क्या मध्य पूर्व लड़ते लड़ते थक चुका है
शिया सुन्नी में बंटे मध्य पूर्व के देश, कई दशकों की लड़ाई के बाद एक दूसरे की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं.
अब्राहम की छाया में
अपनी स्थापना के बाद से ही इस्राएल और मुस्लिम देशों के बीच तनाव बना रहा. लेकिन 2020 में अमेरिका की मध्यस्थता में इस्राएल, यूएई और बहरीन के बीच समझौता हुआ. इसे अब्राहम समझौता कहा गया.
खत्म हुआ बहिष्कार
अब्राहम समझौते के जरिए सूडान, मोरक्को और कतर ने भी इस्राएल के साथ अपने रिश्ते सामान्य करने की पहल शुरू की. यूएई और इस्राएल के बीच बढ़ते कारोबार ने भी अन्य देशों को अपनी नीति बदलने के लिए प्रेरित किया.
ईरान-सऊदी सुलह
चीन की मध्यस्थता में ईरान और सऊदी अरब के विदेश मंत्रियों के बीच अप्रैल 2023 में बीजिंग में सुलह हुआ. शिया बहुल ईरान और सुन्नी बहुल सऊदी अरब बीते एक दशक से यमन, सीरिया और लेबनान में अपरोक्ष रूप से लड़ रहे थे.
एक दूसरे का बहिष्कार खत्म
सीरिया और सऊदी अरब ने एक दूसरे के यहां अपने दूतावास, एक दशक से भी ज्यादा समय से बंद किए हैं. ईरान-सऊदी सुलह के बाद सीरिया और सऊदी अरब के बीच भी रिश्ते बहाल करने की शुरुआत हो गई. दोनों देश विमान सेवा और दूतावास खोलने पर राजी हुए हैं.
तेल का खेल
इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की तरफ बढ़ रही दुनिया में धीरे धीरे पेट्रोलियम की भूमिका घटती दिख रही है. इसका असर खाड़ी और मध्यपूर्व की भूराजनीति पर दिख रहा है. मध्य पूर्व में पश्चिमी देशों की दिलचस्पी कम होने से चीन वहां अपनी भूमिका बढ़ाने लगा है.
फलीस्तीन के मुद्दे का अंत
1990 के दशक तक इस्राएल और मुस्लिम देश फलीस्तीन की वजह से एक दूसरे को दुश्मन मानते थे. लेकिन बीते 20 साल में हुए इराक युद्ध, अफगान युद्ध, यमन का गृहयुद्ध और अरब वसंत जैसे विवादों ने कई पक्षों को थका दिया है और फलीस्तीन के मुद्दे पर उदासीन सा बना दिया है.
नए सूरज को सलाम
सोवियत संघ के टूटन के बाद दुनिया में एकमात्र महाशक्ति के रूप में देखा जाने वाला अमेरिका भी अब कमजोर पड़ रहा है. उसे अब चीन से चुनौती मिलने लगी है. अर्थव्यवस्था के लिहाज से भी एशिया, इकोनॉमी का इंजन बना है. ऐसे में मध्यपूर्व के देश भी बदलाव की बयार को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं.