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अब यूपी के फतेहपुर में ‘मकबरे में मंदिर’ का विवाद आया सामने

समीरात्मज मिश्र
१४ अगस्त २०२५

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में एक मकबरे को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. कुछ संगठनों ने इस मकबरे को तोड़ने की भी कोशिश की जिससे वहां तनाव पैदा हो गया है. जानते हैं, क्या है पूरा मामला.

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पुलिस की मौजूदगी में मकबरे के भीतर घुसकर तोड़-फोड़ करने का मामला
पुलिस की मौजूदगी में मकबरे के भीतर घुसकर तोड़-फोड़ करने के मामले में पुलिस ने डेढ़ सौ अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की हैतस्वीर: Rambabu Chaturvedi

उत्तर प्रदेश में फतेहपुर जिले के अबूनगर इलाके में स्थित नवाब अब्दुस समद के मकबरे को लेकर कुछ दिन पहले अचानक विवाद पैदा हो गया. कुछ हिन्दू संगठनों ने मकबरे में मंदिर के साक्ष्य होने का दावा किया और सोमवार को मकबरे में घुसकर तोड़-फोड़ करने लगे.

यह सब जब हो रहा था उस समय पुलिस वहां मौजूद थी.

हिन्दू पक्ष का दावा है कि यह मकबरा ठाकुर जी के मंदिर को तोड़कर बनाया गया है क्योंकि इसके अंदर त्रिशूल और कमल जैसे प्रतीक चिह्न मौजूद हैं, जो मकबरे में नहीं पाए जाते.

पुलिस की मौजूदगी में मकबरे के भीतर घुसकर तोड़-फोड़ करने के मामले में पुलिस ने डेढ़ सौ अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. एफआईआर में दस लोग नामजद भी किए गए हैं जिनमें एक स्थानीय पार्षद, एक जिला पंचायत सदस्य और हिंदूवादी संगठनों से जुड़े लोगों के नाम शामिल हैं. फिलहाल किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है लेकिन पुलिस और प्रशासन का कहना है कि स्थिति अब सामान्य है.

मौजूदा समय में फतेहपुर के भू राजस्व अभिलेखों में यह मकबरा राष्ट्रीय संपत्ति के तौर पर दर्ज है
मौजूदा समय में फतेहपुर के भू राजस्व अभिलेखों में यह मकबरा राष्ट्रीय संपत्ति के तौर पर दर्ज हैतस्वीर: Rambabu Chaturvedi

फतेहपुर के पुलिस अधीक्षक अनूप कुमार सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया कि उपद्रवियों की पहचान की जा रही है और कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी.

दरअसल, हिन्दू संगठनों के कुछ लोगों ने पिछले दिनों प्रशासन को एक ज्ञापन देकर सोमवार यानी 11 अगस्त को मकबरे में जाकर पूजा-पाठ करने का ऐलान किया था. भारतीय जनता पार्टी ने भी इस कार्यक्रम को अपना समर्थन दिया था. इसके बाद प्रशासन ने एहतियात के तौर पर मकबरे के आस-पास सुरक्षा बढ़ा दी थी और मकबरे को बांस बल्लियों से घेर दिया था. इसके बावजूद सोमवार सुबह करीब 11 बजे बड़ी संख्या में हिंदूवादी संगठनों के लोग इकट्ठा हुए और बेरिकेड तोड़कर मकबरे में घुस गए और जमकर तोड़फोड़ की गई.

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कैसे बढ़ा विवाद?

इस घटना से नाराज मुस्लिम पक्ष ने भी पथराव कर दिया. प्रशासन ने हालात बेकाबू होते देख भीड़ था. हालात बेकाबू होते देख प्रशासन ने किसी तरह से भीड़ को तितर-बितर किया. मकबरे समेत आसपास के इलाके में सुरक्षा के भारी इंतजाम किए गए.

भारत में पुरानी मस्जिदों को लेकर तनाव

घटना के बारे में फतेहपुर के पुलिस अधीक्षक अनूप कुमार सिंह ने बताया, "हिन्दू संगठनों के लोगों की तरफ से यहां शांतिपूर्ण तरह से अपना कार्यक्रम करने की बात कही गई थी, लेकिन जब वो लोग बैरिकेड तोड़कर तोड़-फोड़ करने लगे तब उन लोगों को बलपूर्वक बाहर किया गया. वीडियो फुटेज के जरिए घटना में शामिल लोगों की पहचान की जा रही है.”

इस घटना के कुछ वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं जिनमें बड़ी संख्या में लोग पुलिस और सुरक्षा बलों की मौजूदगी में मकबरे के अंदर घुसकर नारेबाजी, हंगामा और तोड़-फोड़ करते नजर आ रहे हैं. साथ में भगवा झंडा भी फहरा रहे हैं.

विधानसभा में भी हंगामा

इस वक्त यूपी विधानसभा का सत्र भी चल रहा है. हंगामे के अगले दिन यानी मंगलवार को इस मुद्दे पर विधानसभा में भी हंगामा हुआ. समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने आरोप लगाया कि पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी में यह घटना हुई.

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव तस्वीर: ROHIT UMRAO/AFP via Getty Images

फतेहपुर से लोकसभा सदस्य और समाजवादी पार्टी के नेता नरेश उत्तम पटेल ने इस बारे में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को एक पत्र भी लिखा है. डीडब्ल्यू से बातचीत में नरेश उत्तम कहते हैं, "यह मकबरा तीन सौ साल से भी ज्यादा पुराना है और सरकारी अभिलेखों में राष्ट्रीय संपत्ति के तौर पर दर्ज है. हां, इसके आस-पास जो जमीन है, उस पर भूमाफियाओं का कब्जा है.”

वहीं, राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल ने फतेहपुर के जिलाधिकारी को एक पत्र भेजकर प्रशासन से मकबरे के ऐतिहासिक स्वरूप से छेड़छाड़ न करने की अपील की है. मकबरे के मुतवल्ली मोहम्मद नफीस ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह इमारत करीब 500 साल पुरानी है और इसे मुगल बादशाह अकबर के पोते ने बनवाया था. उनके मुताबिक, इसमें अबू मोहम्मद और अबू समद की कब्रें हैं.

इतिहास क्या कहता है?

इतिहास की बात करें तो इस मकबरे को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि मकबरा मुगलकालीन है. उस दौर में मुस्लिम समुदाय के लोगों के पास बड़ी जागीरें होती थीं. उनकी मृत्यु के बाद उनकी कब्रों पर मकबरा बनता था.

फतेहपुर के इतिहास पर नजर रखने वाले इतिहासकार सतीश द्विवेदी भी बताते हैं कि मकबरा मुगलकालीन है जिसका निर्माण औरंगजेब के समय में हुआ था.

सतीश द्विवेदी के मुताबिक, "औरंगजेब का शासन काल 1658 से 1707 तक था. सत्ता पाने के लिए औरंगजेब को अपने भाइयों से संघर्ष करना पड़ा था और लड़ाइयां लड़नी पड़ी थीं. औरंगजेब का एक भाई शुजा था जिसे औरंगजेब ने खजुआ के युद्ध में हराया था. उसके बाद औरंगजेब कुछ दिनों तक यहीं रहा और यहां सैन्य छावनी बनाई.”

इस सैन्य छावनी की जिम्मेदारी औरंगजेब ने बुंदेलखंड के पैलानी के फौजदार अब्दुल समद को दी थी.

साल 1699 में अब्दुल समद की मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के बाद उनके बड़े बेटे अबू बकर ने अपने पिता के लिए यहां एक मकबरा बनवाया. इतिहासकार सतीश द्विवेदी का कहना है कि ये वही मकबरा है, जिस पर विवाद हो रहा है. अबू बकर की मृत्यु के बाद उन्हें भी इसी मकबरे में दफनाया गया और इसी परिसर में उनकी मजार भी है. अबूबकर के ही नाम पर अबूनगर शहर भी बसा है.

फतेहपुर जिले के गजेटियर में भी यह बात कही गई है कि अबूनगर का नाम अब्दुल समद के बेटे अबू बकर के नाम पर है. मकबरे पर मौजूद एक शिलालेख के में अब्दुल समद की मृत्यु की तारीख 1699 ईस्वी लिखी गई है जबकि उनके बेटे अबू मोहम्मद की मृत्यु की तारीख 1704 ईस्वी दर्ज है. गजेटियर में कहा गया है कि फतेहपुर शहर में नवाब अब्दुल समद के मकबरे के अलावा और कोई ऐसी इमारत नहीं है जिसका ऐतिहासिक महत्व हो.

मौजूदा समय में फतेहपुर के भू राजस्व अभिलेखों में यह मकबरा राष्ट्रीय संपत्ति के तौर पर दर्ज है जिसके केयर टेकर के रूप में मुतवल्ली मोहम्मद अनीस का नाम दर्ज है. साल 2019 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में इस प्रॉपर्टी को वक्फ संपत्ति के तौर पर दर्ज कराया गया था.