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साईबाबा को बरी करने में अदालत ने दिया विधि के शासन का हवाला

१४ अक्टूबर २०२२

माओवादियों से संबंध के आरोप में सजा काट रहे जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाई कोर्ट ने बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि अगर मुल्जिम के लिए बचाव का छोटा सा रास्ता भी उपलब्ध है तो उसका संरक्षण होना चाहिए.

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जीएन साईबाबा
जीएन साईबाबातस्वीर: Sushil Kumar/Hindustan Times/imago

साईबाबा को सबसे पहले 2014 में गिरफ्तार किया गया था लेकिन बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था. 2017 में गडचिरोली की एक सेशंस अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया था. तब से वो नागपुर के केंद्रीय कारागार में बंद थे.

सेशंस अदालत ने उन्हें माओवादियों से संबंध रखने और "देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने" के परिणाम वाली गतिविधियों में शामिल होने का दोषी पाया था और यूएपीए के कई प्रावधानों के तहत सजा सुनाई थी.

मुल्जिम के अधिकार
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में मुल्जिम के कानूनी अधिकार पर जोर दिया हैतस्वीर: fikmik/YAY Images/IMAGO

लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने पाया के सेशंस अदालत ने साईबाबा के खिलाफ आरोपों को तैयार करने में यूएपीए कानून के प्रावधानों का पालननहीं किया था. पीठ ने बताया कि यूएपीए की धारा 45(1) के तहत मुल्जिम के खिलाफ आरोप तय करने से पहले केंद्र सरकार से स्वीकृति लेना अनिवार्य है, जो साईबाबा के मामले में नहीं ली गई थी.

तय प्रक्रिया का पालन

न्यायमूर्ति रोहित देव और न्यायमूर्ति अनिल पंसारे की पीठ ने कहा, "हमारा यह मानना है कि किसी मुल्जिम को कानूनी प्रक्रिया के तहत उपलब्ध कराए गए हर छोटे से छोटे बचाव के उपाय को पूरी तरह से संरक्षण मिलना चाहिए."

पीठ ने यह भी कहा कि आतंकवाद से देश को बहुत खतरा है और उसके खिलाफ हर हथियार का उपयोग किया जाना चाहिए, लेकिन एक नागरिक लोकतंत्र मुल्जिम को मिले प्रक्रियात्मक बचाव के उपायों की बलि नहीं चढ़ा सकता है.

अदालत ने यह भी कहा कि कानून की तय प्रक्रिया से हटने पर ऐसी व्यवस्था का जन्म होता है जिसमें आतंकवाद और पनपता है. इसके अलावा पीठ ने इस मामले में सेशंस अदालत के जज द्वारा दी गई टिप्पणी की आलोचना भी की.

ग्वांतानामो में जारी है आतंक के खिलाफ जंग

सेशंस जज ने अपने फैसले में कहा था कि साईबाबा के लिए आजीवन कारावास भी पर्याप्त सजा नहीं थी लेकिन चूंकि संबंधित कानून में इससे बड़ी सजा का प्रावधान नहीं है इसलिए अदालत के हाथ बंधे हुए हैं.

जेल में दुर्व्यवहार का आरोप

हाई कोर्ट ने इसे अनुचित टिप्पणी बताते हुए कहा कि इसका अनभिप्रेत परिणाम यह हो सकता है कि जज के फैसले पर निष्पक्ष ना होने का आरोप लग सकता है.

साईबाबा 90 प्रतिशत विकलांगता से पीड़ित हैं और व्हीलचेयर पर निर्भर हैं, लेकिन सेशंस अदालत ने इसे अहमियत नहीं दी थी. उन्होंने पुलिस पर जेल में उनके साथ बुरा बर्ताव करने का आरोप भी लगाया था.

मई में साईबाबा ने शिकायत की थी कि उनके जेल में जहां वो कैद हैं वहां एक चौड़े लेंस वाला सीसीटीवी कैमरा लगा दिया गया है जिससे शौच करने और नहाने का इलाका भी पूरी तरह से दिखाई देता है. उनके परिवार ने यह भी आरोप लगाया है कि जेल में उनकी शारीरिक अवस्था और बिगड़ गई है.