अमेरिकी एयरपोर्टों के आस पास आफत बने ड्रोन
२१ अप्रैल २०२५नवंबर की एक सर्द सुबह, सैन फ्रांसिस्को के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक कर्मशियल विमान लैंडिंग की तैयारी कर रहा था. पायलट विमान को नीचे उतारने की तैयारियों में व्यस्त थे. लेकिन तभी उनकी नजर सामने उड़ते एक ड्रोन पर पड़ी. ड्रोन, कॉकपिट के ठीक सामने उड़ रहा था और विमान से उसकी दूरी 300 फुट भी नहीं थी. पायलट, विमान और ड्रोन की संभावित टक्कर को टालने के लिए कुछ नहीं कर सकते थे, क्योंकि उनके पास प्रतिक्रिया करने लायक समय भी नहीं बचा था. गनीमत रही कि ड्रोन विमान के सामने से हट गया.
इस वाकये से ठीक एक महीने पहले मियामी इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास भी 4,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ रहे एक जेटलाइनर ने ड्रोन से हुए करीबी सामने की सूचना दी. अगस्त 2024 में नेवार्क एयरपोर्ट से उड़ान भरते समय एक यात्री विमान के बाएं डैने से महज 50 फीट की दूरी पर एक ड्रोन गुजरा.
इन सारी घटनाओं को "नियर मिड एयर कॉलिजन" यानी हवा में टक्कर की करीबी संभावना की श्रेणी में दर्ज किया गया है. उड़ान सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इनमें से एक भी टक्कर के गंभीर परिणाम हो सकते थे.
एयरपोर्टों के आस पास विमान पर सबसे ज्यादा खतरा
ऐसा नहीं है कि ये मामले अपवाद हैं. अमेरिकी समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस (एपी) ने उड़ान सुरक्षा के डेटा बेस की पड़ताल की है. इससे पता चला है कि करीबी टक्कर की संभावना के दो तिहाई मामले अमेरिका के सबसे व्यस्त 30 एयरपोर्टों के आस पास दर्ज किए गए. ये सारे मामले लैडिंग और टेक ऑफ के दौरान सामने आए.
एयरपोर्टों के आस पास यात्री विमानों पर खासा जोखिम मंडराता है. लैंडिंग या टेक ऑफ के दौरान पायलट व्यस्त होते हैं. इस दौरान उन्हें पंछियों और व्यस्त हवाई ट्रैफिक से भी दो चार होना पड़ता है. हाल ही में वॉशिंगटन डीसी के पास यात्री विमान और सैन्य हेलिकॉप्टर की टक्कर इस जोखिम के असर को बता चुकी है. जनवरी 2025 में हुई उस टक्कर में 67 लोग मारे गए.
अमेरिका में 10 लाख से ज्यादा ड्रोन
अमेरिका में विमान और ड्रोन की करीबी टक्कर की संभावना का पहला मामला 2014 में दर्ज किया गया. लेकिन बीते 10 साल में करीबी टक्कर की संभावना के कुल 240 मामले सामने आए, इनमें से 122 में ड्रोन शामिल थे. ये वो मामले हैं जो एयरलाइनों और उड़ान से जुड़े अधिकारियों ने दर्ज किए हैं. आम लोगों द्वारा रिपोर्ट किए गए मामलों को अगर इसमें जो़ड़ा जाए तो ये संख्या हजारों में जा सकती है.
अमेरिका के संघीय उड़ान प्रशासन (एफएए) के मुताबिक अमेरिकी नागरिक 10 लाख से ज्यादा ड्रोन उड़ा रहे हैं. विलियम वाल्डॉक, फ्लोरिडा की एम्ब्री रिडल एयरोनॉटिकल यूनिवर्सिटी में सुरक्षा विज्ञान के प्रोफेसर हैं. वाल्डॉक कहते हैं, "अगर आपके पास पैसा है तो आप इंटरनेट पर जाकर ऐसा अत्याधुनिक ड्रोन खरीद सकते हैं, जो इतनी ऊंचाई पर जा सकता, जहां उसका कोई काम न हो."
विशेषज्ञों के मुताबिक एयरपोर्टों के आसपास ड्रोनों की मौजूदगी से जोखिम कई गुना बढ़ जाता है. एफएए के एक दस्तावेज के मुताबिक, मार्च 2025 में ही एयरपोर्टों के आस पास 160 बार ड्रोन रिपोर्ट किए गए. ये मामले आम लोगों ने रिपोर्ट किए.
असरदार क्यों नहीं है एयरपोर्ट के आस पास ड्रोनों पर लगाया गया प्रतिबंध
एफएए के मुताबिक सभी एयरपोर्टों के आस पास ड्रोन उड़ानें पर प्रतिबंध लागू है, लेकिन आम लोगों के सहयोग के बिना इसे अमल में लाना मुश्किल हो रहा है. एफएए के अधिकारियों के मुताबिक हो सकता है कि कई ड्रोन उड़ाने वाले ऐसे नियमों से अंजान हों.
अब एयरपोर्टों के आस पास ड्रोन जैमर भी टेस्ट किए जा रहे हैं. ड्रोनों को नाकाम करने के लिए हाई पावर वाले माइक्रोवेव या लेजर बीम तैनात करने पर भी विचार हो रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक जिस तरह सड़क के ट्रैफिक पर कैमरों की मदद से नजर रखी जाती है, वैसी ही व्यवस्था ड्रोनों के लिए भी करने की जरूरत है. एक्सपर्ट कहते हैं कि नियमों का उल्लंघन करने वाले ड्रोन ऑपरेटरों पर चालान की तरह जुर्माना लगाया जाना चाहिए.
एफएए चाहे तो ड्रोन निर्माताओं से भी बात कर जियो फेंसिंग का विकल्प तलाश सकता है. जियो फेंसिंग के तहत ड्रोनों में कुछ ऐसे जीपीएस कॉर्डिनेट्स डाले जाते हैं, जहां ड्रोन चाहकर भी उड़ान नहीं भर पाते हैं. लेकिन जियो फेंसिंग के लिए कानून बनाए बिना ऐसा करना संभव नहीं है.
ड्रोन बनाने वाली मशहूर चाइनीज कंपनी डीजेआई के मुताबिक, अधिकृत ड्रोन पायलटों से बार बार जियो फेंसिंग निलंबित करने की आधिकारिक दरख्वास्त आने के बाद उसने इस विकल्प को बंद कर दिया है. डीजेआई की ग्लोबल पॉलिसी के प्रमुख एडम वेल्स के मुताबिक, बीते साल जियो फेंसिंग निलंबित करने की 10 लाख से ज्यादा दरख्वास्तें आईं. कंपनी के मुताबिक जियो फेंसिंग को डिसेबल करने में बहुत समय लगता है. वेल्स कहते हैं, "हमारी सेवा चौबीसों घंटे है लेकिन आवेदन इतने ज्यादा आते हैं कि उन्हें प्रोसेस करने में दिक्कत होती है. हर एक आवेदन की अलग से समीक्षा करनी पड़ती है."