कपियों के समाज में नर का दबदबा हो जरूरी नहीं
९ जुलाई २०२५वन्यजीवों में भी मादा और नर के बीच वर्चस्व के लिए संघर्ष है. अब तक यह आम धारणा रही है कि मानव के करीबी पूर्वज माने जाने वाले कपियों में हमेशा से मादाओं पर नर का प्रभुत्व रहा है. एक नई रिसर्च ने बताया है कि इस रिश्ते के कई आयाम थे और सच्चाई इससे कहीं ज्यादा जटिल है.
फ्रांस की मोंपेलिये यूनिवर्सिटी की प्राइमेटोलॉजिस्ट एलीज हुचार्ड का कहना है, "लंबे समय से इस मुद्दे पर हम सिर्फ दो नजरिए से ही सोचते रहे हैं. हम यही मानते रहे कि प्रभुत्व या तो नर का होगा या फिर मादा का. हाल ही में इस नजरिये को नई रिसर्चरों ने चुनौती दी है और ये दिखा रही हैं कि सच्चाई कहीं ज्यादा जटिल है." एलीज हुचार्ड पीएनएएस जर्नल में छपी रिसर्च रिपोर्ट की प्रमुख लेखक हैं.
इंसानों में ही नहीं जानवरों में भी नर से ज्यादा लंबा जीती है मादा
फ्रांस और जर्मनी के रिसर्चरों की टीम ने वैज्ञानिक दस्तावेजों का गहरा अध्ययन कर मादा और नर कपियों के बीच संपर्क और संबंध का अध्ययन किया है. इससे इनके बीच पदानुक्रमिक संबंधों की जानकारी निकल कर सामने आई है. इसमें आक्रामकता, धमकियों के साथ ही वर्चस्ववादी या दब्बूपन के रवैये के संकेत मिले हैं. साथ ही यह भी कि एक कपि कब अचानक से दूसरे का रास्ता छोड़ कर हट गया.
नर मादा की लड़ाई आम बात
पांच वर्षों से ज्यादा समय तक टीम ने कपियों की 253 आबादियों से आंकड़े जुटाए हैं. इनमें बंदर और लेम्यूर समेत 121 प्रजातियां शामिल हैं. रिसर्चरों ने देखा है कि विपरीत लिंग वाले सदस्यों के बीच लड़ाइयां जितनी पहले सोची गई थीं उसकी तुलना में कहीं ज्यादा आम हैं. औसत रूप से समूह के भीतर होने वाले संपर्कों में आधे से ज्यादा ऐसे थे जिनमें एक नर और एक मादा शामिल थे.
निश्चित रूप से नर मादाओं पर वर्चस्व दिखाते हैं और इनका पता इस बात से चलता है कि 90 फीसदी से ज्यादा ऐसी लड़ाइयों में नर की जीत हुई. हालांकि यह आंकड़ा सिर्फ 17 फीसदी आबादी के लिए ही सच है.
मादा चिंपैंजियो में दिखे औरतों जैसे मेनोपॉज के लक्षण
इन आबादियों में बबून और चिम्पैंजी शामिल थे जिन्हें इंसानों का करीबी रिश्तेदार माना जाता है. कपियों की 13 फीसदी आबादी में मादाओं को साफ तौर पर जीत हासिल हुई. इनमें कपियों की लेम्यूर और बोनोबो प्रजातियां शामिल हैं. इसका मतलब है कि कपियों की 70 फीसदी आबादी में मादा या नर कोई भी नेतृत्व करने वाला हो सकता है.
दमदार पुरुषों का वर्चस्व
जब नर कपियों के वर्चस्व की बात स्पष्ट तौर पर सामने आई तो आमतौर पर उसके पीछे प्रजातियों का शारीरिक रूप से बेहतर होना होना शामिल था. बड़ा शरीर या फिर दांत जैसे कारकों ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई. इसके साथ ही यह उन प्रजातियों में भी ज्यादा सामान्य बात थी जो जमीन पर रहते हैं. इनमें पेड़ पर रहने वाली प्रजातियों की तुलना में मादा दौड़ने और छिपने में कम सक्षम होती हैं.
इंसानों की तरह बहू चुनती है मादा बोनोबो
हालांकि, मादा प्रजनन के जरिए नियंत्रण जता कर समाज पर अपना वर्चस्व कायम करती हैं. उदारण के लिए मादा बबूनों के यौनांग उनके अंडोत्सर्ग (ओवुलेशन) के दौरान सूज जाते हैं. पुरुष ईर्ष्या की वजह से मासिक चक्र के इन दिनों में मादाओं पर पहरा देते हैं, ताकि उनका प्रतिद्वंद्वी उस दौर में उनकी मादा के साथ सहवास ना कर सके. हुचार्ड का कहना है, "नर यह नहीं जान सकते कि उनका कब अंडोत्सर्ग होगा. इसके नतीजे में मादा बबून जिसके साथ चाहें और जब चाहें बड़ी आसानी से सहवास कर सकती हैं."
मादा का वर्चस्व उस वक्त भी ज्यादा आम होता है जब मादाएं आपस में मुकाबला करती हैं, और जब नर बच्चों का ज्यादा ध्यान रखते हैं. इन प्रजातियों में मादाएं अकसर अकेली रहती हैं या फिर केवल नर-मादा के जोड़ों में. इसका मतलब है कि सिर्फ एक पार्टनर से संबंध रखना के दारोमदार भी महिलाओं के प्रभुत्व पर है.
घुमक्कड़ और खेतिहर समाज का फर्क
इन नतीजों को क्या हम कपियों से बाहर निकाल कर इंसानों की प्रजातियों के संदर्भ में देख सकते हैं? हुचार्ड का कहना है कि इंसान और कपियों के बीच में बहुत फर्क है. हालांकि संभवतया इंसान उस बीच वाले वर्ग में आएगा जिसमें हमेशा नर या मादा का प्रभुत्व नहीं होता.
हुचार्ड का कहना है, "ये नतीजे नर और मादा के बारे में घुमक्कड़ आदि मानव के बारे में जो हमें जानकारी है, उसके अनुरूप हैं. खेतिहर समाज में बदलने के बाद इंसान का जो उभार हुआ उसकी तुलना में वह समाज ज्यादा समतावादी था."
इसके संकेत साहित्य और ऐतिहासिक संदर्भों में भी खूब मिलते हैं कि इंसान ने जब बस्तियां बसा कर रहना शुरू किया तब महिला और पुरुषों के संबंधों का आयाम बहुत बदला. घुमक्कड़ जीवों में महिलाओं की भूमिका ज्यादा दमदार और पुरुषों के बराबर होने के ही अधिक संकेत मिलते हैं.