45 करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची यूरोप की आबादी
१२ जुलाई २०२५यूरोपीय संघ की आबादी 45 करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. शुक्रवार को ईयू ने आंकड़े जारी करते हुए बताया कि आप्रवासियों की बढ़ती संख्या का इसमें बड़ा योगदान है. 1960 में जहां यूरोप की जनसंख्या 35.45 करोड़ थी, आज उसमें करीब 9.59 करोड़ नए लोग जुड़े हैं.
इसके दो पहलू हैं. एक तो यूरोपीय देशों की बूढ़ी होती आबादी और घटती प्रजनन दर. दूसरा, यूरोप में आने वाले प्रवासी. 2024 में यूरोपीय संघ के देशों में जहां 48.2 लाख लोगों की मौत हुई, वहीं जन्म लेने वालों की संख्या 35.6 लाख थी. वहीं, इस दौरान यहां आने वाले आप्रवासियों की संख्या 23 लाख थी.
आप्रवासियों की आबादी ने यूरोप की मूल जनसंख्या में आई गिरावट की भरपाई की. 1980 के दशक में यूरोप में आप्रवासन बढ़ा और यह 1990 से जनसंख्या में होने वाली बढ़त का कारण भी रहा. जन्म से ज्यादा मौतों की संख्या की स्थिति भी यूरोप में 1960 से 1995 के बीच बढ़ती गई. यूरोपीय संघ के आंकड़ों को दर्ज करने वाली आधिकारिक संस्था यूरो स्टैट के मुताबिक यूरोप की बढ़ती आबादी का श्रेय काफी हद तक कोविड 19 के बाद यहां आप्रवासियों की बढ़ती संख्या को दिया जा सकता है.
घटती प्रजनन दर सबसे बड़ी चुनौती
यूरोप की करीब 47 फीसदी आबादी जर्मनी, इटली और फ्रांस में रहती है. जर्मनी 8.4 करोड़, इटली 5.9 करोड़ और फ्रांस 6.6 करोड़ के साथ इस वक्त यूरोप के सबसे घनी आबादी वाले देशों में शामिल हैं. आंकड़ों के मुताबिक जहां पिछले साल यूरोप के 19 देशों की प्रजनन दर में बढ़त दर्ज की गई, वहीं करीब 9 देशों में गिरावट देखी गई.
माल्टा, आयरलैंड और लक्जमबर्ग जैसे देशों में सबसे अधिक बढ़त दर्ज की गई, वहीं लात्विया, हंगरी, पोलैंड और एस्टोनिया के प्रजनन दर में गिरावट देखी गई. यह भी कहा गया है कि आने वाले वक्त में मौतों की संख्या में इजाफा ही होगा क्योंकि इस वक्त यूरोप की आबादी बूढ़ी होती जा रही है और प्रजनन दर में भी लगातार गिवारट जारी है. अगर यही स्थिति बनी रही तो यूरोप की आबादी में उतार-चढ़ाव का भविष्य बहुत हद तक आप्रवासन पर निर्भर रहेगा.
आप्रवासन पर नकेल कसता यूरोप
जर्मनी, पोलैंड और इटली समेत कई यूरोपीय देशों की सरकारों ने हाल में आप्रवासन और शरणार्थियों के लिए अपनी नीतियां सख्त की हैं. यहां तक कि यूरोपीय देशों ने अपनी आंतरिक सीमा सुरक्षा और पाबंदियां भी बढ़ दी हैं. बेल्जियम, जर्मनी पोलैंड और नीदरलैंड्स ने अपनी अपनी सीमाओं पर अस्थायी जांच शुरू की है.
बदलती नीतियों के कारण यूरोप के वीजा फ्री शेंगेन क्षेत्र के भीतर भी लोग एक जगह से दूसरी जगह जाने के दौरान मुश्किलें झेल रहे हैं. सरकारों का तर्क है कि ऐसा उन्होंने अवैध आप्रवासियों की संख्या कम करने के उद्देश्य से किया है. हालांकि, 2021 के बाद बीते साल अवैध तरीके से सीमा पार करने वालों की संख्या में 38 फीसदी की कमी भी आई है.