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दिल्ली विधान सभा में ‘फांसी घर’ बना ‘टिफिन रूम’

समीरात्मज मिश्र
१० अगस्त २०२५

दिल्ली विधानसभा परिसर में मौजूद कथित फांसी घर को दिल्ली सरकार ने टिफिन घर में बदल दिया है. पिछली सरकार ने इसे 'फांसी घर' बनाया था. दिल्ली की वर्तमान बीजेपी सरकार, आम आदमी पार्टी की सरकार के कई फैसलों को बदल रही है.

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 दिल्ली विधानसभा में मौजूद सदस्य
दिल्ली विधानसभा के परिसर में मौजूद फांसी घर को लेकर विधानसभा में तीन दिन बहस चली हैतस्वीर: DelhiAssembly X/ANI Photo

दिल्ली विधानसभा परिसर में बने कथित फांसी घर को लेकर विधानसभा के मॉनसून सत्र में दो दिन तक गर्मागर्म बहस चली, आरोप-प्रत्यारोप के दौर चले, जिसके बाद स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने फैसला किया कि इस मामले को जांच के लिए सदन की विशेषाधिकार समिति को सौप दिया जाए. फांसी घर का नाम भी शुक्रवार को बदलकर टिफिन रूम रख दिया गया.

विधानसभा परिसर में 9 अगस्त 2022 को कथित फांसी घर का उद्घाटन हुआ था जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, स्पीकर रामनिवास गोयल, डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और डिप्टी स्पीकर राखी बिड़ला मौजूद थे. इन सभी लोगों को विधान सभा की विशेषाधिकार समिति नोटिस भेजकर पूछताछ करेगी.

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'फांसी घर' बनेगा 'टिफिन घर'

स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने ये बताया कि सदन की राय और सदस्यों के मंतव्य के आधार पर इस हेरिटेज बिल्डिंग को फिर से उसके मूल स्वरूप में तब्दील करने का फैसला लिया गया है. उन्होंने बताया कि कथित फांसी घर बताए जा रहे दोनों ‘टिफिन रूम' को उनके मूलस्वरूप में लाने के अलावा उनमें विधानसभा का वर्ष 1912 का नक्शा भी लगाया जाएगा, ताकि भविष्य में कभी भी इस भवन की गरिमा को ठेस ना पहुंचाई जा सके.

स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने यह भी आदेश दिया कि 9 अगस्त 2022 को भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ के दिन इस फर्जी फांसीघर के उद्घाटन का जो शिलापट्ट लगाया गया था, उसे भी हटा दिया जाएगा. इस शिलापट्ट पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का नाम लिखा है.

दरअसल, दिल्ली विधानसभा में तीन तक इस बात पर चर्चा होती रही कि विधानसभा परिसर में जिस फांसी घर का उद्घाटन हुआ था वो फांसी घर था या फिर टिफिन रूम. स्पीकर विजेंद्र गुप्ता का दावा है कि उन्होंने नेशनल आर्काइव्स से विधानसभा का साल 1911 का नक्शा मंगवाया था जिसमें साफतौर पर दर्ज था कि विधानसभा में फांसी घर नहीं बल्कि इमारत के जिस हिस्से का जीर्णोद्धार करते हुए फांसी घर के तौर पर उद्घाटन किया गया था वो वास्तव में टिफिन रूम और लिफ्ट थी.

दिल्ली विधान सभा में मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता
दिल्ली की मुख्यमंत्री पिछली सरकार के कई फैसलों को बदल चुकी हैंतस्वीर: DelhiAssembly X/ANI Photo

वहीं इस मामले में आम आदमी पार्टी के विधायक संजीव झा का कहना है कि फांसी घर के तमाम सबूत मिले हैं लेकिन बीजेपी सरकार, पूर्ववर्ती आम आदमी पार्टी सरकार के हर फैसले को पलटने में लगी है. डीडब्ल्यू से बातचीत में संजीव झा कहते हैं, "जानबूझकर इसे राजनीतिक मसला बनाने की कोशिश हो रही है और सदन का समय बर्बाद किया जा रहा है. दूसरी बात ये कि ये फैसला पूर्व स्पीकर राम निवास गोयल का था, ना कि पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का. लेकिन बीजेपी जानबूझकर इस मामले में भी अरविंद केजरीवाल को निशाना बना रही है."

कहां से आया 'फांसी घर'

दरअसल, दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के समय साल 2021 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने दावा किया था कि विधानसभा में एक ऐसा घर मिला है जहां स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को फांसी दी जाती थी. उन्होंने एक घर में रस्सी से लटकाने की व्यवस्था होने की बात भी कही थी. यह भी दावा किया गया था कि विधानसभा से लाल किले तक एक सुरंग जाती थी जो फिलहाल बंद है. जबकि दिल्ली में मौजूदा बीजेपी सरकार का कहना है कि आम आदमी पार्टी सरकार का यह दावा पूरी तरह गलत था.

दिल्ली विधानसभा की इमारत उत्तरी दिल्ली में रिज यानी पहाड़ी इलाके के पास है. इसका निर्माण साल 1912 में तब हुआ था जब दिल्ली को कलकत्ता की जगह ब्रिटिश भारत की राजधानी बनाया गया था. यह इमारत महज आठ महीने के भीतर बनकर तैयार हुई और 1912 में इसका इस्तेमाल इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के तौर पर हुआ. 1919 से यह इमारत केंद्रीय विधान सभा के रूप में इस्तेमाल होने लगी. इस इमारत का डिजाइन ब्रिटिश आर्किटेक्ट ई मॉन्टेग्यू थॉमस ने तैयार किया था और इसका निर्माण फकीर चंद की देख-रेख में हुआ था.

दिल्ली के इतिहास की जानकारी रखने वाले इतिहासकार और लेखक सोहेल हाशमी कहते हैं, "इस इमारत में फांसी घर होने के कोई साक्ष्य नहीं हैं और ना ही फांसी घर होने की बात तर्कसंगत दिखती है. इस इमारत को संसद की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा यानी विधान परिषद की बैठकें होती थीं. बैठकें तब तक होती रहीं जब तक कि 1927 में संसद भवन का निर्माण नहीं हो गया. अब जिस जगह पर विधान परिषद की बैठकें हो रही हों तो उस परिसर में नियमित रूप से लोगों को मौत की सजा दी जाती हो और फिर वहीं फांसी पर लटका दिया जाता हो, यह समझ से परे है.” डीडब्ल्यू से बातचीत में सोहेल हाशमी ने साफतौर पर कहा कि दिल्ली विधानसभा में फांसी घर की कहानी कपोल-कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं है.

दिल्ली के इतिहास पर कई किताबें लिख चुकीं मशहूर इतिहासकार राणा सफवी ने तो साल 2021 में भी तत्कालीन स्पीकर के इस दावे पर सवाल उठाए थे. वो कहती हैं, "दिल्ली विधानसभा भवन का निर्माण साल 1912 में हुआ था. यह असंभव सा लगता है कि इस इमारत के भीतर कोई सुरंग रही होगी जो इसे लाल किले से जोड़ती होगी. दोनों के निर्माण काल में सदियों का अंतर रहा है. यहां जो सुरंग मिली भी है, वह बहुत छोटी है और हो सकता है कि उसका इस्तेमाल किसी अन्य रूप में होता रहा हो. लाल किले से इसे जोड़ना तो कहीं से भी तर्कसंगत नहीं लगता और ना ही इसके कोई प्रमाण हैं.”

बताया जा रहा है कि ये वो जगह है जहां अंग्रेज अफसरों के लिए खाना बनाया जाता था जिसे नीचे पहुंचाने के लिए एक रस्सी और तख्ते से लिफ्ट जैसी व्यवस्था की गई थी.

आम आदमी पार्टी के फैसले बदलती बीजेपी

फरवरी में दिल्ली में 27 साल बाद बीजेपी की सरकार बनने के बाद से अब तक, नई सरकार पिछली आम आदमी पार्टी की सरकार के कई फैसलों को पलट चुकी है.सरकार बनते ही पूर्ववर्ती आम आदमी पार्टी सरकार की ओर से की गई कई नियुक्तियां रद्द कर दी गईं जिनमें दिल्ली सरकार की समितियों और कई बोर्डों में मनोनीत सदस्यों और पदाधिकारियों के नाम शामिल हैं. इसके पीछ तर्क यह था कि इन बोर्ड, समितियों और संवैधानिक संस्थाओं में आप सरकार ने अपने नेताओं और पदाधिकारियों को नियुक्त किया था.

मुख्यमंत्री बनते ही रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने कई अदालती मामले भी वापस लेने शुरू कर दिए जिनमें उपराज्यपाल के खिलाफ चल रहे मामले भी शामिल हैं.

दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार की बहुप्रचारित योजना ‘मोहल्ला क्लीनिक' पर भी बीजेपी सरकार ने कैंची चला दी और सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही 250 मोहल्ला क्लीनिकों को बंद करने के आदेश जारी कर दिए.

दिल्ली विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही आप सरकार ने एमएलए लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड की राशि को दस करोड़ बढ़ाकर 15 करोड़ रुपये सालाना किया था. लेकिन बीजेपी सरकार ने इस फैसले को पलटते हुए इस फंड को पांच करोड़ रुपये कर दिया. यह फैसला दिल्ली में दो मई को हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया था. यह फंड विधायकों को अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए दी जाने वाली रकम है जिसे विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास निधि भी कहा जाता है.

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को ईंधन नहीं देने का फैसला भी मौजूदा सरकार ने पलट दिया. आम आदमी पार्टी ने सरकार के इस कदम पर सवाल उठाते हुए मांग की कि राज्य सरकार इस पर अध्यादेश लाकर इस फैसले को वापस ले.