आधुनिक मानव से पहले का मानव भी हर वातावरण में रह लेता था
१९ जून २०२५हाल ही में ऐसे कुछ ऐसे प्रमाण मिले कि 10 लाख साल पहले भी रेगिस्तान में रहा है आदिमानव. मानव में हर तरह के वातावरण के हिसाब से खुद को ढाल लेने की प्रवृत्ति, एक बड़ा हुनर है जो कोई नई चीज नहीं. आधुनिक युग के बहुत पहले से यह मानव में मौजूद रही है. बुधवार को नेचर जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, प्राचीन होमो सेपिएंस ने जीवन के प्रति लचीला रुख विकसित किया था. इतिहास गवाह है कि अलग-अलग तरह की आवासीय परिस्थितियों में खाना खोजते और घूमते हुए उन्होंने अपने जीवन के तौर तरीकों का विकास किया. लगभग 50,000 साल पहले अफ्रीका से बाहर निकलने के बहुत पहले उनमें यह खूबी विकसित हो गई थी. हालांकि बाद वाले इंसानों की बनाई बस्तियां और उनमें रहने वाले इंसान बचे रहे जबकि उनसे पहले वाले खत्म हो गए.
मानव का लचीलापन उसकी सबसे बड़ी खूबी
जर्मनी के जेना शहर में माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट ऑफ जियोएंथ्रोपोलॉजी में इवॉल्यूशनरी आर्कियोलॉजिस्ट एलेनर शेरी का कहना है, "हमारी सबसे बड़ी ताकत है कि हम इकोसिस्टम को सामान्य बना लेते हैं." मानव प्रजातियों की सबसे पहले करीब 3 लाख साल पहले अफ्रीका में उत्पत्ति हुई. पहले मिले जीवाश्मों से पता चलता है कि कुछ समूहों ने इस महाद्वीप के बाहर बहुत पहले पांव रखे थे लेकिन दुनिया के जिन हिस्सों में लंबे समय तक मानव बस्तियों का बसेरा बना वहां तो सिर्फ 50,000 साल पहले ही लोग आए थे.
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शिकागो की लोयला यूनिवर्सिटी की आर्कियोलॉजिस्ट एमिली हैलेट इस रिसर्च रिपोर्ट की सहलेखिका हैं उनका कहना है, "बाद में हुए प्रवासों की परिस्थितियों में क्या अंतर था, इस बार इंसान इसके लिए तैयार क्यों था?" पहले के सिद्धांतों में माना गया है कि पाषाण युग के मानव ने शायद कोई एक अहम तकनीकी विकास या फिर सूचना साझा करने का नया तरीका विकसित किया था, हालांकि रिसर्चरों को इस सिद्धांत को पुष्ट करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला. इस रिसर्च में एक अलग रुख अपनाया गया है जिसमें मानव के लचीलेपन की विशेषता पर ध्यान दिया गया है.
वातावरण बदलते गए लेकिन इंसान खुद को ढालता रहा
वैज्ञानिकों ने कई पुरातात्विक ठिकानों से आंकड़ों को जमा किया है. ये ठिकाने अफ्रीका में उन जगहों पर हैं जहां 120,000 से 14,000 साल पहले तक इंसान की मौजूदगी थी. हर जगह के लिए रिसर्चरों ने एक स्थानीय जलवायु का मॉडल बनाया है जो उसी के जैसा है, जब प्राचीन मानव वहां रहता था.
हैलेट का कहना है, "70,000 साल पहले जिन आवासों का इंसान ने इस्तेमाल शुरू किया था उनमें सचमुच काफी ज्यादा बदलाव हुए हैं. हम ने एक स्पष्ट संकेत देखा है कि इंसान ज्यादा चुनौतीपूर्ण ज्यादा चरम कारकों वाले वातावरण में रह रहे थे."
इंसान लंबे समय तक सवाना के जंगलों में रहे. उसके बाद वे 50,000 साल पहले घने वर्षावनों से लेकर सूखे रेगिस्तानों तक में रहे. उससे उनमें हैलेट के मुताबिक वातावरण के प्रती "लचीलापन पैदा हुआ जिसने उन्हें सफल बनाया."
इंसानों की यह खूबी शानदार है लेकिन ये इसका मतलब यह नहीं है कि सिर्फ होमो सेपियंस ने ही यह काम किया. बोर्दो यूनिवर्सिटी के आर्कियोलॉजिस्ट विलियम बैंक्स इस रिसर्च में शामिल नहीं थे. हालांकि उनका कहना है कि इंसान के पूर्वजों के दूसरे समूहों ने भी अफ्रीका को छोड़ा था और दूसरी जगहों पर लंबे समय तक आबाद रहने वाली बस्तियां बसाई थी. इनमें से कुछ आगे चल कर यूरोप के नीदरलैंड्स जैसे देशों की तरह विकसित हुए.
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उनका कहना है नई रिसर्च से यह समझने में मदद मिलेगी कि उस वक्त इंसान क्यों पूरी दुनिया में फैलने के लिए तैयार था. हालांकि इससे यह पता नहीं चल सका कि केवल हमारी प्रजाति ही दुनिया में क्यों बची रही. वर्तमान में दुनिया के कोने कोने में फैले इंसान एक ही प्रजाति के हैं जिन्हें होमो सेपियंस कहा जाता है. दुनिया में इंसानों की बाकी सभी प्रजातियां खत्म हो गईं. हालांकि होमो सेपियंस ही क्यों बचा और फलता फूलता रहा इस सवाल का उत्तर अब तक नहीं मिल सका है.