जर्मनी: रेलवे पर तीन हमले, धुर-वामपंथी समूह ने ली जिम्मेदारी
३ अगस्त २०२५जर्मनी की राष्ट्रीय रेलवे सेवा डॉयचे बान (डीबी) ने कहा है कि आग जानबूझकर लगाई गई थी. आग लगने की पहली घटना 31 जुलाई को ड्यूसलडॉर्फ शहर के पास हुई. यह जर्मनी के सबसे व्यस्त रेलवे मार्गों में से एक है. यह रूअर औद्योगिक इलाके को उत्तरी जर्मनी और स्विट्जरलैंड से जोड़ता है.
जहां यह घटना हुई, उससे करीब दो किलोमीटर दूर दूसरी घटना हुई. ये दोनों घटनाएं एक ही दिन हुईं. दोनों में रेल केबल को जलाया गया था. एक ही तरह के उपकरणों का इस्तेमाल किया गया. रेल केबल, खास तरह की इलेक्ट्रिक तारें होती हैं जिन्हें रेलवे सिस्टम में इस्तेमाल किया जाता है. ये पावर और सिग्नल भेजने की अहम जिम्मेदारी निभाती हैं.
जर्मनी के ट्रेन स्टेशनों पर हिंसा और अपराध बढ़े
डीबी ने बताया कि इन वारदातों के कारण सैकड़ों ट्रेनें प्रभावित हुईं. उन्हें या तो रद्द करना पड़ा, या उनका रास्ता बदलना पड़ा. हजारों यात्री प्रभावित हुए. हर दिन तकरीबन 700-800 रेलवे कनेक्शनों के साथ, ड्यूसलडोर्फ-डुइसबुर्ग लाइन जर्मनी के सबसे व्यस्त रेलमार्गों में से एक है. यहां होने वाले व्यवधानों का असर बर्लिन, फ्रैंकफर्ट और यहां तक कि पड़ोसी देश नीदरलैंड्स पर भी होता है.
तीसरा हमला हुआ मालगाड़ियों के रास्ते पर
तीसरी घटना 1 अगस्त को हुई, हालांकि इसका पता अगले दिन चला. यह वारदात सैक्सनी-अनहाल्ट राज्य के होएनमोएल्जन में हुई. डीबी ने बताया कि यह लाइन मालगाड़ियों के लिए है और खासतौर पर कोयला ढुलाई के लिए इस्तेमाल की जाती है. इसके कारण पैसेंजर ट्रेनों पर असर नहीं पड़ा.
जर्मनी में हर साल रेलवे क्यों नीलाम करती है हजारों साइकिलें
डीबी ने अपने बयान में कहा, "शुरुआती जांच के अनुसार, केबल में आग लगने की यह घटना भी आपराधिक थी." राज्य की सुरक्षा एजेंसियां और 'फेडरल ऑफिस फॉर दी प्रोटेक्शन ऑफ दी कॉन्स्टिट्यूशन' (बीएफवी) ने इन वारदातों की जांच शुरू कर दी है.
बीएफवी, जर्मनी की घरेलू खुफिया एजेंसी है. कट्टरपंथी गतिविधियों की निगरानी करना और आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डालने वाली ताकतों पर नजर रखना भी इसकी जिम्मेदारियों में शामिल है.
इन घटनाओं के पीछे किसका हाथ?
पहली वारदात की जिम्मेदारी कथित तौर पर एक धुर-वामपंथी समूह ने ली है, जो अपना नाम "एंग्री बर्ड्स कमांडो" बताता है. समूह का दावा है कि उसने पर्यावरण की "तबाही की व्यवस्था" को रोकने के लिए यह कदम उठाया.
नॉर्थ राइन वेस्टफालिया राज्य (जहां शुरुआती दो घटनाएं हुईं) के गृह मंत्री हेरबर्ट रॉइल के हवाले से बताया कि इन हमलों के पीछे वामपंथी चरमपंथियों का हाथ होने की आशंका है.
उन्होंने कहा, "जानबूझकर नुकसान पहुंचाने की इस गतिविधि को जिस तरह से हमारा प्रशासन देख और समझ रहा है, उसके अनुसार ये वामपंथी चरमपंथी थे जो हमें औद्योगिकरण से पहले के दौर में ले जाना चाहते हैं."
यूरोप के अन्य रेल नेटवर्कों की तुलना में क्यों पिछड़ गया जर्मन डॉयचे बान
रॉइल ने यह भी कहा कि "एंग्री बर्ड्स कमांडो" के बारे में प्रशासन को पहले से जानकारी है और हालिया सालों में इस समूह ने कई बार ड्यूसलडॉर्फ इलाके में आयोजनों को नुकसान पहुंचाया है.
जर्मन अखबार 'टागेसश्पीगल' ने नॉर्थ राइन वेस्टफालिया के परिवहन मंत्री ओलिवर क्रिशर के हवाले से बताया है कि इन घटनाओं से बड़ा नुकसान हुआ है. कार्रवाई के संदर्भ में क्रिशर ने कहा, "यह कोई बेवकूफाना मजाक नहीं है, यह कोई मामूली अपराध नहीं है. हम बहुत करीब से इसकी जांच कर रहे हैं और सारे सुराग देख रहे हैं." घटनास्थल का मुआयना करने के बाद क्रिशर ने कहा कि घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को तलाशने के लिए एजेंसियां हरसंभव प्रयास करेंगी.
हालांकि, जर्मनी के पब्लिक ब्रॉडकास्टर 'डब्ल्यूडीआर' ने पुलिस के हवाले से बताया कि अभी इस दावे की सत्यता की पुष्टि नहीं हो सकी है. पुलिस ने इसकी वजह यह बताई कि इस तरह के मामलों में अक्सर 'कॉपीकैट्स' शामिल होते हैं. यानी, किसी संगठन के तौर-तरीके की नकल करके खुद को उसके रूप में पेश करने वाले.
सबसे लंबी रेल हड़ताल से जर्मनी पस्त, पड़ोसी देशों पर भी असर
क्या है 'कमांडो एंग्री बर्ड्स' और क्या मकसद बताता है?
कथित 'कमांडो एंग्री बर्ड्स' खुद को एक पूंजीवादी विरोधी समूह बताता है. उसके मुताबिक, वह प्रकृति की रक्षा के लिए तकनीकी-औद्योगिक व्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त करना चाहता है. यह समूह पहले भी कई मौकों पर हमलों की जिम्मेदारी ले चुका है, जिनमें मालगाड़ियों के रास्ते को निशाना बनाना शामिल है.
तांबा चोरों से परेशान जर्मन रेल
'इंडिपेंडेंट मीडिया सेंटर' या, संक्षेप में 'इंडीमीडिया' ऐक्टिविस्ट पत्रकारों का एक नेटवर्क है. 31 जुलाई को इसपर छपे एक बयान में खुद को 'कमांडो एंग्री बर्ड्स' बताने वाले एक समूह ने एक पत्र जारी किया है. इसे 'लेटर ऑफ कन्फेशन' (स्वीकारोक्ति) कहा गया है.
इसमें लिखा है, "राइन-अल्पाइन कॉरिडोर यूरोप के कुछ सबसे अहम आर्थिक केंद्रों को जोड़ता है: रॉटरडैम, एम्सटर्डम, डुइसबुर्ग, कोलोन, फ्रैंकफर्ट, माइनहाइम, बासेल, ज्यूरिख, मिलान और जेनोआ. डुइसबुर्ग-ड्यूसलडॉर्फ कोलोन क्षेत्र इसके कई संकरे सेक्शनों में से एक है. यहां रेलवे यातायात में किसी भी तरह के व्यवधान के कारण, प्रभावित ट्रेनों का मार्ग बदले जाने के कारण, इस समूचे आर्थिक इलाके पर प्रत्यक्ष-परोक्ष असर पड़ेगा. अभी-अभी हमने ड्यूसलडॉर्फ हवाईअड्डे के उत्तर में बड़ी रुकावट पैदा की."
पत्र में आगे लिखा है, "कौन यह दावा करने की हिम्मत कर सकता है कि प्रकृति अपने भीतर वो हर चीज नहीं रखती, तो अच्छी जिंदगी के लिए जरूरी हैं. अगर उद्योग को हटा दिया जाए, तो दुनिया कमतर नहीं, बल्कि कुछ ज्यादा ही होगी. फिर, प्रकृति क्या है? उद्योग के बिना ये क्या होगी? इसके बिना कुछ नहीं हो सकता है, लेकिन इंडस्ट्रियल सिस्टम के बिना जो बेहतर हो सकता है उसकी कोई सीमा नहीं."
रिपोर्टों के अनुसार, यह संगठन "पार्टिसिपेट्री ऐक्टिविज्म" की शैली पर चलता है. यानी, किसी विचारधारा या कथित आदर्श में यकीन रखने वाले लोगों की हिस्सेदारी. 'डब्ल्यूडीआर' ने नॉर्थ राइन वेस्टफालिया के गृह मंत्री हेरबर्ट रॉइल के हवाले से बताया कि इस "भागीदारी संस्कृति" के कारण जांच काफी मुश्किल है.
वजह यह कि यह कोई नियत या स्थिर समूह नहीं है. रॉइल ने कहा, "उनमें से कुछ सबोटाज (जान-बूझकर नुकसान पहुंचाना) संबंधी गतिविधियों के लिए ऑनलाइन निर्देश देते हैं. फिर बाकी लोग इनपर अमल करते हैं. जरूरी नहीं कि सदस्य एक-दूसरे को जानते ही हों."