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कानून और न्यायभारत

वक्फ विवाद: क्या राज्य केंद्रीय कानून से इनकार कर सकते हैं?

१५ अप्रैल २०२५

कुछ राज्य सरकारों ने कहा है कि वो नया वक्फ कानून लागू नहीं करेंगी. लेकिन क्या संविधान राज्यों को यह अधिकार देता है कि वो संसद द्वारा पारित कानूनों को लागू करने से मना कर सकें?

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मुंबई में वक्फ बिल के खिलाफ नारे लगाते लोग
वक्फ कानून के खिलाफ कई राज्यों में प्रदर्शन हो रहे हैंतस्वीर: Rajanish Kakade/AP Photo/picture alliance

पश्चिम बंगाल में नए वक्फ कानून के खिलाफ हो रही हिंसा के बीच राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में कहा कि इस कानून को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं किया जाएगा. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी और कर्नाटक के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमीर अहमद खान ने भी ऐसा ही बयान दिया है.

इन बयानों के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या राज्य सरकारों के पास एक ऐसे कानून को लागू ना करने के अधिकार हैं जिसे संसद ने पारित किया हो और जिस पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिए हों.

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के खिलाफ सड़क पर निकाली गई एक रैली
पश्चिम बंगाल में वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई हैतस्वीर: Shankar Das/DW

संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिए जाने के बाद छह अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 पर हस्ताक्षर कर दिए थे. आठ अप्रैल को केंद्र सरकार द्वारा राजपत्र जारी कर दिए जाने के साथ ही कानून लागू हो गया था.

अगर कोई राज्य ना माने तो?

इस तरह के मामले पहले भी सामने आए हैं. इससे पहले नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 और 2020 में लाए गए तीन नए कृषि कानूनों के साथ भी ऐसा ही हुआ था.

देशभर में उन कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे, विपक्षी पार्टियां भी उनका विरोध कर रही  थीं और कई राज्य सरकारों ने उन्हें लागू करने से इनकार कर दिया था. कृषि कानूनों को तो बाद में केंद्र सरकार ने निरस्त ही कर दिया था.

लेकिन संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून को लागू करने से मना करने की इजाजत संविधान राज्यों को नहीं देता है. भारत में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक संघीय व्यवस्था है लेकिन संविधान की धारा 256 साफ कहती है कि संसद द्वारा बनाए गए कानून का हर राज्य में पालन होना चाहिए.

यहां तक कि अगर किसी केंद्रीय कानून और उसी विषय पर किसी राज्य के अपने कानून के बीच टकराव पैदा होता है तो राज्य को केंद्रीय कानून को मानना पड़ेगा. धारा 257 (1) में भी लिखा है कि हर राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का इस्तेमाल इस तरह करेगा जिससे केंद्र की कार्यपालिका शक्ति को क्षति ना पहुंचे.

भारत में पुरानी मस्जिदों को लेकर तनाव

इसके बावजूद अगर कोई राज्य किसी केंद्रीय कानून को लागू करने से इनकार करता है तो संविधान की धारा 355 के तहत केंद्र सरकार उस राज्य को ऐसा ना करने के लिए कह सकती है और चेतावनी दे सकती है. इसके बाद भी अगर राज्य सरकार नहीं मानी तो केंद्र सरकार धारा 356 के तहत उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है.

राज्यों के पास क्या अधिकार हैं?

ऐसे हालात में राज्यों के पास सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का पूरा अधिकार है. धारा 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार और एक या एक से ज्यादा राज्य सरकारों के बीच मामलों पर सुनवाई कर सकता है.

लेकिन इसकी शर्त यह कि राज्य या राज्यों का विरोध राजनीतिक या वैचारिक आधार पर नहीं होना चाहिए और यह साबित होना चाहिए कि उनके किसी अधिकार का हनन हो रहा है.

इसके अलावा धारा 254(2) के तहत अगर समवर्ती सूची या कंकररेंट लिस्ट के तहत आने वाले किसी विषय पर बने किसी केंद्रीय कानून पर अगर किसी राज्य को आपत्ति है, तो वो इसे निरस्त करने के लिए अपना कानून बना सकता है. हालांकि यह कानून राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बिना लागू नहीं होगा.