बीजिंग सम्मेलन से पहले बढ़ा ईयू और चीन का व्यापारिक तनाव
१८ जुलाई २०२५अगले हफ्ते बीजिंग में होने वाले यूरोपीय संघ-चीन शिखर सम्मेलन में व्यापार से जुड़े विवादों के समाधान की उम्मीद कम दिखाई दे रही है, क्योंकि चीन ने दो दिवसीय वार्ता को एक दिन में सीमित कर दिया है. यह शिखर सम्मेलन यूरोपीय संघ-चीन राजनयिक संबंधों की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित किया जा रहा है.
पहले इसका आयोजन ब्रसेल्स में होना था, लेकिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसमें शामिल होने के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया. इसके बाद, सम्मेलन की जगह को बदलकर ब्रसेल्स से बीजिंग कर दिया गया. यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन और यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष एंतोनियो कोस्टा अब चीनी राजधानी में शी या प्रधानमंत्री ली केचियांग से मुलाकात करेंगे.
यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन (ईसीएफआर) में एशिया प्रोग्राम की पॉलिसी फेलो अलिसिया बचुल्स्का ने डीडब्ल्यू को बताया, "इससे यह भी पता चलता है कि बीजिंग, यूरोप के साथ जुड़ने को लेकर बहुत ज्यादा इच्छुक नहीं है.” उनका कहना है कि चीन के अमीर और प्रभावशाली लोग ईयू को एक ऐसी ताकत मानते हैं जो वैश्विक व्यापारिक समझौतों में बहुत ज्यादा असरदार भूमिका नहीं निभा पाता है.
यूरोपीय संघ की शिकायतें अनसुनी कर दी गईं
यूरोपीय संघ और चीन के बीच चल रहे विवाद की मुख्य वजह है 400 अरब यूरो का व्यापार घाटा, जो ईयू को चीन के साथ झेलना पड़ रहा है. इस विवाद को और बढ़ावा मिल रहा है, क्योंकि ईयू के उत्पादकों को चीन के बाजार में घुसने में कई तरह की बंदिशों का सामना करना पड़ता है. चीन की औद्योगिक नीतियों के तहत, घरेलू उत्पादकों को तरजीह दी जाती है. उन्हें सरकारी सब्सिडी, सरकारी ठेके और उनके हिसाब से बने नियमों का पूरा फायदा मिलता है.
यूरोपीय संघ के अधिकारियों का कहना है कि इन नीतियों के कारण अत्यधिक उत्पादन हुआ है, जिस वजह से सस्ते चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को यूरोपीय संघ के बाजार में ‘डंप' किया जा रहा है. इससे स्थानीय ऑटो सेक्टर को नुकसान पहुंच रहा है. अलिसिया ने कहा, "चीन की अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी है. वहां सरकार जबरदस्त सब्सिडी देती है, जरूरत से ज्यादा उत्पादन होता है और सरकार हर चीज में दखल देती है. अगर ईयू अपनी ऑटो इंडस्ट्री को बचाने के लिए ‘ठोस कदम' नहीं उठाता है, तो ऐसी आशंका है कि कुछ सालों में यूरोप की फैक्टरियां बंद होने लगेंगी और यह क्षेत्र कमजोर हो जाएगा.”
यूरोपीय संघ ने चीनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर 45 फीसदी तक का शुल्क लगाया है. साथ ही, ईयू ने चीन से दो मुख्य मांगे की हैं. पहली मांग यह है कि जरूरत से ज्यादा उत्पादन बंद किया जाए. वहीं दूसरी मांग यह है कि ईयू की कंपनियों को भी चीन के बाजार में वैसा ही मौका मिले जैसा चीन की कंपनियों को यूरोप में मिलता है. इस बीच, चीन की ओर से मांग की गई है कि ईवी पर लगे शुल्क हटा दिए जाएं और उनकी जगह कम से कम कीमत तय की जाए. साथ ही, कुछ अन्य छूट भी दी जाए.
अप्रैल में, चीन की कारोबारी नीतियों से जुड़ी चिंताओं को लेकर यूरोपीय संघ ने अपने बाजार की सुरक्षा के लिए एक इंपोर्ट सर्विलांस टास्क फोर्स (आयात निगरानी कार्य बल) का गठन किया. इससे यूरोपीय संघ के एंटी-डंपिंग शुल्क या अन्य सुरक्षा उपाय लागू हो सकते हैं. इस टास्क फोर्स ने पाया कि अप्रैल 2025 में चीन ने यूरोपीय संघ में 2024 के अप्रैल के मुकाबले 8.2 फीसदी ज्यादा सामान भेजा. उन्हें लगा कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि चीनी व्यापारियों ने ट्रंप के ज्यादा शुल्क से बचने के लिए, जो सामान अमेरिका भेज रहे थे उसे अब यूरोपीय संघ में भेजना शुरू कर दिया.
वहीं दूसरी ओर, चीन का कहना है कि वह अपने देश की कंपनियों को गलत तरीके से कोई फायदा नहीं पहुंचाता है, बल्कि यूरोपीय संघ खुद ही संरक्षणवादी नीतियां अपना रहा है. बीजिंग का तर्क है कि वह अपने स्थानीय उत्पादकों की मदद इसलिए करता है, क्योंकि यह देश की सुरक्षा और आर्थिक तरक्की के लिए जरूरी है.
रेयर अर्थ खनिज पर प्रतिबंध से यूरोपीय कंपनियां निराश
यूरोपीय संघ के वार्ताकार चीन के बाजार तक पूरी तरह पहुंच बनाने में सफल नहीं हो रहे हैं. ऊपर से, रेयर अर्थ खनिजों पर चीन का पूरा कब्जा है, जो स्वच्छ तकनीक, चिप निर्माण और मेडिकल उपकरणों के लिए बहुत जरूरी हैं. यह भी एक बड़ी समस्या है. यूरोपीय आयोग के मुताबिक, ईयू अपनी 98 फीसदी रेयर अर्थ की आपूर्ति और रेयर अर्थ मैग्नेट के लिए चीन पर निर्भर है.
पिछले साल चीन ने रेयर अर्थ खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिससे यूरोपीय संघ की कंपनियों को आपूर्ति श्रृंखला में देरी और उत्पादन बंद होने जैसी समस्याएं झेलनी पड़ीं. चीन के कस्टम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 2025 के पहले पांच महीनों में, यूरोपीय संघ को भेजे गए रेयर अर्थ खनिजों का मूल्य 84 फीसदी कम होकर 15.1 मिलियन डॉलर रह गया.
जून में कनाडा में हुए जी7 शिखर सम्मेलन में, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फॉन डेय लाएन ने रेयर अर्थ खनिजों पर लगे प्रतिबंधों को लेकर चीन पर ‘दबाव' डालने और ‘ब्लैकमेल' करने का आरोप लगाया. उन्होंने यह भी कहा कि ‘किसी एक देश को जरूरी कच्चे माल और मैग्नेट जैसे उत्पादों के बाजार के 80 से 90 फीसदी हिस्से पर नियंत्रण नहीं रखना चाहिए.'
चीन सरकार ने इस आलोचना को खारिज कर दिया है. पिछले हफ्ते विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि यूरोपीय संघ को अपनी ‘सोच बदलनी चाहिए' और उसे ‘ठीक करना' चाहिए. हालांकि, यूरोपीय संघ के व्यापार आयुक्त मारोस सेफकोविक ने जून में बातचीत करके रेयर अर्थ खनिजों के निर्यात पर लगी कुछ पाबंदियां हटवा लीं. उन्होंने कुछ यूरोपीय कंपनियों के लिए ‘ग्रीन चैनल' भी शुरू करवाया, ताकि उन्हें जरूरी सामान आसानी से मिल सके, पर कई कंपनियां अभी भी कह रही हैं कि सामान के लिए मंजूरी मिलने में इतनी देर लग जाती है कि आपूर्ति में रुकावट आ ही जाती है.
चीन में मंदी, अविश्वसनीय नीतियां और यूरोपीय कंपनियों की बढ़ती निराशा
यूरोपीय संघ के पास पहले से ही एक नियम है, एंटी-कोएर्सियन इंस्ट्रूमेंट. इससे वह चीन के खनिज प्रतिबंधों जैसे आर्थिक दबाव के मामलों पर नजर रखता है. इस नियम के तहत, यूरोप किसी भी देश के निवेश को सीमित कर सकता है या उस पर रोक लगा सकता है. अब यूरोपीय नेताओं से मांग की जा रही है कि वे चीन के खिलाफ ज्यादा सख्ती बरतें. इनमें चीन पर शुल्क लगाना, उनके सामान खरीदने पर रोक लगाना या दूसरे सख्त कदम उठाना शामिल है.
अलिसिया बचुल्स्का ने इस पूरे मामले पर कहा, "हमें यह दिखाना होगा कि यूरोप पीछे नहीं हटेगा और हमारे पास ‘एंटी-कोएर्सियन इंस्ट्रूमेंट (एसीआई)' जैसे उपाय हैं, जिन्हें हम जरूरत पड़ने पर लागू करेंगे.” हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इन उपायों को लागू करने के लिए राजनीतिक हिम्मत चाहिए.
ट्रंप की वजह से चीन के साथ रिश्ते सुधारने का मौका
यूरोपीय संघ के कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि डॉनल्ड ट्रंप की ओर से लगाए गए शुल्क ने दशकों पुराने ट्रांस-अटलांटिक के घनिष्ठ संबंधों यानी अमेरिका और यूरोप के पुराने अच्छे रिश्तों को बिगाड़ दिया, पर इसी वजह से उन्हें अब चीन के साथ रिश्ते सुधारने का मौका मिल रहा है. वे कहते हैं कि अमेरिका से व्यापार में परेशानी होने के कारण चीन को अब यूरोप की बहुत जरूरत है और अगले सप्ताह होने वाले शिखर सम्मेलन के दौरान उस पर छूट देने का दबाव डाला जा सकता है. हालांकि, बचुल्स्का इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं दिख रही हैं. उन्होंने कहा, "ये बातें उतनी समझदारी भरी नहीं हैं. चीन ने अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध का पहला दौर जीत लिया है. बीजिंग को पक्के तौर पर लगता है कि यूरोपीय संघ से बातचीत में समय उनके पक्ष में है.”
वहीं दूसरी ओर, शी जिनपिंग चीन की अर्थव्यवस्था को बदल रहे हैं. अब उनका ध्यान ज्यादा उत्पादन करने के बजाय अच्छी गुणवत्ता वाली चीजें बनाने पर है. अब उनकी प्राथमिकताओं में नई तकनीकें, घरेलू मांग पूरी करना, सुरक्षा और पर्यावरण को बेहतर बनाना शामिल है. चीन अब पश्चिमी देशों की तकनीकी ताकत को चुनौती दे रहा है. इसमें एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), सुपर कंप्यूटर और इलेक्ट्रिक वाहन बनाना शामिल है. कुछ मामलों में, जैसे कि 6G मोबाइल टेक्नोलॉजी में, चीन ने पश्चिमी देशों को पीछे छोड़ दिया है.
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यूरोपीय संघ चीन से होने वाले आर्थिक खतरे को हल्के में ले रहा है. वे यह भी कहते हैं कि संघ ने चीन की गलत व्यापार नीतियों को रोकने के लिए जरूरी कड़े कदम नहीं उठाए हैं. बचुल्स्का के मुताबिक, "यूरोप में चीन से जुड़ी समस्याओं को अक्सर टाल दिया जाता है, क्योंकि हमारे पास पहले से ही यूक्रेन युद्ध और ट्रंप के साथ व्यापार विवाद जैसी कई बड़ी समस्याएं हैं. चीन भले ही दूर की चुनौती लगे, लेकिन चीन की नीतियों का असर जल्द ही यूरोप में दिखने लगेगा.”