श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल: जनाक्रोश ने कैसे पलट दी सरकारें
श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में चार साल के भीतर जनता के गुस्से ने सरकार पलट दी. इन तीनों देशों में एक जैसा पैटर्न देखने को मिला, जहां लोगों ने भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
श्रीलंका में आर्थिक संकट और राष्ट्रपति का इस्तीफा
साल 2022 में श्रीलंका में आर्थिक संकट के कारण देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए. सरकार के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर आई और उसने राष्ट्रपति भवन, संसद भवन को अपने कब्जे में ले लिया. महंगाई, बेरोजगारी, ईंधन और दवाइयों की किल्लत ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया था. लोगों ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को ना सिर्फ सत्ता से खदेड़ दिया, बल्कि उनके घरों को भी निशाना बनाया.
बांग्लादेश का छात्र आंदोलन, हसीना को देश छोड़ना पड़ा
बांग्लादेश में छात्रों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन उन नियमों के खिलाफ शुरू हुए थे जो योग्यता के आधार पर सिविल सेवा नौकरियों की संख्या को सीमित करते थे. 2024 के जुलाई में ये विरोध प्रदर्शन एक बड़े पैमाने पर देशव्यापी विद्रोह में बदल गए, जिसके बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भारत भागना पड़ा, हिंसक विरोध प्रदर्शनों में सैकड़ों लोग, जिनमें ज्यादातर छात्र थे मारे गए.
नेपाल में जेन जी का विरोध, प्रधानमंत्री का इस्तीफा
नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ युवा सड़कों पर उतर आए और 8 सितंबर, 2025 को हुई हिंसा में कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हुए. युवाओं के आंदोलन के तूफान में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार उखड़ गई. नेपाल के युवा सिर्फ सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं बल्कि वे बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के मुद्दे पर भी बेहद नाराज हैं.
इंडोनेशिया में भी विरोध प्रदर्शन
हाल के जन आंदोलन ने क्षेत्र के अन्य देशों को भी हिलाकर रख दिया है, इनमें इंडोनेशिया भी शामिल है, जहां अगस्त के आखिर में सांसदों के भत्तों के खिलाफ छात्र सड़कों पर उतर आए. इन विरोध प्रदर्शनों में कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई है.
क्यों नाराज हैं दक्षिण एशियाई देशों के युवा
दक्षिण एशिया में हर एक विरोध आंदोलन एक खास शिकायत से शुरू हुआ जो बाद में भड़क उठा और आखिर में सरकार या उसके नेताओं की अस्वीकृति पर समाप्त हुआ. कई मायनों में विरोध आंदोलनों में एक समानता है: सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग और एक जड़ राजनीतिक व्यवस्था के प्रति निराश लोगों का आक्रोश, जिसे वे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, बढ़ती असमानता और आर्थिक गैरबराबरी के लिए जिम्मेदार मानते हैं.
नेताओं और नीतियों से नाराज लोग
शिकागो विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर पॉल स्टैनिलैंड कहते हैं, "लोगों में सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग के बारे में यह धारणा कि वे भ्रष्ट हैं और आगे बढ़ने का उचित रास्ता दिखाने में अप्रभावी हैं. इसी कारण बड़े संकट पैदा हो रहे हैं."