यूक्रेन में शांति सेना भेजने पर जर्मनी में बहस
२३ अगस्त २०२५यूरोप के दिग्गज नेता यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ वॉशिंगटन जाकर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से मुलाकात कर आए हैं. युद्ध और यूक्रेन की सुरक्षा को लेकर यूरोप के नेताओं ने ट्रंप को साफ साफ बता दिया कि वे वॉशिंगटन से क्या चाहते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ने मिले जुले अंदाज में यूक्रेन की सुरक्षा की गारंटी तो दी, लेकिन तमाम ख्वाहिशों के साथ. ट्रंप ने कहा कि वे यूक्रेन की मदद करेंगे लेकिन असली जिम्मेदारी यूरोप को उठानी होगी. तो क्या यूरोप, युद्ध थमने के बाद यूक्रेन को सुरक्षा की गारंटी देने के लिए अपनी शांति सेना वहां तैनात करेगा.
यूरोपीय सेना की भूमिका का सवाल इस वक्त जर्मनी में भी राजनीतिक बहस के केंद्र में है. जर्मन चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स जोर दे रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय विवादों में जर्मनी को एक मजबूत आवाज बनना चाहिए. लेकिन वह यह भी कहते हैं कि जर्मनी को पहले यूक्रेन की सेना को इतना ताकतवर बनाना होगा कि वह शांति समझौते के बाद भी अपने देश की रक्षा कर सके.
मैर्त्स का बयान, अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वेंस से मिलता जुलता है. हाल ही में अमेरिकी न्यूज चैनल फॉक्स न्यूज से बात करते हुए वेंस ने कहा कि शांति की गारंटी में यूरोप को "शेर की तरह हिस्सेदारी" निभानी होगी.
वहीं रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव साफ कर चुके हैं कि यूक्रेन में यूरोपीय सेनाओं की तैनाती, "पूरी तरह अस्वीकार्य है."
यूक्रेन में जर्मन सेना भेजने के लिए बहुत कम समर्थन
जर्मनी में राजनीतिक माहौल देखकर यह कहा जा सकता है कि जर्मन सेना को यूक्रेन भेजने का फैसला करना चांसलर फ्रीडरिष मैर्त्स के लिए आसान तो बिल्कुल नहीं होगा. मैर्त्स की गठबंधन सरकार में शामिल पार्टी, एसपीडी ने ऐसे किसी कदम के खिलाफ चेतावनी दी है. जाट आइंस टेलिविजन से बात करते हुए एसपीडी के नेता लार्स क्लिंगबाइल ने कहा कि अच्छा तो यही होगा कि इस पर गंभीरता से बात हो.
क्लिंगबाइल के मुताबिक, सेना भेजने से यूक्रेन को सुरक्षा की गारंटी तो मिलेगी लेकिन, "सबसे पहले, इसके लिए एक मजबूत यूक्रेनी सेना की जरूरत है. उसके बाद हम देखेंगे कि और क्या किया जा सकता है. लेकिन क्या इसमे जर्मन सैनिक शामिल होंगे या नहीं, यह अभी पूछा जाने वाला सवाल नहीं है."
जर्मन मतदाता भी इस रुख से सहमत दिखते हैं. जर्मन इंटरनेट पोर्टल वेब डॉट डीई के लिए किए गए एक हालिया सर्वे में 51 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि वे यूक्रेन के शांति मिशन में जर्मनी की हिस्सेदारी के खिलाफ हैं. सिर्फ 36 फीसदी लोगों ने ही कहा कि शांति सेना भेजना सही कदम होगा.
जर्मन विदेश मंत्री योहान वाडेफुल, चांसलर मैर्त्स की पार्टी सीडीयू के नेता हैं. वह भी सावधान रहने को कह रहे हैं. वाडेफुल के मुताबिक, लिथुएनिया में जर्मन सेना की एक ब्रिगेड की तैनाती ही बहुत बड़ा कदम है. ऐसे में यूक्रेन में तैनाती, बहुत बड़ी बात होगी.
डीडब्ल्यू के साथ एक इंटरव्यू में वाडेफुल ने कहा कि उन्हें शक है कि यूक्रेन युद्ध को शांत करने के लिए शायद ही कोई बातचीत होगी, "हर कोई इंतजार कर रहा है कि व्लादिमीर पुतिन गंभीर होंगे और इस युद्ध को खत्म करने के लिए बातचीत करेंगे. दुर्भाग्य से लड़ाई के मोर्चे पर हालात बिल्कुल अलग दिख रहे हैं."
जर्मनी की विपक्षी पार्टियां क्या कह रही हैं?
ग्रीन पार्टी ने 18 अगस्त को वॉशिंगटन में ट्रंप और यूरोपीय नेताओं की मुलाकात के नतीजों पर ही संदेह जताया है. पार्टी के विदेश नीति विशेषज्ञ ओमिद नौरीपौर ने कुछ टीवी चैनलों को दिए इंटरव्यू में कहा, "कोई ठोस प्रगति तो हुई ही नहीं." उन्होंने यूरोपीय नेताओं से अपील करते हुए कहा कि यूरोप को अपनी प्रोटेक्शन फोर्स बनानी चाहिए ताकि वे अमेरिका को शामिल किए बिना यूक्रेन को सुरक्षा की गारंटी दे सके.
लेफ्ट पार्टी के नेता यान फान आकेन का कहना है कि यूक्रेन में 30,000 से 40,000 सैनिकों वाली यूएन शांति सेना तैनात की जानी चाहिए. फान आकेन के मुताबिक इस सेना में चीनी सैनिकों को भी शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि "रूसी सैनिक चीनी फौजियों पर गोली नहीं चलाएंगे." उन्होंने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि जर्मन सैनिकों का सीधा दखल, दूसरे विश्वयुद्ध जैसे हालात भड़का सकता है. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन सेना ने रूस पर हमला किया था.
दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी की नेता एलिस वाइडेल जर्मनी को सैन्य दखल से दूर रहने की सलाह दी है. वाइडेल ने कहा, "जर्मनी को रूस के साथ सुलह की जरूरत है, टकराव की नहीं."
यूरोप के नेताओं और पश्चिम के कई विशेषज्ञों को भी लग रहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की फिलहाल युद्ध खत्म करने की कोई इच्छा नहीं है. पिछले हफ्ते अलास्का में ट्रंप से मुलाकात के दौरान पुतिन ने कहा कि वे संघर्ष विराम के बजाए शांति समझौते की ओर देख रहे हैं. पुतिन ने शर्त रखी है कि ऐसे समझौते के लिए कीव को पूर्वी यूक्रेन का डोनबास इलाका रूस को सौंपना होगा. तमाम संवैधानिक और राजनीतिक किंतु परंतु के साथ अगर यूक्रेन यह शर्त मान भी ले, तो भी भविष्य में उसकी बाकी जमीन की सुरक्षा की 100 फीसदी गारंटी अब भी कोई नहीं दे रहा है.