दिल्ली वालों को रोजाना एक घंटा भी आराम का नहीं मिलता
एक नई रिपोर्ट ने दिल्ली समेत कई भारतीय शहरों पर प्रदूषण के असर को एक नए नजरिए से पेश किया है. रिपोर्ट दिखाती है कि प्रदूषण का इन शहरों में रहने वालों के जीवन की गुणवत्ता पर कितना बुरा असर पड़ रहा है.
क्या हैं आरामदायक घंटे
आरामदायक घंटे यानी वो समय जब किसी भी शहर का तापमान 18 से 31 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है. इसके बारे में अहमदाबाद के सीईपीटी विश्वविद्यालय और भारतीय जलवायु टेक स्टार्टअप 'रेस्पीरेर लिविंग साइंसेज' ने मिल कर एक नया अध्ययन किया है.
दिल्ली में नहीं आराम
रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली को साल के 8,760 घंटों में से सिर्फ 2,210 ऐसे घंटे मिलते हैं जो तापमान के लिहाज से आरामदायक होते हैं. लेकिन इनमें से 1,951 घंटे (88 प्रतिशत) ऐसे होते हैं जिनमें वायु की गुणवत्ता खराब होती है. दिल्ली वालों को साल में सिर्फ 259 (तीन प्रतिशत) घंटे ऐसे मिलते हैं जिनमें तापमान आरामदायक होता है और वायु की गुणवत्ता भी अच्छी होती है. यानी एक दिन में औसतन सिर्फ 42 मिनट.
चेन्नई का भी यही हाल
रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली अकेला ऐसा भारतीय शहर नहीं है जो इस समस्या से जूझ रहा है. राष्ट्रीय राजधानी की ही तरह चेन्नई के आरामदायक घंटों में से भी करीब 88 प्रतिशत घंटों पर वायु प्रदूषण का असर रहता है.
बेंगलुरु का हाल बेहतर
बेंगलुरु का हाल दिल्ली से काफी बेहतर बताया गया है. कर्नाटक की राजधानी में साल में 8,100 से भी ज्यादा घंटे ऐसे मिलते हैं जिनमें वायु की गुणवत्ता ठीक होती है और तापमान के लिहाज से आरामदायक घंटों पर खराब एक्यूआई की न्यूनतम छाया पड़ती है. इसी तरह अहमदाबाद को भी दिल्ली से ज्यादा इस्तेमाल करने लायक घर से बाहर के हालात मिलते हैं.
मेट्रो शहरों पर दोहरा असर
रिपोर्ट दिखाती है कि विशेष रूप से भारत के मेट्रो शहरों में जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण का दोहरा असर बढ़ता जा रहा है. इससे पहले भी कई अध्ययन यह दिखा चुके हैं कि इन दोनों कारणों की वजह से इन शहरों में जीवन की गुणवत्ता और लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है.
पारंपरिक तरीकों से नहीं बन रही बात
इन हालात को देखते हुए इस रिपोर्ट में घर के अंदर के हालात को भी और बेहतर बनाने के उपाय सुझाए गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक पूरी तरह से बंद और वातानुकूलित स्थान हों या बेरोक प्राकृतिक वेंटिलेशन वाले स्थान, दोनों ही तरीके अब भारतीय शहरों की मांग को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. प्रस्तावित किया गया है कि पर्स्नलाइज्ड एनवायरनमेंटल कंट्रोल सिस्टम्स (पीईसीएस) का इस्तेमाल करना चाहिए.
क्या है पीईसीएस
पीईसीएस यानी तापमान का नियंत्रण करने के स्थानीय साधन, जैसे निजी पंखे, रेडिएंट पैनल और स्थानीय वेंटिलेशन सिस्टम आदि. इनसे ऊर्जा की भी बचत होती है. रिपोर्ट में दिखाया गया है कि अगर इमारतें बनाने में पीईसीएस का इस्तेमाल किया जाए तो दिल्ली में 68 प्रतिशत, अहमदाबाद में 70 प्रतिशत और चेन्नई में 72 प्रतिशत ऊर्जा बचत की जा सकती है.