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इतिहासजर्मनी

होलोकॉस्ट से बचकर भागे अमेरिकी सैनिक ने फासीवाद से चेताया

हंस फाइफर
८ मई २०२५

99 वर्षीय गेऑर्ग लाइटमन ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सैनिक के रूप में जर्मनी को नाजी विचारधारा से मुक्ति दिलाने में मदद की थी. लेकिन अब उसके 80 साल बाद वह फासीवाद के दोबारा लौटने के खतरे को लेकर चेता रहे हैं.

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गेऑर्ग लाइटमन नाजी जर्मनी के खिलाफ लड़ने वाले एक अमेरिकी सैनिक
गेऑर्ग लाइटमन नाजी जर्मनी के खिलाफ लड़ने वाले केवल एक आम अमेरिकी सैनिक नहीं थे बल्कि वह स्वयं होलोकॉस्ट से बचकर भागे थेतस्वीर: George Leitmann

गेऑर्ग लाइटमन जब जर्मनी पहुंचे थे, तब वह केवल 19 वर्ष के थे. वह 1945 का वसंत था और यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति की कगार पर था. अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत रेड आर्मी के सैनिक सभी मोर्चों पर अग्रसर थे ताकि अडॉल्फ हिटलर के नेतृत्व में चल रहे नाजीवाद से यूरोप को मुक्त कराया जा सके.

अमेरिकी सेना की छठवीं आर्मी के 286वें कॉम्बैट इंजीनियर बटालियन के सिपाही लाइटमन और उनके साथियों ने जब जर्मनी की धरती पर कदम रखा, तब युद्ध अपने प्रचंड रूप में था. लाइटमन ने याद करते हुए कहा, "फ्रंट लाइन बेहद अस्थिर थी.” और दक्षिणी जर्मनी के गांवों की स्थिति काफी पेचीदा थी.

युद्ध के अंतिम महीनों में जर्मन सेना, वेयरमाख्ट और एसएस डूबते हुए नाजी शासन को बचाने की आस में पूरे दम-खम से युद्ध लड़ रहा था.

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गेऑर्ग ने युद्ध की उन भयावह घटनाओं का काफी करीब से देखा है और कुछ घटनाओं ने तो आज, 80 वर्षो बाद तक भी उनका पीछा नहीं छोड़ा है.

उन्होंने बताया, "हम एक नगर की ओर बढ़ रहे थे. तभी हमने देखा, वहां 15-20 बच्चे थे, सभी लड़के. उनकी उम्र 10 से 12 साल के बीच रही होगी.” लेकिन वह सभी मृत थे. उन्हें सूली पर लटका रखा था. "मैंने पहला दरवाजा खटखटाया. मुझे जानना था कि आखिर यहां हुआ क्या.”

स्थानीय लोगों ने बताया कि कुख्यात जर्मन वाफ्फन, एसएस के सदस्यों ने उन बच्चों की हत्या की है. "वाफ्फन एसएस के सदस्य यहां आए थे और बच्चों को इकट्ठा कर हर बच्चे के हाथ में एक पांसरफाउस्ट (टैंक उड़ाने वाला हथगोला) पकड़ा दिया था और कहा था कि जैसे ही अमेरिकी टैंक दिखे उस पर चला देना.”

लेकिन जब टैंक आए तो बच्चे भाग गए. फिर "अगले दिन एसएस फिर आया. उसे जितने भी बच्चे मिले, उन्हें पकड़ कर सूली पर टांग दिया.”

काउफरिंग में एक यातना शिविर को मुक्त कराने वाले अमेरिकी सैनिकों में लाइटमन भी थे
काउफरिंग में एक यातना शिविर को मुक्त कराने वाले अमेरिकी सैनिकों में लाइटमन भी थेतस्वीर: Public Domain/US Holocaust Memorial Museum

बाद में इतिहासकारों ने भारी संख्या में जर्मन नागरिकों की ऐसी कई हत्याएं दर्ज की, जो युद्ध के अंतिम चरण में वेयरमाख्ट और एसएस ने की थी. वह भी केवल इसलिए क्योंकि अब वह और लड़ना नहीं चाहते थे.

इंसानियत से भरोसा उठ गया

युद्ध के दौरान हुए अनुभवों ने गेऑर्ग लाइटमन को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया. हवा में झूलते वो बच्चे आज भी उनके भीतर घर किये हुए है. वह कहते है, "यह घटनाएं इतनी व्यापक है कि इंसानियत पर ही शक होने लगता है. शायद यही बात मुझे सबसे ज्यादा परेशान करती है कि आप खुद पर भी भरोसा नहीं कर सकते.”

युद्ध समाप्त होने के दशकों बाद भी लगभग सभी जर्मन जनसंहारकों और उनके सहयोगियों ने युद्ध की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया. वह युद्ध, जिसमें 6 करोड़ से अधिक लोगों की जान गई थी.

यहां तक कि उन्होंने फासीवादी विचारधारा का समर्थक होने से भी इनकार कर दिया था. ऐसी विचारधारा जिसकी शुरुआत इंसानों को "योग्य” और "अयोग्य” में बांटने से हुई और जिसका अंत यहूदी, सिंटी, रोमा और अनेक लोगों के सामूहिक नरसंहार से हुआ. होलोकॉस्ट में उन्होंने 15 लाख बच्चों की हत्या कर दी, वह भी केवल इसलिए क्योंकि वह यहूदी थे.

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गेऑर्ग लाइटमन नाजी जर्मनी के खिलाफ केवल एक आम अमेरिकी सैनिक नहीं थे. बल्कि वह स्वयं होलोकॉस्ट से बचकर भागे थे. उनका जन्म ऑस्ट्रिया की राजधानी, वियना में हुआ था. जब नाजियों ने उनके देश पर कब्जा किया, तब 1940 में उनके यहूदी परिवार ने अमेरिका जाने का फैसला किया.

गेऑर्ग, उनकी मां और उनके दादा-दादी को अमेरिका का वीजा मिल गया लेकिन उनके पिता, योसफ को वीजा नहीं मिल पाया. जिस कारण वह अपनी जान बचाने की आस में उस समय के यूगोस्लाविया में भाग गए. जब परिवार को लगा कि गेऑर्ग के पिता योसफ अब सुरक्षित हैं, तो गेऑर्ग और उनका परिवार भी अमेरिका के लिए जहाज से रवाना हो गया. हालांकि, गेऑर्ग उसके बाद कभी अपने पिता को नहीं देख पाए.

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जर्मन लोगों द्वारा किए गए अपराधों की व्यापकता को गेऑर्ग लाइटमन कभी भूल नहीं पाए. युद्ध के बाद उन्होंने अमेरिका में एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक जीवन चुना. उन्होंने कई वर्षो तक बर्कले के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में बतौर इंजीनियरिंग के प्रोफेसर काम किया. उन्हें इसके लिए कई सम्मान और पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं.

आज के समय में वह बर्कले के ही एक वृद्धाश्रम में अपनी 100 वर्षीय पत्नी नैन्सी के साथ रह रहे हैं. और अब भी वह कई सवालों का जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं, "मैं अक्सर खुद से सवाल करता हूं, जर्मन लोगों जैसे इतने शिक्षित व्यक्तियों ने इतने कम समय में  इतना भयानक कृत्य कैसे कर किया?”

हालांकि, बाकी सवालों की तरह ही इस सवाल का भी उनके पास कोई जवाब नहीं हैं. लेकिन यह सवाल कभी उनका पीछा नहीं छोड़ते हैं. यह उनके दिमाग में घूमते रहते हैं: "जब मैं उन जर्मन लोगों से मिला, तो मेरे दिमाग में आया कि यह कितने दोषी हैं और इनके माता-पिता कितने दोषी है?”

अपने पिता की तलाश में

जब गेऑर्ग लाइटमन ने 18 वर्ष की उम्र में अपने उस समय के देश, अमेरिका के लिए स्वेच्छा से सैन्य सेवा में शामिल होने का निर्णय लिया तो उसके पीछे एक गहरी वजह थी, और वो थी उनके पिता के अंजाम को लेकर अनिश्चितता. जर्मनी के खिलाफ उनका संघर्ष केवल एक युद्ध की वजह से ही नहीं था. बल्कि एक तलाश से भी जुड़ा था.

यही चीज उन्हें उनके अन्य साथियों से अलग बनाती थी. वे बताते हैं, "बाद में, जब हम म्यूनिख के पास काउफरिंग में एक यातना शिविर में गए. मैं यह केवल एक बार ही कर पाया, तो सभी साथी स्तब्ध रह गए. हालांकि, उनके लिए यह कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं था, बल्कि घृणा और सदमे की भावना थी. लेकिन मेरे दिमाग में यह अनुभव तुरंत मेरे पिता के अंजाम से जुड़ गया. मैं हमेशा यह आशा करता रहा कि शायद किसी तरह वह बच निकले हों. उम्मीद ही केवल ऐसी चीज है, जिसे थाम कर जिया जा सकता है. जब भी हम मुक्त कराए गए लोगों से मिलते थे, तो मन में हमेशा यह उम्मीद रहती थी कि शायद कहीं मेरे पिता भी मिल जाए.”

वर्तमान पर फासीवाद का साया

जैसा कि वियना के एक इतिहासकार, फ्लोरियान वेनिंगर ने अपने भाषण में कहा कि सबसे ताकतवर की सत्ता यानी फासीवाद का साया फिर लौट रहा है.

वेनिंगर ने कहा, "ईलॉन मस्क मानते हैं कि संवेदनशीलता पश्चिमी सभ्यता की सबसे बड़ी कमजोरी है. लेकिन फिर भी अपने मूल्यों का अडिग रहना अति आवश्यक है. अगर सामाजिक व्यवहार, न्याय और संवेदनशीलता को जानबूझकर निशाना बनाया जाता रहेगा, तो इसका असर भी स्पष्ट देखने को मिलेगा. निष्ठुरता और निर्दयता हम सब पर भी भारी पड़ेगी, यह हम सब को भी खतरे में डाल सकती है.”

वर्तमान राजनीतिक माहौल गेऑर्ग लाइटमन को भी चिंतित करता है. वे कहते हैं, "डॉनल्ड ट्रंप जैसा व्यक्ति भी राष्ट्रपति बन सकता है. यह आश्चर्यजनक है. जनसंख्या के एक बड़ा हिस्से का फासीवादी विचारधारा का समर्थन करना बेहद चिंताजनक है. जब-जब किसी एक विशेष समूह को किसी समस्या के लिए दोषी ठहराया गया है, वह हमेशा विनाश की ओर ही लेकर गया है.”

गेऑर्ग लाइटमन का जन्म ऑस्ट्रिया में हुआ था
गेऑर्ग लाइटमन का जन्म ऑस्ट्रिया में हुआ थातस्वीर: DW

मई 2025 में गेऑर्ग लाइटमन 100 वर्ष के हो जाएंगे. वह मानते हैं कि तमाम कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने एक अच्छी जिंदगी जी है. उन्हें दुनिया घूमी है, अपना परिवार बसाया है और अनगिनत कमाल के लोगों से मुलाकात भी की है. लेकिन उनकी बढ़ती हुई उम्र उनके लिए बोझ बन रही है. अपनी तर्जनी उंगली उठाते हुए वह कहते हैं, "कोशिश करो कि इतने बूढ़ा ना हो. सच में, बिलकुल भी मजा नहीं आता है.”

द्वितीय विश्व युद्ध के कई वर्षो बाद उन्हें पता चला कि उनके पिता की मृत्यु कैसे हुई थी. जर्मनों ने उन्हें और हजारों अन्य बंदियों को यूगोस्लाविया के एक कैंप में गोली मार दी थी. वह भी इसलिए क्योंकि वह यहूदी थे. गेऑर्ग लाइटमन आज भी हर रोज इस बारे में सोचते हैं कि उनके पिता ने उन आखिरी पलों का सामना कैसे किया होगा.