकी फाइनल एक्ट" के 50 साल

अब "हेलसिंकी फाइनल एक्ट" पर हस्ताक्षर की 50वीं सालगिरह पर फिनलैंड ने एक सम्मेलन आयोजित किया है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने भी इसमें हिस्सा लिया. उन्होंने उद्घाटन समारोह को ऑनलाइन संबोधित किया. 

समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, रूसी विदेश विभाग ने पिछले हफ्ते कहा था कि वह सम्मेलन में हिस्सा तो लेगा, लेकिन कोई उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि नहीं भेजेगा.

उधर यूक्रेन खुद पर हुए हमले के बाद से ही मांग करता रहा है कि रूस को ओएससीई से बाहर निकाल दिया जाए. जुलाई 2024 में रूसी सांसदों ने भी ओएससीई को रूस-विरोधी और पक्षपाती बताते हुए इसकी असेंबली से अलग होने के पक्ष में मतदान किया. बावजूद इसके, ओएससीई की वेबसाइट पर 'पार्टिसिपेटिंग स्टेट्स' की सूची में रशियन फेडरेशन का नाम है. 

सीएससीई/ओएससीई के इन 50 वर्षों में यूरोप सेट-रीसेट सब देख चुका है. लंबे समय तक शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, खेमेबाजी से मुक्ति, इलाकाई विस्तार के लिए होने वाले युद्धों के अतीत से मुक्ति की चाह जताई जाती थी. हुआ इसका उल्टा. जैसे कि, अगस्त 1975 का फिनलैंड सैन्य गुटनिरपेक्षता की विदेश नीति पर चलता था. अगस्त 2025 में उसी फिनलैंड को नाटो का सदस्य बने दो साल हो चुके हैं.