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एक उल्लू, जो अरब-इस्राएल को साथ ले आया

२९ जनवरी २०२५

बार्न आउल एक अनोखा शिकारी है. सफेद पंखों वाले इस उल्लू के कारण अरब और इस्राएल के वैज्ञानिक सहयोग की मेज पर साथ आ गए.

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DW Sendung Eco Africa |
तस्वीर: AFP

यह एक ऐसा पक्षी है जो युद्धग्रस्त मध्य पूर्व में सीमाओं और दीवारों को पार कर जाता है. इसने वह कर दिखाया है जिसे करने में दुनिया की बड़ी-बड़ी ताकतों का जोर काम नहीं आ रहा है. बार्न आउल प्रजाति के इस उल्लू ने दशकों से विवाद में उलझे इस्राएल और अरब देशों के वैज्ञानिकों को एक साथ लाने का अनूठा काम किया है.

पिछले हफ्ते ग्रीस में 12 देशों के विशेषज्ञ बार्न आउल पक्षी के संरक्षण पर चर्चा करने के लिए जुटे. यह प्रयास दशकों पहले इस्राएल और जॉर्डन के वैज्ञानिकों की साझेदारी के रूप में शुरू हुआ था. चौकोर बक्से के आकार और चंद्रमा जैसी चमकती आंखों वाला यह उल्लू खेतों को चूहों और अन्य कीटों से बचाता है.

तेल अवीव विश्वविद्यालय के प्राणी विज्ञान स्कूल के प्रोफेसर एमेरिटस यॉसी लेशेम कहते हैं, "एक जोड़ा बार्न आउल हर साल 2,000 से 6,000 चूहे खा सकता है. इससे किसानों को कीटनाशकों का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ती."

आधुनिक निर्माण तकनीकों के कारण इनके घोंसले बनाने की जगह खत्म हो रही हैं और इनकी संख्या घट रही है. इसलिए वैज्ञानिकों में इस उल्लू को बचाने को लेकर चिंता है.

बार्न आउल का संरक्षण

संरक्षण योजनाओं के तहत इनके लिए कृत्रिम घोंसले बनाए जा रहे हैं. आमतौर पर लकड़ी के बने इन घोंसलों को ऐसे इलाकों में लगाया जाता है, जहां यह सुरक्षित रह सकें. इसके अलावा, कीटनाशकों और चूहा मारने वाली दवाओं का उपयोग कम करने की पहल भी हो रही है ताकि ये शिकारी पक्षी जहर का शिकार ना बनें.

लेशेम ने 1980 के दशक में एक फार्म में इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. वह बताते हैं, "शुरुआत में हमने एक कीबुत्ज (सामूहिक फार्म) में 14 घोंसले लगाए. फिर यह एक राष्ट्रीय परियोजना बन गई और अब इस्राएल में 5,000 घोंसले लगे हैं. इसके अलावा, जॉर्डन, फलीस्तीन, साइप्रस और मोरक्को भी इस पहल में शामिल हुए हैं."

साल 2002 में, लेशेम ने जॉर्डन के सेवानिवृत्त जनरल मंसूर अबू राशिद के साथ मिलकर जॉर्डन में भी यह परियोजना शुरू की. अबू राशिद ने इन पक्षियों की निगरानी के लिए रेडियो ट्रांसमीटरों का इस्तेमाल शुरू किया. इससे इनकी आवाजाही पर नजर रखी जा सकी.

लेशेम बताते हैं, "बार्न आउल सीमाओं को नहीं मानते. ये जॉर्डन, फलीस्तीन और इस्राएल के बीच उड़ते रहते हैं. ये सहयोग का प्रतीक हैं."

युद्ध से नुकसान

यह इलाका हर तरह के पक्षियों के संरक्षण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रवासी पक्षियों के रास्ते में आता है. अरबी और इस्राएली वैज्ञानिकों ने तनावपूर्ण दौर में भी इस साझेदारी को बनाए रखा, चाहे वह गजा युद्ध हो या अन्य संघर्ष. जब हालात बिगड़ते हैं, तो वे ऑनलाइन मीटिंग या अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में मिलकर चर्चा करते हैं.

सम्मेलन आयोजकों के अनुसार, युद्ध के चलते सबसे बड़ा नुकसान लेबनान में हुआ है, जहां ढेर सारी जमीन तबाह हो गई. वहां बने घोंसले और घोंसले के बक्से भी आग में जल गए, खासकर इस्राएल की सीमा के पास.

लेशेम कहते हैं, "हम कभी रुकते नहीं हैं. हम बस आगे बढ़ते रहते हैं. यही कारण है कि यह परियोजना सफल रही है."

इस इलाके में उल्लुओं से जुड़े कई अंधविश्वास भी हैं, जिन्हें तोड़ना वैज्ञानिकों के लिए चुनौती भरा था. यहां लोग उल्लू को अशुभ मानते हैं. एक धारणा यह है कि ये अक्सर रात में घरों की रोशनी की ओर आकर्षित होते हैं, जिससे कोई बीमार व्यक्ति हो सकता है. जॉर्डन में ग्रामीण इलाकों में इस अंधविश्वास को दूर करने के लिए इमामों की मदद ली गई.

अबू राशिद बताते हैं, "हमने स्कूलों और विश्वविद्यालयों में जागरूकता अभियान चलाए. महिलाओं की संस्थाओं को भी जोड़ा, क्योंकि वे अपने परिवार और समुदाय को प्रभावित कर सकती हैं. बच्चों को बार्न आउल के चित्र रंगने को दिए गए ताकि वे इस पक्षी को समझें और उससे डरें नहीं."

लेशेम और अबू राशिद मानते हैं कि विज्ञान दुश्मनों को भी एक साथ ला सकता है. सेना से रिटायर होने के बाद अबू राशिद शांति प्रयासों में जुट गए थे. वह 1990 के दशक में जॉर्डन-इस्राएल शांति वार्ता के वरिष्ठ वार्ताकार थे.

वह बताते हैं, "सेना छोड़ने के बाद मैंने अपनी जिंदगी बदल दी. अब भी हम पूरे मध्य पूर्व के लोगों को करीब लाने के लिए काम कर रहे हैं. मुझे उम्मीद है कि हम इसमें सफल होंगे."

उम्र के सातवें दशक को पूरा करने वाले अबू राशिद और लेशेम इस परियोजना को दुनिया के नेताओं तक पहुंचा चुके हैं. इनमें दिवंगत अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर, जर्मनी की पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल और पोप फ्रांसिस भी शामिल हैं.

और देशों को साथ लाने की कोशिश

स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक आलेक्सांद्रे रूलिन बताते हैं कि यूरोप में भी बार्न आउल के संरक्षण की पहल तेज हो रही है. वह कहते हैं, "यह पक्षी पूरी दुनिया में पाया जाता है. जो मॉडल हमने अपनाया है, उसे अमेरिका और एशिया में भी अपनाया जा सकता है. यह एक निशाचर पक्षी है, जो रहस्यों और अंधविश्वासों से घिरा है. लेकिन बेहद दिलचस्प भी है. यह उन गिने-चुने निशाचर शिकारी पक्षियों में से है जो सफेद रंग के होते हैं. शोध बताते हैं कि इसके सफेद पंख चंद्रमा की रोशनी में चमकते हैं और इसके शिकार को चौंका देते हैं."

बार्न आउल अपनी गर्दन को 270 डिग्री तक घुमा सकता है, जबकि इंसान सिर्फ 170 डिग्री तक देख सकता है. इसकी आवाज भी डरावनी होती है, जो अन्य उल्लुओं की मधुर ध्वनि से अलग होती है.

मछलियों की 'बारिश'

ग्रीस में हुए इस सम्मेलन में 2018 में सिर्फ 4 देशों ने हिस्सा लिया था, लेकिन इस बार इसमें जर्मनी, जॉर्जिया और यूक्रेन भी शामिल हुए. आयोजकों की योजना अगले साल स्विट्जरलैंड के जिनेवा में होने वाले सम्मेलन में और अधिक देशों को जोड़ने की है.

सम्मेलन के दौरान प्रतिभागियों ने ग्रीस के ग्रामीण इलाकों का दौरा किया और कई विषयों पर विचार साझा किए, जिनमें चिड़ियाघर में पले उल्लुओं को जंगल में छोड़ने की तकनीक भी शामिल थी.

ग्रीस के पर्यावरण समूह टीवाईटीओ के प्रमुख और सम्मेलन के आयोजक वासिलियोस बोंत्सोरलोस कहते हैं, "खेती से जुड़े लोग अब प्राकृतिक समाधानों को अपनाने के लिए तैयार हो रहे हैं. यह हमारे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है."

वह आगे कहते हैं, "कुछ साल पहले मैं इस्राएल, जॉर्डन और फलीस्तीन गया था. मैंने वहां इन तीनों देशों के लोगों के साथ एक ही मेज पर बैठकर बातचीत की थी. ग्रीस में ऐसे सम्मेलन आयोजित करना मुझे उम्मीद से भर देता है. जब दुनिया में अधिकतर नकारात्मक खबरें सुनने को मिलती हैं, तब यह दिखाता है कि मुश्किल हालात में भी सहयोग संभव है. यह बहुत प्रेरणादायक है."

वीके/एनआर (एपी)