दुनिया के विकास के कीमत चुकाते मंगोलिया के चरवाहे
मंगोलिया के चरवाहों ने दुनिया को गर्म करने में कोई भूमिका नहीं निभाई है, लेकिन अब जलवायु परिवर्तन की मार झेलने वालों में वे काफी आगे हैं.
बदलती प्रकृति से संघर्ष
सूरज डूबने से पहले जदान लखामसुरेन अपनी बकरियों को बाड़े में बंद कर रहे हैं. लखामसुरेन मध्य मंगोलिया के ओवोरखांगाई प्रांत के खारखोरिन इलाके में रहते हैं. करीब साल भर पहले पड़ी कड़ाके की सर्दी ने उनके पशुधन को तकरीबन पूरी तरह तबाह कर दिया. लखामसुरेन आज भी उस नुकसान से उबर नहीं सके हैं. मौसम अब उन्हें अकसर चौंकाता रहता है.
करीबन बंजर होता इलाका
मंगोलिया पर जलवायु परिवर्तन की भीषण मार पड़ रही है. वैश्विक तापमान में औसत वृद्धि के मुकाबले यहां तापमान तीन गुना ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. ग्लोबल वॉर्मिंग और चरम मौसमी घटनाओं का संबंध यहां साफ तौर पर दिख रहा है. देश के बड़े हिस्से में सूखा, बाढ़, लू चलना और अचानक तीखी सर्दी जैसा मौसम देखा जा रहा है.
जानलेवा सर्दी
48 साल के जदान लखामसुरेन ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "पिछले साल जैसी सर्दी मैंने जीवन में पहली बार देखी." 2024 की सर्दियों में दिन के वक्त तापमान माइनस 32 डिग्री सेल्सियस तक गिरा और रात में तो पारा माइनस 42 डिग्री सेल्सियस तक लुढ़क गया. इस अप्रत्याशित मौसम से पूरे देश में करीब 70 लाख पशु मारे गए. देश का 10 फीसदी पशुधन एक झटके में खत्म हो गया.
जानलेवा किस्म का मौसम
मंगोलिया और मध्य एशिया के घास के मैदानों में 'जुड' नाम की एक घातक मौसमी आपदा आती है. इसमें पहले सूखा पड़ता है और फिर भयंकर बर्फबारी होती है. इस दौरान इतनी बर्फ गिरती है कि जानवर बर्फ से पटे मैदानों में चारे तक नहीं पहुंच पाते. बर्फ पिघलने तक और घास दोबारा उगने तक कई जानवर भूख से मर जाते हैं.
बार लौटता घातक मौसमी सीजन
पहले मंगोलिया में जुड जैसी चरम मौसमी घटनाएं 10 साल में एक बार हुआ करती थीं. लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, बीते 10 साल में ऐसा छह बार हो चुका है. मंगोलियाई अर्थव्यवस्था में पशुपालन की अहम भूमिका है. जदान लखामसुरेन कहते हैं, "जो कुछ बचा है, अब उसी को बचाने पर मेरा ध्यान है."
अधर में भविष्य
36 साल के इनेबोल्द दावा भी चरवाहे हैं. उनकी जिंदगी का बड़ा हिस्सा पशुओं के साथ घास के मैदानों में बीता है. बीती सर्दियों में उनकी 100 से ज्यादा बकरियां, 40 भेड़ें और तीन गायें मारी गईं. दावा कहते हैं, "यह हमारी आजीविका का मुख्य स्रोत है. इस नुकसान का हम पर बहुत गहरा असर पड़ा."
पशुओं के साथ बनें रहें या नहीं?
मंगोलिया की 25 फीसदी आबादी अब भी घुमंतू चरवाहों की तरह रहती है. लेकिन पिछले साल की सर्दियों के बाद हजारों चरवाहों ने अपना पुश्तैनी पेशा छोड़ राजधानी उलानबटार का रुख किया. दावा का परिवार भी बचे खुचे पशुओं का इंतजाम कर राजधानी में नई जिंदगी शुरू करने की सोच रहा है.