कबसे हैं दुनिया में क्वीयर लोग
१७ जुलाई २०२५साल 1476 में लियोनार्डो द विंची (1452–1519) महज 24 साल के थे. उस समय इटली के शहर फ्लोरेंस के नैतिकता विभाग ने उनके खिलाफ एक जांच शुरू की. कारण- किसी अज्ञात व्यक्ति ने उन पर यह गंभीर आरोप लगाया था कि उन्होंने एक 17 वर्षीय पुरुष यौनकर्मी के साथ शारीरिक संबंध बनाए हैं. हालांकि, प्रमाणों की कमी के चलते यह मामला आगे नहीं बढ़ पाया और जांच बंद कर दी गई.
क्वीयर इतिहास पर किताब लिखने वाले जर्मन साहित्यिक इतिहासकार डीनो हाइकर बताते हैं कि ऐसे कई समकालीन स्रोत हैं जिनसे साबित होता है कि लियोनार्डो का पुरुषों के प्रति आकर्षण था. उनकी जिंदगी में ऐसा ही एक खास शख्स था, जियान जियाकोमो कैप्रोत्ती. जो कि लियोनार्डो से 28 साल छोटा था और वह उसे प्यार से सलाय कहकर बुलाते थे. सलाय यानी "छोटा शैतान.” वह दोनों कई सालों तक साथ भी रहे थे.
कुछ साल पहले, इटली के कला इतिहासकारों ने दावा किया कि मोनालिसा की पेंटिंग असल में लीसा डेल जियोकोंडो (जो एक व्यापारी की पत्नी थीं) की नहीं, बल्कि जियान जियाकोमो कैप्रोत्ती (सलाय) की है. सलाय कई बार लियोनार्डो के लिए मॉडल बने थे और शोधकर्ताओं का कहना है कि मोनालिसा के चेहरे में सलाय की झलक साफ दिखती है. इतना ही नहीं, कुछ इतिहासकारों ने तो यह भी दावा किया है कि मोनालिसा की आंखों में "एल” और "एस” अक्षर साफ देखे जा सकते हैं. पेंटिंग में "मोन सलाय” लिखा होने के संकेत भी मिले हैं, जो न सिर्फ सलाय को संबोधित करता है, बल्कि यह शब्द "मोनालिसा” शब्द का दूसरा रूप भी हो सकता है.
लियोनार्डो की जीवनी लिखने वाले पहले लेखक, जॉर्जियो वसारी ने 1550 में लिखा कि पेंटर को सुंदर लड़के में "अजीब सी खुशी” मिलती थी. यह "अजीब” शब्द एक तरह से लियोनार्डो की क्वीयर पहचान को छिपाने के लिए इस्तेमाल किया गया था.
बाइबल के शहर सोडोम से निकला 'सोडोमी' शब्द
डीनो हाइकर का मानना है, "जब समाज का बहुमत तय करता है कि क्या "सामान्य” की श्रेणी में आएगा और क्या "असामान्य” होगा, और केवल दो ही लिंगों (पुरुष और महिला) के ढांचे को मान्यता दी जाती है. तो इससे वे लोग परेशान होते हैं, जो बहुमत का हिस्सा नहीं हैं और इस ढांचे में फिट नहीं होते हैं.”
अपनी किताब में उन्होंने बताया है कि इतिहास में क्वीयर, ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी लोगों को कितनी कठोर और अमानवीय सजाएं दी जाती थी. उन्हें "प्राकृतिक नियमों के खिलाफ” जीने वाला कहा जाता था और उन्हें जंजीरों में बांधना, पत्थर मार-मार कर मार डालना, शरीर के अंग काट देना और कई बार तो जिंदा ही जला दिया जाता था.
इन भयानक सजाओं को सही ठहराने के लिए अक्सर बाइबल का सहारा लिया जाता था, खासकर सोडोम और गोमोरा की कहानी का. ऐसा कहा जाता था कि इन शहरों को ईश्वर ने "पापी व्यवहार” के कारण नष्ट कर दिया था. इसी से "सोडोमी” शब्द भी आया, जिसे लम्बे समय तक समलैंगिकता के लिए अपमानजनक तरीके से इस्तेमाल किया गया.
इस कहानी को सैकड़ों सालों तक क्वीयर लोगों को बदनाम करने और उन्हें समाज से बाहर करने के लिए आधार बनाया गया. साल 1512 में स्पेनिश विजेता, वास्को नुनेज दे बालबोआ ने अमेरिका में आदिवासी लोगों पर "सोडोमी का पाप” करने का आरोप लगाकर अपने कुत्तों से मरवा दिया.
प्राचीन समाजों में प्रेम के कई रूप
हालांकि, इतिहास में क्वीयर लोगों को अत्याचार का शिकार बनाया गया है. लेकिन कुछ पुराने समाज ऐसे भी थे, जहां क्वीयरता आम थी. जैसे कि प्राचीन समय में यह सामान्य बात हुआ करती थी कि पुरुष शादीशुदा होने के बावजूद भी किसी पुरुष प्रेमी के साथ संबंध में हो. रोम के सम्राट, हैड्रियन अपने प्रेमी एंटिनॉयस की मृत्यु से इतने दुखी हो गए थे कि उन्होंने उसके मरने के बाद उसे ईश्वर तक घोषित कर दिया था. उन्होंने उसकी याद में कई मूर्तियां और मंदिर भी बनाए थे.
ग्रीक दार्शनिक, अरस्तु ने लिखा था कि क्रीट द्वीप पर एक अनोखी परंपरा है, जिसे पेडरैस्टी कहा जाता है. इसमें एक पुरुष, एक युवा लड़के को यौन शिक्षा देने के लिए अपने घर लाता था. हाइकर ने बताया, "उस समय युवा लड़कों से यौन संबंधनो की अपेक्षा रखा आम बात हुआ करती थी. समाज में इसे बुरे नजरिये से नहीं देखा जाता था.”
इसके साथ ही महिलाओं का आपसी प्रेम भी प्राचीन समय में आम बात थी. लेसबोस द्वीप की कवयित्री साफो ने अपनी कविताओं में स्त्री सौंदर्य और स्त्री प्रेम की सुंदरता का गुणगान किया है. यह विविधता सिर्फ इंसानों में नहीं, बल्कि देवी-देवताओं की कहानियों में भी हुआ करती थी. जीउस, जिन्हें देवताओं का राजा और क्विरनेस का जीता जागता उदाहरण माना जाता है. हालांकि उस समय "क्वीयर” शब्द नहीं था, लेकिन वह अपने पसंद के साथ संबंध बनाने के लिए कोई भी रूप धारण कर लेते थे, चाहे वह स्त्री हो या जानवर और एक बार तो बादल भी बन गए थे.
हाइकर बताते हैं कि प्राचीन समय में पुरुषों का दूसरे पुरुषों या लड़कों के साथ यौन संबंध बनाना कोई गलत बात नहीं मानी जाती थी, जब तक कि वह "सक्रिय भूमिका” निभा रहे हो. लेकिन जो पुरुष "ग्राही भूमिका” (यानी जिसके साथ संभोग किया जा रहा है) में होते थे, उन्हें कमजोर और निचले दर्जे का माना जाता था. उन्हें समाज में हीन और अपमानजनक नजरों से देखा जाता था. रोमन साम्राज्य में लोग अपने राजनीतिक विरोधियों को बदनाम करने के लिए ऐसे आरोप लगाते थे कि वे यौन संबंधों में "पैसिव” हैं. जिससे कि समाज में उनकी छवि को हानि पहुंचती थी.
यूरोप बन रहा एलजीबीटीक्यू समुदाय का सुरक्षित ठिकाना
प्रकृति के खिलाफ मानते थे
जैसे-जैसे ईसाई धर्म फैला, वैसे-वैसे समाज में समलैंगिक प्रेम को लेकर सहिष्णुता खत्म होने लगी. बिशप और बेनेडिक्टिन साधु, पेट्रस डेमियानी (1006–1072) जो कि 11वीं सदी के सबसे प्रभावशाली धार्मिक नेताओं में से एक माने जाते हैं. उन्होंने समलैंगिकता और यौन संबंधों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया, खासकर चर्च और मठों के अंदर फैलते यौन व्यवहार को लेकर उन्होंने लिखा, "सोडोमी का गंदा कैंसर अब चर्च के भीतर तक फैल चुका है. यह एक जंगली जानवर की तरह मसीह के अनुयायियों में बेकाबू होकर कहर बरपा रहा है.” पेट्रस मानते थे कि सोडोमी (समलैंगिक संबंध) इंसानी इच्छा का नहीं, बल्कि शैतानी ताकतों का नतीजा है.
जापान के समुराई योद्धाओं और चीन के शाही दरबार में क्वीयरता को लेकर रवैया काफी सहज था. पुरुषों के बीच समलैंगिक प्रेम एक आम बात थी. साल 1549 में जेसुइट पादरी फ्रांसिस्को दे जेवियर ने लिखा, "बौद्ध भिक्षु प्रकृति के खिलाफ अपराध करते हैं और वे इसे नकारते भी नहीं. बल्कि खुलेआम स्वीकार करते हैं.”
मशहूर एलजीबीटीक्यू+ हस्तियां
बाद के समय में, कई एलजीबीटीक्यू+ व्यक्ति, जिनमें से कुछ राजघरानों से भी थे. उन्होंने काफी प्रसिद्धि हासिल की.
डीनो हाइकर की किताब में कुछ ऐतिहासिक एलजीबीटीक्यू+ हस्तियों के नाम शामिल हैं, जिन्होंने अपने समय में अपनी पहचान के साथ जीने की कोशिश की. जैसे प्रसिद्ध रूसी संगीतकार- प्योत्र इलिच त्चाइकोव्स्की (1840–1893), मशहूर आयरिश लेखक- ऑस्कर वाइल्ड (1854–1900) और प्रभावशाली अमेरिकी लेखक- जेम्स बाल्डविन (1924–1987) और दो आयरिश महिलाएं- एलेनर बटलर और सारा पोंसनबी. जिन्होंने करीब 1780 में वेल्स की एक एकांत घाटी में साथ रहने का निर्णय लिया, उन्हें संदेह की नजर से देखा जाता था और लोग उन्हें "लेडीज ऑफ ल्लनगोलेन” भी कहकर बुलाते थे. हालांकि, ये सभी लोग अपने तरीके से खुशी और आजादी की तलाश करने में लगे थे.
ऐन लिस्टर (1791–1840) एक अंग्रेज जमींदार थीं, जिन्होंने अपनी जिंदगी के अनुभवों को डायरियों में लिखा. 2011 में उनकी डायरी को यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर' में शामिल किया गया. इतिहासकार हाइकर बताते हैं, "इन 26 किताबों में उन्होंने विस्तार से समलैंगिक संबंधों और महिलाओं के साथ अपने प्रेम संबंधों के बारे में लिखा है.” लिस्टर ने एक गुप्त कोड तैयार किया था ताकि कोई अनजान व्यक्ति उनकी डायरी को समझ न सके. उनकी ये गुप्त लेखन शैली 1930 तक पूरी तरह पढ़ी नहीं जा सकी थी. उनके गांव में लोग उन्हें अक्सर "जेंटलमैन जैक” कहकर बुलाते थे. उनकी डायरी ने ब्रिटेन में जेंडर स्टडीज और महिलाओं की कहानियों को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
दुनियाभर में तीसरे लिंग की मान्यता
चाहे दक्षिण एशिया के हिजड़े हों, ताहिती के महु हो, मेक्सिको के जापोटेक समुदाय के मक्सेस, या उत्तरी अमेरिका के जूनी समुदाय के लहमानास. अलग-अलग संस्कृतियों में हजारों वर्षों से ऐसे लोग मौजूद रहे हैं, जो खुद को न पूरी तरह से पुरुष मानते हैं और न ही महिला. वह खुद को तीसरे लिंग का मानते है. इतिहासकार हाइकर ने कहा, "आज, जब लिंग को सिर्फ पुरुष और महिला तक सीमित कर दिया गया है, वह असल में बहुत संकीर्ण है. प्राचीन समाजों में लिंग की पहचान कहीं ज्यादा विविध हुआ करती थी.” उन्होंने आगे बताया कि जैसे जूनी समुदाय में लिंग जन्म से तय नहीं होता, बल्कि सामाजिक निर्माण से तय होता है यानी लिंग समाज के अनुसार बनता है, न कि केवल शरीर से.
आज, जर्मनी में तीसरे लिंग को "डाइवर्स” (यानी विविध) कहा जाता है. इतिहासकार हाइकर कहते हैं, "क्वीयर लोगों को, खासकर जर्मनी में, उन आजादियों के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है, जिनका पहले की पीढ़ियां सिर्फ सपना ही देख सकती थीं.” साल 1994 में ‘पैरा 175' (जो पुरुषों के बीच यौन संबंधों को अपराध मानता था) को आखिरकार दंड संहिता से हटा दिया गया. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिल गई है और यौन भेदभाव अब कानूनन अपराध है. लेकिन हाइकर ने सचेत करते हुए कहा, "यह उपलब्धियां सदा के लिए नहीं हैं. इन्हें बनाए रखने के लिए इन्हे बचाना भी उतना ही जरूरी है, खासकर तब, जब कुछ लोग इसे छीनने की कोशिश करें.”