इतिहास के बारे में हमारी समझ बदलेगी कार्बन रेडियो डेटिंग एआई
६ जून २०२५‘प्लॉस वन' जर्नल में इस हफ्ते प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, प्राचीन पांडुलिपियों की लिखावट की शैलियों का अध्ययन करने के लिए प्रशिक्षित एक एआई से पता चला है कि कई डेड सी स्क्रॉल हमारी पहले की धारणा से कहीं ज्यादा पुराने हो सकते हैं.
डेड सी स्क्रॉल यानी मृत सागर हस्तलिपियां उन प्राचीन धार्मिक ग्रंथों का एक संग्रह है जो मृत सागर के पास स्थित कुमरान की गुफाओं और पास के रेगिस्तानी इलाकों में 1947 से 1956 के बीच खोजे गए थे. ये बहुत पुराने समय (करीब दो हजार साल पहले) के लिखे हुए धार्मिक दस्तावेज हैं, जिनसे यहूदी और ईसाई धर्म केइतिहास को समझने में मदद मिलती है.
यह नया रिसर्च प्राचीन चीजों की पढ़ाई के एक नए दौर का हिस्सा है. अब रिसर्चर एआई की मदद से सदियों पुराने और जर्जर हो चुके स्क्रॉल में छिपे रहस्यों को उजागर कर रहे हैं. इस नए तरीके में एआई, रेडियो कार्बन डेटिंग, और लिखावट की जांच को एक साथ इस्तेमाल किया जाता है, ताकि किसी भी पुराने लेख की सही उम्र का ज्यादा सटीक अंदाजा लगाया जा सके.
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रिसर्चरों का मानना है कि अब जो नई तारीखें सामने आई हैं वे डेड सी स्क्रॉल के साथ-साथ यहूदी और शुरुआती ईसाई धर्म को समझने के हमारे तरीके को पूरी तरह बदल सकती हैं.
नीदरलैंड्स के ग्रोनिंगन विश्वविद्यालय के रिसर्चर और अध्ययन के लेखक म्लाडेन पोपोविक ने कहा, "डेड सी स्क्रॉल की सही उम्र जानने की चुनौती को सुलझाने में एक अहम पड़ाव तय करना और एक ऐसा नया उपकरण विकसित करना बेहद रोमांचक है, जिससे भविष्य में इतिहास की दूसरी पांडुलिपियों के संग्रह पर भी शोध किया जा सकेगा.”
रेडियो कार्बन डेटिंग और हस्तलिपियों का एआई से विश्लेषण
1947 में इस्राएल की एक गुफा से पहली बार मिले डेड सी स्क्रॉल, पिछली सदी की सबसे बड़ी और अहम पांडुलिपि खोज माने जाते हैं. डेड सी स्क्रॉल में लगभग 1,000 पांडुलिपियां हैं. इनमें हिब्रू बाइबिल के ग्रंथों की कुछ सबसे पुरानी ज्ञात प्रतियां शामिल हैं. इन पांडुलिपियों पर हुए शोध ने ईसाई धर्म की शुरुआत और यहूदी धर्म की स्थापना को लेकर हमारी समझ को पूरी तरह बदल दिया है.
प्राचीन लिखावट (पैलियोग्राफी) के अध्ययन से इन पांडुलिपियों की उम्र का पता चला है कि ये 250 ईसा पूर्व से 100 ईस्वी तक, यानी कई सौ सालों के दौरान लिखी गई थीं. हालांकि, प्राचीन ग्रंथों का विश्लेषण करना रिसर्चरों के लिए एक चुनौती रही है, खासकर जब एक लेखक की लिखावट को दूसरे से अलग करना हो. इसी वजह से इन ग्रंथों की सही उम्र तय करना मुश्किल हो जाता है.
रिसर्चरों ने बेहतर तरीके से विश्लेषण करने के लिए, एआई का इस्तेमाल करके लिखावट की जांच करने और उस जानकारी को रेडियो कार्बन डेटिंग से मिलाने का लक्ष्य रखा. रेडियो कार्बन डेटिंग एक ऐसी विधि है जो कार्बन-14 नाम के तत्व को मापकर किसी भी चीज की उम्र बताती है, क्योंकि यह तत्व समय के साथ धीरे-धीरे कम होता जाता है.
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रिसर्च रिपोर्ट के लेखक लिखते हैं, "इस नए मॉडल से प्राचीन लेखों का अध्ययन अब ज्यादा सही और स्पष्ट तरीके से किया जा सकता है, क्योंकि यह व्यक्ति की सोच पर कम और ठोस आंकड़ों पर ज्यादा निर्भर करता है.”
एक एआई मॉडल को सबसे पहले उन 24 पांडुलिपियों के आधार पर प्रशिक्षित किया गया जिनकी रेडियो कार्बन डेटिंग विश्वसनीय मानी जाती थी. इसके बाद, रिसर्चरों ने इसी एआई मॉडल का इस्तेमाल ऐसे 135 स्क्रॉल की लिखावट की जांच करने के लिए किया जिनकी सही तारीखें मालूम नहीं थीं. ये स्क्रॉल लगभग 200 ईसा पूर्व से 100 ईस्वी तक, यानी तीन सदियों के थे.
विश्लेषण के अनुसार, इससे लिखित पांडुलिपियों की उम्र 79 फीसदी सटीकता के साथ निर्धारित करने का बेहतर तरीका तैयार हुआ.
ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन के लिए एआई टूल विकसित करने वाले थिया सोमरशील्ड और यानिस असैल ने डीडब्ल्यू को भेजे गए ईमेल में बताया, "इस अनोखे तरीके से रिसर्चर अब इतिहास के गहरे ज्ञान को तकनीक की बारीकी से जोड़ पाए हैं.” हालांकि, सोमरशील्ड और असैल इस रिसर्च में शामिल नहीं थे.
डेड सी स्क्रॉल की नई उम्र सीमा
रिसर्चरों का मानना है कि उनके विश्लेषण से इन स्क्रॉल की नई उम्र सीमा सामने आ सकती है. अगर यह साबित हो जाता है, तो इससे प्राचीन यहूदियों के इतिहास और इन ग्रंथों को लिखने वाले लोगों के बारे में हमारी समझ पूरी तरह बदल जाएगी.
एआई के विश्लेषण से यह सामने आया है कि ये पांडुलिपियां जितनी पुरानी पहले मानी जाती थीं, उससे भी ज्यादा प्राचीन हैं. एआई के अनुसार, ये दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व की शुरुआत की हैं, और कुछ तो उससे भी थोड़ी पुरानी हो सकती हैं.
विद्वान अक्सर मानते हैं कि लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य से हसमोनियन साम्राज्य के उदय और विस्तार के कारण ही लेखन और बौद्धिक संस्कृति का विकास हुआ. हालांकि, इस नए शोध के लेखकों का दावा है कि उनके निष्कर्षों से पता चलता है कि इस अवधि से पहले भी लेखक कई साहित्यिक पांडुलिपियों की नकल कर रहे थे.
सोमरशील्ड और असैल का कहना है कि नए अध्ययन से पता चलता है कि एआई का इस्तेमाल दूसरे प्राचीन ग्रंथों की उम्र का सटीक निर्धारण के लिए किया जा सकता है.
उन्होंने अपने ईमेल में लिखा, "यह नया अध्ययन एक अहम बात सामने लाता है. तकनीकी उपकरण इंसानी विशेषज्ञता को कम नहीं करते, बल्कि उसे बढ़ाते हैं. इससे उन ग्रंथों से जुड़ी नई खोज के रास्ते खुल गए हैं जिनका गहराई से अध्ययन पहले ही किया जा चुका है.”
प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करने वाले विद्वानों का मानना है कि वे एआई की वजह से एक नए युग की शुरुआत करने जा रहे हैं. उदाहरण के लिए, शोधकर्ता प्राचीन ग्रंथों का अनुवाद करने के लिए भी एआई का इस्तेमाल कर रहे हैं. पहले उन्हें इस तरह के काम में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था.