हजारों साल से चली आ रही हैं अंडे को सजाने की परंपरा
हजारों साल से जर्मनी में सोर्बियन अल्पसंख्यक समुदाय अंडों को रंगों से सजाता आ रहा है. रंग बिरंगे अंडे ईस्टर के मौके पर यहां हर तरफ नजर आते हैं.
सबसे बड़ा त्यौहार ईस्टर
पोलैंड की सीमा से महज 16 किलोमीटर दूर श्लाइफे टाउन में सोर्बियन कल्चर सेंटर के लिए ईस्टर सबसे बड़ा त्यौहार है. यहां काम करने वाले लोग दो हफ्ते पहले ही यहां पारंपरिक कपड़े पहनकर आते हैं और रंग बिरंगे अंडे बेचते हैं. इस दौरान यहां नाच गाने के कार्यक्रम भी होते हैं.
अंडों पर चलता ब्रश
आंके हानुष अपने औजार को गहरे नीले मोम में डुबोकर उसकी बूंदें पीले रंग के ईस्टर अंडों पर लगाती हैं. आगे पीछे चलते उनके हाथों से अंडों पर धीरे धीरे मोम के छत्ते की आकृति उभरने लगती है. यह अंडा जिस बच्चे को मिलेगा वह खुशी से निहाल हो जाएगा.
मुर्गी से लेकर एमु तक के अंडे
30 से ज्यादा कलाकार ईस्टर अंडे बेचने के लिए इस बार कल्चरल सेंटर में पहुंचे थे. सबसे सस्ता मुर्गी का सजा हुआ अंडा 7 यूरो का था जबकि एमु के रंगीन अंडे की कीमत 90 यूरो थी.
हजारों साल पुरानी परंपरा
ईस्टर के अंडों को सजाने की परंपरा स्लाविच बोलने वाले सोर्बियन जाति के लोग जर्मनी में ले कर आए. ये लोग करीब 1,500 साल पहले मध्य और पूर्वी यूरोप से आकर यहां बसे स्लाविच जनजातियों के वंशज हैं.
रंगों का महत्व
सोर्बियाई समुदाय में रंगों का महत्व उनके सजाए अंडों के साथ दूसरी चीजों से भी पता चलता है. समुदाय के लोग जब ईस्टर के लिए अंडे बेचने आते हैं तो उनके कपड़े खास तरह के होते हैं. हानुष ने इस मौके पर लाल पारंपरिक ड्रेस और टोपी पहनी जबकि शादी शुदा औरतें हरे रंग के कपड़े और टोपी पहनती हैं.
जर्मनी में सोर्बियन समुदाय
जातीय अल्पसंख्यक सोर्बियन समुदाय के करीब 60,000 लोग फिलहाल जर्मनी के सैक्सनी और ब्रांडनबुर्ग राज्यों में रहते हैं. अंडों को रंगने की यह परंपरा उन्हीं के दम पर आज भी चली आ रही है.
सोर्बियाई परिवारों में अंडों की रंगाई
सोर्बियाई परिवारों के लोग बहुत बचपन से ही इस काम को सीखने में जुट जाते है. ठीक वैसे ही जैसे दूसरे बच्चों को पेंसिल पकड़ना सिखाया जाता है. दो साल की उम्र से ही ये लोग अंडों को रंगना सीखने लगते हैं.
मेहनत और समय
अंडों को रंगों से सजाने में काफी धैर्य और मेहनत की जरूरत होती है. अमूमन एक अंडे को रंगों से सजाने के लिए 90 मिनट से 6 घंटे का समय लग जाता है. यह इस पर निर्भर है कि कौन सी तकनीक इस्तेमाल हो रही है, डिजाइन कैसा होगा और अंडे का आकार क्या है.
कहां से आते हैं अंडे
ये कलाकार आमतौर पर सुपरमार्केट से अंडा नहीं खरीदते. इन्हें फार्म जा कर सीधे किसानों से खरीदा अंडा ज्यादा पसंद आता है. कुछ लोग अंडों को सजाने का काम सिर्फ ईस्टर के मौके पर करते हैं तो कुछ सालों भर इसमें जुटे रहते हैं.
रंगाई का औजार
अंडे को रंगने के लिए कलाकार खासतरह की सुईयों और हंस के पंखों का इस्तेमाल करते हैं. इन्हें अलग-अलग तरह के डिजाइन बनाने के लिए अलग तरीकों से काटा जाता है.
बदलते वक्त की मुश्किलें
बीते सालों में कोरोना और बर्डफ्लू जैसी मुश्किलों ने कई बार अंडों की सप्लाई पर असर डाला और महंगाई भी काफी बढ़ी. हालांकि इन कलाकारों का कहना है कि अंडों को रंगने की कला और परंपरा पर इन सब का ज्यादा असर नहीं हुआ.