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मानवाधिकारसंयुक्त राज्य अमेरिका

855 महिलाएं, जिन्होंने युद्ध में नामुमकिन सा मिशन पूरा किया

स्वाति मिश्रा एपी
२९ अप्रैल २०२५

विश्व युद्ध में पुरुषों की वीरगाथाओं पर पॉपुलर कल्चर में बहुत कुछ है. फिल्में, किताबें, डॉक्यूमेंट्री! क्या महिलाओं ने कोई योगदान नहीं दिया? पढ़िए '688' की कहानी, जिन्हें अमेरिकी कांग्रेस का सर्वोच्च सम्मान मिला है.

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नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म "दी सिक्स ट्रिपल एट" का एक दृश्य
"सिक्स ट्रिपल एट" यूनिट में 855 महिलाएं थींतस्वीर: Bob Mahoney/Netflix/Courtesy Everett Collection/picture alliance

"उन्होंने हमें इसलिए नहीं भेजा है कि वो सोचते हैं, हम ये कर सकती हैं. हम यहां हैं, क्योंकि उन्हें यकीन है कि हम नहीं कर सकती हैं. यहां मौजूद कुछ और लोगों से अलग, हम वो हैं जिन्हें सबसे ज्यादा साबित करना है.अभी, यही वो जगह जहां तुम्हें सबूत देना है. यही है हमारा मिशन."

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ये 'सिक्स ट्रिपल एट' नाम की एक फिल्म के संवाद हैं, जो पिछले साल नेटफ्लिक्स पर आई थी. ये कहानी दूसरे विश्व युद्ध में एक असंभव चुनौती को पूरा करने वाली 688वीं सेंट्रल पोस्टल डायरेक्टरी बटालियन से प्रेरित है.

इस आर्मी यूनिट की दो खासियत थी. इसमें सभी महिलाएं थीं, और तकरीबन सारी महिलाएं ब्लैक थीं. यही दो खासियतें, इस यूनिट की सबसे बड़ी चुनौतियां थीं. इन्हीं बातों को इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त माना गया कि वो काबिल नहीं हैं.

बहुत जोर मारने पर जब उन्हें कोई बीड़ा दिया गया, तो ऐसा जो लगभग नामुमकिन था. मानो मिशन शुरू होने से पहले ही इरादतन यूनिट की नाकामी पक्की कर दी गई थी. लेकिन ये मंसूबे कामयाब नहीं हुए, और उन महिलाओं ने जो कर दिखाया वो इतिहास है.

नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म "दी सिक्स ट्रिपल एट" का एक दृश्य
688वीं यूनिट ने दिन में आठ-आठ घंटे की तीन शिफ्टें कीं, हर एक शिफ्ट में करीब 65,000 मेल प्रॉसेस किएतस्वीर: Bob Mahoney/Netflix/Courtesy Everett Collection/picture alliance

अब, आधी सदी से भी ज्यादा वक्त बाद 688 के योगदान को सम्मानित करते हुए 'कॉन्ग्रेसनल गोल्ड मैडल' दिया गया है. अमेरिका के 'हाउस ऑफ रेप्रेजेंटेटिव्स' के स्पीकर माइक जॉनसन, लेफ्टिनेंट कर्नल चैरिटी एडम्स एर्ले के परिवार को यह मैडल दिया.

अमेरिकी कांग्रेस, व्यक्तियों और संस्थाओं को उनकी विशिष्ट उपलब्धियों और योगदानों के लिए यह पदक देती है. यह कांग्रेस की ओर से दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है. मार्च 1776 में पहला कॉन्ग्रेसनल गोल्ड मैडल, जॉर्ज वॉशिंगटन को दिया गया था.

नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म "दी सिक्स ट्रिपल एट" का एक दृश्य
साल 2022 में अमेरिकी कांग्रेस ने 688वीं यूनिट को मैडल देने का प्रस्ताव 422-0 वोटों से पास कियातस्वीर: Bob Mahoney/Netflix/Courtesy Everett Collection/picture alliance

क्या था 'सिक्स ट्रिपल एट'

688वीं सेंट्रल पोस्टल डायरेक्टरी बटालियन, जिसे संक्षेप में 'सिक्स ट्रिपल एट' कहते हैं, अमेरिकी सेना का हिस्सा थी. इसका गठन 1944 में किया गया था. इसमें सेना की अलग-अलग कंपनियों से ली गईं 850 ब्लैक महिलाएं थीं.

688 ने जो कारनामा कर दिखाया, उसकी अहमियत के दो प्रमुख संदर्भ हैं: सामाजिक और लैंगिक. अमेरिका में 21 साल और इससे ज्यादा उम्र के श्वेत पुरुषों को 1776 में मतदान का अधिकार दिया गया. साल 1920 में श्वेत महिलाओं को भी यह अधिकार मिला.

लेकिन नस्ली भेदभाव के कारण अमेरिकी प्रांत लंबे समय तक ब्लैक आबादी को इस बुनियादी नागरिक अधिकार से वंचित रखते रहे. लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार 1965 में 'वोटिंग राइट्स एक्ट' के कानून बनने के बाद नस्ली और स्वजातीय अल्पसंख्यकों, जैसे कि ब्लैक्स की राजनीतिक भागीदारी का रास्ता साफ हुआ.

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यानी, श्वेत आबादी में भी महिलाएं वंचित थीं. पुरुषों को दिए गए अधिकारों को उनतक पहुंचने में लंबा समय लगा. लेकिन ब्लैक महिलाएं, श्वेत महिलाओं से भी ज्यादा वंचित समूह थीं. यानी, सामाजिक और लैंगिक दोनों आधारों पर वो और भी ज्यादा हाशिये पर खड़ी रखी गई थीं.

688 यूनिट की ब्लैक महिलाओं का आधे से ज्यादा संघर्ष इसी नस्ली भेदभाव की पृष्ठभूमि का नतीजा था. ऊपर से, उन्हें उन लैंगिक पूर्वाग्रहों का भी सामना करना पड़ा जो महिलाओं को कमजोर और कमतर मानता था.

नेटफ्लिस की फिल्म "दी सिक्स ट्रिपल एट" का एक दृश्य
नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म "दी सिक्स ट्रिपल एट" में मेजर चैरिटी एडम्स का किरदार कैरी वॉशिंगटन ने निभाया हैतस्वीर: Bob Mahoney/Netflix/Courtesy Everett Collection/picture alliance

किन परिस्थितियों में 688 को मिला मौका

युद्ध के मैदान पर गए सैनिक अपने परिवार, दोस्तों, प्रेमिकाओं को चिट्ठी भेजा करते थे. चिट्ठियों का आना-जाना उनका और उनके अपनों का हौसला बढ़ाता था. उन्हें इत्मीनान देता था. सिर्फ सैनिक ही नहीं, सर्विस के बाकी लोगों के लिए भी डाक सेवा बहुत अहम थी.

लेकिन प्रशिक्षित डाक कर्मियों की कमी और तकनीकी दिक्कतों के कारण पोस्टल सेवा प्रभावित होने लगी. चिट्ठियों की आवाजाही रुक गई और डिलिवरी का इंतजार करती पोस्ट्स का अंबार लगने लगा. हालत ये थी कि साल 1945 तक 330 करोड़ से ज्यादा चिट्टियों का ढेर लग गया.

नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म "दी सिक्स ट्रिपल एट" का एक दृश्य
688वीं यूनिट को 1945 में यूरोप भेजा गया. तब अफ्रीकी-अमेरिकी संगठन 'विमिन्स आर्मी कोर'में ब्लैक महिलाओं को भी शामिल करने का दबाव डाल रहे थेतस्वीर: Bob Mahoney/Netflix/Courtesy Everett Collection/picture alliance

एक तरफ जहां ये संकट था, उसी समय आर्मी की एक अफसर चैरिटी एडम्स जोर लगा रही थीं कि उन्हें और उनकी यूनिट को युद्ध में कोई ठोस काम दिया जाए. एडम्स, ब्लैक महिला थीं. 1942 में उन्होंने 'विमिन्स आर्मी ऑक्जीलियरी कोर' (डब्ल्यूएएसी) जॉइन की और इसी साल वो पहली महिला ब्लैक अधिकारी बनीं, जिन्हें डब्ल्यूएएसी में कमीशन किया गया. वो अमेरिकी सेना की पहली ब्लैक महिला सैन्य अधिकारी बनीं. वो सैन्य प्रशिक्षण केंद्र ब्लैक महिलाओं को ट्रेनिंग देने लगीं.

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1943 में यही डब्ल्यूएएसी, विमिन्स आर्मी कोर बन गया और एडम्स मेजर बन गईं. वो युद्ध में खुद की और अपनी यूनिट की बाकी ब्लैक महिलाओं की काबिलियत साबित करना चाहती थीं, लेकिन अभी सेना में उनके लिए मौके कम थे. प्रशिक्षित होने के बावजूद उन्हें तैनात करने में हिचक दिखाई जाती थी. दूसरे विश्व युद्ध में विमिन्स आर्मी कोर में लगभग 140,000 महिलाएं थीं. इनमें ब्लैक की संख्या करीब 6,500 ही थी.

नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म "दी सिक्स ट्रिपल एट" का एक दृश्य
688वीं यूनिट ने लोकेटर कार्ड का एक सिस्टम बनाया. इसमें सर्विस मेंबर के नाम और यूनिट की संख्या मिलाकर यह सुनिश्चित किया गया कि डाक सही जगह पहुंचेतस्वीर: Bob Mahoney/Netflix/Courtesy Everett Collection/picture alliance

688 को क्या मिशन मिला

आखिरकार एडम्स के नेतृत्व में 688 को एक पहाड़ जैसी जिम्मेदारी मिली. उन्हें इंग्लैंड जाकर डिलिवर ना हो पाई चिट्ठियों और पार्सलों को छांटकर, डाक आपूर्ति दुरुस्त करनी थी. यूएस आर्मी की वेबसाइट के मुताबिक, यूनिट ने खुद को तीन शिफ्ट में बांटकर चौबीसों घंटे काम किया. इस काम के बीच यूनिट का खाना बनाना, सफाई करना ये चीजें भी उन्हें खुद ही करनी पड़ीं.

काम में कई तकनीकी पेंच भी थे. मसलन, सैनिकों की पोस्टिंग बदलती रहती थी. चिट्ठियों को नई पोस्टिंग के हिसाब से सही जगह भेजना. फिर, कई चिट्ठियों पर पूरा पता भी नहीं लिखा होता था. कई पर सैनिकों के आधिकारिक नाम नहीं, निकनेम या पुकारे जाने वाले नाम लिखे होते थे.

नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म "दी सिक्स ट्रिपल एट" में कैरी वॉशिंगटन ने चैरिटी एडम्स का किरदार निभाया है
चैरिटी एडम्स, अमेरिकी सेना में पहली महिला ब्लैक सैन्य अधिकारी थीं. तस्वीर: Bob Mahoney/Netflix/Courtesy Everett Collection/picture alliance

यूनिट ने अपनी सूझबूझ से इन दिक्कतों को सुलझाया. उन्होंने बहुत मुश्किल स्थितियों में, बस तीन महीने के भीतर यह असंभव सा लगने वाला काम कर दिखाया. अमेरिकी सैन्य इतिहासकारों के मुताबिक, इन महिलाओं ने बस तीन महीने के भीतर करीब पौने दो करोड़ मेल्स (चिट्ठियां, तस्वीरें, पार्सल वगैरह) प्रॉसेस किए.

एक और खास बात, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ये ब्लैक महिलाओं की अकेली आर्मी कोर यूनिट थी, जिसे विदेश में तैनात किया गया था. इंग्लैंड के बाद वो सीधे अमेरिका नहीं आईं. उन्हें पेरिस भेजा गया और वहां भी उन्होंने बड़ा बैकलॉग साफ किया.

688 के योगदान को बहुत देर से मिली पहचान

इस उपलब्धि से उन्होंने जाने कितनी महिलाओं के लिए रास्ते खोले, उनकी प्रेरणा बनीं. हालांकि, उनका योगदान लंबे समय तक उपेक्षित रहा. बीते कुछ दशकों में इस यूनिट की उपलब्धि लोकप्रिय होने लगी. उनपर प्रदर्शनियां आयोजित की गईं. डॉक्यूमेंट्री बनीं. कई किताबें भी लिखी गईं. साल 1989 में खुद चैरिटी एडम्स की लिखी किताब 'वन विमिन्स आर्मी' प्रकाशित हुई.

688 के योगदान की ओर ध्यान खींचने में मिशेल ओबामा की भी भूमिका रही है. मार्च 2009 में तत्कालीन 'फर्स्ट लेडी' मिशेल ओबामा ने अमेरिका मेमोरियल सेंटर में एक भाषण दिया. अमेरिकी सैन्य सेवा में महिलाओं के योगदान पर बात करते हुए उन्होंने 688 का जिक्र किया. वह आगे भी इस यूनिट को सम्मान दिलाने के अभियान का हिस्सा रहीं.

ट्रोलिंग से लड़ाई में अकेली क्यों पड़ीं महिलाएं

साल 2018 में 688वीं बटालियन के सम्मान में कैनसस में एक स्मारक बनाया गया. उनके योगदान को और ज्यादा सम्मान दिलाने के लंबे अभियान के बाद आखिरकार मई 2022 में इस फैसले पर मुहर लगी कि यूनिट को कंग्रेशनल गोल्ड मैडल दिया जाएगा.

मगर ये दिन देखने के लिए यूनिट के लोग जिंदा नहीं हैं. अमेरिका के नेशनल वर्ल्ड वॉर टू म्यूजियम में वरिष्ठ क्यूरेटर किम गाइज ने समाचार एजेंसी एपी को बताया, "यूनिट में शामिल 855 महिलाओं में से केवल दो ही जिंदा हैं. ये दिखाता है कि इस पहचान मिलने में कितना लंबा समय लग गया."