इस्राएल पर प्रतिबंध लगाने पर दो हिस्सों में बंटा यूरोपीय संघ
३० अगस्त २०२५गाजा में जारी गहरे मानवीय संकट पर यूरोपीय संघ इस्राएल के खिलाफ कैसी और क्या प्रतिक्रिया देगा, इस पर फिलहाल सहमति नहीं बन पाई है. शनिवार को कोपनहेगन में हुई संघ के विदेश मंत्रियों की बैठक बेनतीजा रही. बैठक के दौरान इस पर जर्मनी समेत कुछ देशों ने सहमति नहीं दी. यूरोपीय आयोग ने सिफारिश की थी कि इस्राएल की कंपनियों को दिए जाने वाले रिसर्च फंड पर रोक लगाने देनी चाहिए. आयोग के मुताबिक इस्राएल ने यूरोपीय संघ के साथ उस समझौते का उल्लंघन किया है जिसके तहत मानवाधिकारों को प्राथमिकता देना अनिवार्य है.
इस बैठक में जर्मनी उन देशों में शामिल रहा, जो इस्राएल पर प्रतिबंध लगाने को राजी नहीं हैं. जर्मनी के विदेश मंत्री योहान वाडेफुल ने बैठक में इस बात पर जोर दिया कि जर्मनी फिलहाल इस्राएल पर प्रतिबंध लगाए जाने का पक्षधर नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि जिन कदमों को इस्राएल के खिलाफ उठाने की सिफारिश की गई है, उनका शायद ही कोई खास असर गाजा पट्टी में इस्राएल की सैन्य गतिविधियों या राजनीतिक फैसलों पर देखने को मिले. इन तर्कों के आधार पर जर्मनी ने इन प्रतिबंधों का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.
रिसर्च फंडिंग रोकना कारगर नहीं: जर्मनी
जर्मन चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स ने अगस्त में इस बात का ऐलान किया था कि अगली घोषणा तक जर्मनी इस्राएल को गाजा पट्टी में इस्तेमाल करने के लिए हथियार सप्लाई नहीं करेगा. वाडेफुल ने यह भी कहा कि इन प्रतिबंधों की जगह जर्मनी इस्राएल को हथियार ना भेजने के अपने फैसले पर कायम है. उन्होंने इसे आयोग के सुझाए गए प्रतिबंधों से अधिक कारगर तरीका बताया. उन्होंने कहा कि ये एक बेहद लक्षित कदम है जो मौजूदा समय में बेहद जरूरी भी है.
ईयू की मुख्य राजनयिक काया कालास ने कहा कि उन्हें उम्मीद भी नहीं थी कि गाजा में चल रहे युद्ध पर संघ को कैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए, इस पर आम सहमति बन पाएगी जब संघ इस्राएली कंपनियों की रिसर्च फंडिंग बंद किए जाने जैसे 'नरम प्रतिबंध' पर बहुमत जुटाने में असफल रहा. यह प्रतिबंध तब लागू हो पाता जब संघ के 27 में से कम से कम 15 सदस्य इस पर अपनी हामी भरते.
यूरोपीय संघ के सबसे बड़ा देश होने के नाते, जर्मनी की राय इस मुद्दे पर बेहद अहमियत रखती है. कालास ने कहा, "जब संघ दो हिस्सों में बंटा हुआ तो उसकी आवाज में एकता नहीं होती. अगर आपकी आवाज में एकता नहीं है तो मतलब यह बनता है कि इस मुद्दे पर वैश्विक स्तर पर संघ का कोई मत नहीं है."
डेनमार्क ने की सख्त प्रतिबंधों की मांग
जर्मनी और ऑस्ट्रिया जैसे यूरोपीय देशों ने जहां इस प्रतिबंध पर सहमति नहीं दी, वहीं डेनमार्क, स्पेन और आयरलैंड ने और कड़ा रुख अपनाने की सिफारिश की. डेनमार्क के विदेश मंत्री लार्स लुके रासमुसन ने कहा कि ईयू को अपने शब्दों को अब कार्रवाई में बदलने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "इस्राएल और वहां के लोगों को हम अपना दोस्त मानते हैं लेकिन हमें वहां की मौजूदा सरकार से दिक्कत है."
उन्होंने यह भी कहा कि डेनमार्क इस्राएल के साथ व्यापार बंद करने, वहां के सामान के आयात को रोकने और इस्राएली मंत्रियों पर प्रतिबंध लगाने को तैयार है. उन्होंने इस ओर भी इशारा किया कि संघ के सदस्यों के बीच ऐसे मुद्दे पर सहमति बनना शायद मुमकिन नहीं है क्योंकि सबसे धीमे सदस्य संघ की गति तय करते हैं.
फ्रांस, लग्जमबर्ग, आइसलैंड, आयरलैंड, नॉर्वे, स्पेन और स्लोवेनिया जैसे यूरोपीय देशों ने साझा बयान जारी कर इस्राएल के गाजा पट्टी पर स्थायी कब्जे की योजना की आलोचना की है. इन देशों के विदेश मंत्रियों ने अपने बयान में कहा कि फलस्तीनियों को जबरन उनकी जमीन से बेदखल करना अतंरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है. साथ ही उन्होंने इस्राएली सेना से अपने ऑपरेशन को तुरंत रोकने की अपील भी कही.
वहीं, ब्रिटेन ने भी अगले महीने लंदन में होने वाले एक अहम डिफेंस शो में इस्राएली अधिकारियों के आने पर रोक लगा दी है. वहां की सरकार ने यह भी कहा कि अगर गाजा में हालात ऐसे ही बने रहे तो वह सितंबर में फलीस्तीन को देश के रूप में स्वीकार करेगा.