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यूरोप की 'पुरानी तिकड़ी ई3' की वापसी?

३० जुलाई २०२५

पिछले एक साल में यूरोपीय संघ (ईयू) की विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव आया है. ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन के साथ संबंध सुधरे हैं. माक्रों और मैर्त्स दोनों ने लंदन का दौरा किया है.

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Ukraine Kyjiw 2025 | Premierminister Keir Starmer, Präsident Emmanuel Macron und Kanzler Friedrich Merz reisen zu Treffen mit Präsident Wolodymyr Selenskyj
तस्वीर: Stefan Rousseau/REUTERS

2016 में यूनाइटेड किंगडम के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने तक, उसकी विदेश नीति यूरोपीय संघ के ढांचे, विशेष रूप से इसकी सामान्य विदेश और सुरक्षा नीति (सीएफएसपी) और सामान्य सुरक्षा व रक्षा नीति (सीएसडीपी) द्वारा ही तय होती थी.

ई3 यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी और फ्रांस के बीच एक अनौपचारिक विदेश और सुरक्षा सहयोग व्यवस्था है. इसे अंग्रेजी में "मिनिलेटरलिज्म" के रूप में जाना जाता है, जिसका मतलब है समान विचारधारा वाले देशों का एक छोटे समूह में आकर अनौपचारिक रूप से साथ मिलकर काम करना.

कब साथ आई तिकड़ी

ई3 समूह का गठन 2003 में इराक पर अमेरिकी हमले के बाद हुआ था. शुरुआत में, इसका मकसद इराक के लिए एक त्रिपक्षीय रणनीति तैयार करना और ईरान से जुड़े परमाणु जोखिमों के बारे में पता करना था.

आगे चलकर तीनों देशों ने मुख्य रूप से ईरान से जुड़ी परमाणु गतिविधियों से संबंधित बातचीत करने के लिए ही बैठकें की, खासकर तब जब अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए ) ने ईरान की परमाणु गतिविधियों से जुड़ी रिपोर्ट का खुलासा किया.

ई3 ने अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और ईरान के बीच सामूहिक बातचीत में एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ की भूमिका निभाई. इस समूह ने 2015 के ईरान परमाणु समझौते (जेसीपीओए) पर बातचीत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

एक दूसरे से बातचीत करते इमानुएल माक्रों, किएर स्टार्मर और फ्रीडरिष मैर्त्स
समूह का गठन 2003 में इराक पर अमेरिकी हमले के बाद हुआ थातस्वीर: Leon Neal/Getty/AP/dpa/picture alliance

ब्रेक्जिट के बाद संबंध बिगड़े

2016 में यूके के यूरोपीय संघ छोड़ने के लिए मतदान करने के बाद यूके, फ्रांस और जर्मनी के बीच संबंध खराब हो गए. औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ से बाहर होने के बाद ब्रिटेन को टेढ़ी नजरों से देखा गया.

ब्रिटेन और फ्रांस के बीच उत्तरी सागर में मछली पकड़ने के अधिकारों और प्रवासियों के आने जाने को लेकर तल्खी भी दिखाई दी. जर्मनी में भी ब्रेक्जिट के बाद इससे होने वाले आर्थिक नुकसान का अंदेशा था. 2016 में जर्मनी का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार यूनाइटेड किंगडम 2024 में नौवें स्थान पर आ गया.

पिछले कुछ सालों में ई3 समूह के पतन का एक और कारण फ्रैंको-जर्मन रिश्तों में आई दूरी को भी माना जाता है. 2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद, तत्कालीन जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के बीच यूक्रेन को समर्थन से लेकर ऊर्जा जैसे कई मुद्दों पर मतभेद भी उभरे.

नए त्रिकोणीय गठबंधन का उदय

पिछले कुछ महीनों में तीनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने अलग अलग मंचों पर कई बार मुलाकातें की हैं. यूके के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर ने इस महीने लंदन में फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और जर्मन चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स दोनों की मेजबानी की.

तीनों देशों ने रक्षा और सुरक्षा संबंधी कई सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं. जिसे फिर से इस तिकड़ी की एक सतही लेकिन व्यावहारिक वापसी के रूप में देखा जा रहा है.

बातचीत करते इमानुएल माक्रों, किएर स्टार्मर और फ्रीडरिष मैर्त्स
समूह ने एक मध्यस्थ के रूप में भूमिका निभाई हैतस्वीर: Kay Nietfeld/dpa/picture alliance

E3 गठबंधन को दोबारा जीवित करने का लक्ष्य फ्रांस, जर्मनी और यूके के बीच रक्षा, सुरक्षा और विदेश नीति पर आने वाले खतरों का बेहतर और मिलकर सामना करना है.

चूंकि यह यूरोपीय संघ, जी-7 और नाटो (NATO) के ढांचे से बाहर है, इसलिए ज्यादा लचीला होकर काम करने की छूट देता है. पिछले कुछ महीनों में इस समूह ने गाजा और ईरान-इस्राएल संघर्ष के साथ परमाणु साधनों से जुड़े मुद्दे पर बातचीत फिर शुरू करने की बात कही है.

कौन, किसे और कैसे मदद करेगा

यूके और फ्रांस ने युद्धविराम की स्थिति में यूक्रेन में शांति स्थापना मिशन का समर्थन करने के लिए इच्छुक गठबंधन शुरू किया है. फ्रांस और जर्मनी ने एक संयुक्त रक्षा और सुरक्षा परिषद की स्थापना की है.

इसके अलावा ये समूह मानवीय सहायता, आर्थिक प्रतिबंध, साइबर सुरक्षा, प्रवासन जैसे मुद्दों पर भी एक दूसरे से सहयोग की उम्मीद करते हैं.

ब्रेक्जिट और ट्रंप प्रशासन की अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रति संदेह जैसी चुनौतियों के बावजूद, ई3 ने सहयोग जारी रखा है. इस समूह को भविष्य में कुछ अंदरूनी कठिनाइयों को भी दूर करना पड़ सकता है.हालांकि, यूरोप के तीन सबसे बड़े सैन्य खर्च करने वाले देशों के बीच कूटनीति और सुरक्षा नीति को मजबूत करने का मुख्य लक्ष्य शायद एक अच्छा विचार है.