ब्रिक्स देशों की ब्राजील में बैठक में अमेरिकी दबाव पर चर्चा
२८ अप्रैल २०२५ब्रिक्स देशों के वरिष्ठ राजनयिक सोमवार को ब्राजील के रियो डी जेनरो में एक अहम बैठक के लिए जमा हुए. बैठक का मुख्य मकसद अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आक्रामक व्यापार नीतियों और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के बीच एक साझा रणनीति तैयार करना है.
यह बैठक उस समय हो रही है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी पड़ती दिखाई दे रही है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अमेरिकी टैरिफ के असर को देखते हुए वैश्विक विकास दर के अपने पूर्वानुमानों में कटौती कर दी है. बैठक दो दिन तक चलेगी और इसका मकसद जुलाई में प्रस्तावित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए जमीन तैयार करना भी है.
डॉलर प्रभुता पर चुनौती और ब्रिक्स देशों की नई पहल
ब्रिक्स देश पिछले कुछ वर्षों से अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने के प्रयास कर रहे हैं. विशेष रूप से रूस, चीन और ब्राजील अपनी द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार गतिविधियों में स्थानीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने पर बल दे रहे हैं.
इस दिशा में एक प्रस्ताव भी चर्चा में है, जिसके तहत ब्रिक्स देश एक साझा भुगतान प्रणाली विकसित कर सकते हैं जो डॉलर पर निर्भरता को कम कर दे. इसी संदर्भ में राष्ट्रपति ट्रंप ने मार्च में चेतावनी दी थी कि यदि ब्रिक्स देश अमेरिकी डॉलर को दरकिनार कर व्यापारिक लेन-देन करने का प्रयास करते हैं तो "नतीजे अच्छे नहीं होंगे". ट्रंप ने खुले तौर पर कहा था कि अगर डॉलर के वैश्विक वर्चस्व को चुनौती दी गई तो अमेरिका आर्थिक, राजनयिक और तकनीकी कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा.
राष्ट्रपति ट्रंप ने जनवरी में फिर से सत्ता संभालने के बाद वैश्विक व्यापार पर आक्रामक रुख अपनाते हुए दर्जनों देशों पर 10 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है. चीन के कई उत्पादों पर यह शुल्क 145 प्रतिशत तक जा चुका है, जबकि चीन ने जवाब में अमेरिकी वस्तुओं पर 125 प्रतिशत तक का शुल्क थोप दिया है.
जुलाई 2025 के बाद यदि प्रस्तावित नए टैरिफ लागू होते हैं, तो स्थिति और जटिल हो सकती है. ब्रिक्स देश अमेरिका के बड़े व्यापार साझीदार हैं और वे अमेरिका से समझौता करने की कोशिश में हैं. अगर ऐसा नहीं हो पाता तो उन्हें भारी टैरिफ झेलने होंगे. चीन के अधिकतर औद्योगिक उत्पादों और तकनीकी उपकरणों पर तो 145 फीसदी तक टैरिफ पहले ही लागू किए जा चुके हैं.
भारत पर 65 फीसदी तक टैरिफ लगाए जा सकते हैं, जिनमें विशेषकर फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल उद्योग शामिल होंगे. रूस के ऊर्जा और खनिज उत्पादों पर 85 फीसदी तक टैरिफ लग सकते हैं. ब्राजील के लिए अमेरिका एक अहम साझीदार है और उस पर 70 फीसदी तक टैरिफ लग सकते हैं. इससे उसके कृषि उत्पादों और मांस निर्यात पर काफी असर पड़ेगा. दक्षिण अफ्रीका भी 60 फीसदी तक टैरिफ तक का खतरा झेल रहा है. यदि ये शुल्क लगाए जाते हैं, तो ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर बड़ा दबाव पड़ सकता है, खासकर निर्यात-आधारित सेक्टर में.
ब्रिक्स देशों की मौजूदा आर्थिक स्थिति
वर्तमान में ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्था, वैश्विक जीडीपी का लगभग 39 प्रतिशत है. हालांकि, इन देशों के भीतर आर्थिक हालात अलग-अलग हैं और सबसे बड़ा हिस्सा चीन का है. चीन में फिलहाल विकासदर धीमी है लेकिन वह स्थिर वृद्धि और तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने पर जोर दे रहा है. भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है लेकिन मुद्रास्फीति और बेरोजगारी की चुनौती से जूझ रहा है. रूस पश्चिमी प्रतिबंधों और यूक्रेन युद्ध के कारण आर्थिक दबाव में है.
इन परिस्थितियों में, ब्रिक्स देशों का स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देना और वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में अधिक स्वतंत्रता हासिल करना उनकी दीर्घकालीन रणनीति का हिस्सा बनता जा रहा है.
ब्रिक्स की इस बैठक में बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की मजबूती, डॉलर निर्भरता में कमी, जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय, और यूक्रेन युद्ध के समाधान जैसे विषयों पर चर्चा होगी. ब्राजील के विदेश मंत्री मौरो विएरा इस बैठक की मेजबानी कर रहे हैं, जिसमें रूस के सर्गेई लावरोव और चीन के वांग यी सहित प्रमुख नेता शामिल हो रहे हैं.
मंगलवार को नौ अन्य "साझेदार" देशों के साथ भी विस्तार से बात होगी, जिनमें क्यूबा, मलेशिया, थाईलैंड, युगांडा, नाइजीरिया और कुछ पूर्व सोवियत गणराज्य शामिल हैं. ब्रिक्स देशों की यह सक्रियता वैश्विक शक्ति संतुलन में संभावित परिवर्तन का संकेत दे रही है, जो आने वाले महीनों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार और राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल सकती है.