गैंग्स ऑफ भरतपुर: 35 साल पुराना एनकाउंटर मामला
२२ जुलाई २०२०इन पुलिसकर्मियों ने 21 फरवरी 1985 को भरतपुर में हुई कथित मुठभेड़ में राजा मान सिंह समेत दो अन्य लोगों की हत्या कर दी थी. इस मामले में डीएसपी और एसएचओ समेत 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया था, जिनमें से तीन की मौत हो चुकी है, जबकि चार अभियुक्तों को कोर्ट ने बरी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस मुकदमे की सुनवाई मथुरा जिला जज की अदालत में हो रही है. एनकाउंटर की यह घटना न केवल उस समय का एक बहुचर्चित मामला था, बल्कि इसके पीछे की कहानी भी बेहद चौंकाने वाली थी. विवाद की शुरुआत बेहद मामूली राजनीतिक वजह से हुई लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि अगले ही दिन भरतपुर के पूर्व राजा मान सिंह और उनके दो साथियों को पुलिस वालों ने कथित मुठभेड़ में मार गिराया.
गैंग्स ऑफ भरतपुर
इस घटनाक्रम की शुरुआत 20 फरवरी 1985 को हुई थी जब राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर की भरतपुर में चुनावी सभा होने वाली थी. राजा मान सिंह भरतपुर जिले की डींग विधानसभा चुनाव से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे, जबकि उनके सामने कांग्रेस के ब्रजेंद्र सिंह उम्मीदवार थे. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस समर्थकों ने डींग स्थित किले पर लगा झंडा उतारकर कांग्रेस पार्टी का झंडा लगा दिया था. किले के बुर्ज पर रियासत का प्रतीक झंडा उतारना राजा मानसिंह को नागवार गुजरा और उन्होंने मुख्यमंत्री की जहां चुनावी सभा हो रही थी, सुरक्षा घेरा तोड़ते हुए, वहां पहुंचे और अपनी गाड़ी से न सिर्फ मंच को तोड़ दिया, बल्कि हेलीकॉप्टर में भी जीप से टक्कर मारकर उसे क्षतिग्रस्त कर दिया.
उस वक्त मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर हेलीकॉप्टर से सभा स्थल की ओर जा चुके थे लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही राजा मानसिंह ने मंच को अपनी गाड़ी से ध्वस्त कर दिया. मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को टूटे हुए मंच से ही सभा को संबोधित करना पड़ा लेकिन इसके लिए उन्होंने भरतपुर में तैनात पुलिस अफसरों की जमकर खिंचाई की. पुलिस ने राजा मानसिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया. अगले दिन यानी 21 फरवरी को भरतपुर के मंडी में तत्कालीन डीएसपी कान सिंह का राजा मानसिंह से सामना हुआ और यहीं हुई कथित मुठभेड़ में 64 साल के राजा मानसिंह के अलावा उनके साथी सुमेर सिंह और हरि सिंह की मौत हो गई थी.
इस मुठभेड़ के बाद पुलिस पर जमकर सवाल उठे और उसकी आलोचना हुई. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, 21 फरवरी को जैसे ही राजा मानसिंह अपने चुनाव कार्यालय से डींग थाने के सामने से गुजरे, डीएसपी कान सिंह भाटी की सरकारी गाड़ी के ड्राइवर महेंद्र ने पुलिस वाहन को राजा मानसिंह की जीप के सामने खड़ा कर दिया. इसके अलावा कुछ और पुलिस वाहन को वहां खड़ा करके राजा मानसिंह का काफिला रोक दिया गया. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, इसके बाद लोगों को सिर्फ फायरिंग सुनाई दी और बाद में जीप में राजा मान सिंह, सुमेर सिंह और हरी सिंह के शव मिले थे.
सीबीआई को सौंपा गया मामला
इस घटना के बाद डींग थाने के एसएचओ वीरेंद्र सिंह ने राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह सिरोही के खिलाफ 21 फरवरी को ही धारा 307 के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई और उसी दिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि अगले दिन यानी 22 फरवरी को विजय सिंह को जमानत मिल गई और उसी दिन राजा मान सिंह का दाह संस्कार किया गया. पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता नारायन सिंह बताते हैं कि 23 फरवरी को विजय सिंह सिरोही ने डींग थाने में डीएसपी कान सिंह भाटी, एसएचओ वीरेंद्र सिंह समेत कई पुलिसकर्मियों के खिलाफ राजा मान सिंह समेत दो अन्य लोगों की हत्या का मामला दर्ज कराया. घटना ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया और 28 फरवरी को घटना की जांच सीबीआई को सौंप दी गई. काफी दिन तक यह मामला जयपुर में सीबीआई की विशेष अदालत में भी चला लेकिन साल 1990 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर यह मुकदमा मथुरा जिला न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया.
इस मामले की आखिरी सुनवाई मथुरा में जिला एवं सत्र न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर की अदालत में 9 जुलाई को हुई थी. अदालत ने 21 जुलाई को फैसले पर सुनवाई की तिथि निर्धारित की थी. फैसले में अदालत ने डिप्टी एसपी कान सिंह भाटी और डींग थाने के तत्कालीन एसएचओ वीरेंद्र सिंह समेत 11 पुलिसकर्मियों को आईपीसी की धारा 148, 149 और 302 के तहत दोषी करार दिया है. फैसले के बाद दोषी करार दिए गए सभी अभियुक्तों को हिरासत में ले लिया गया. 35 साल तक चले इस मुकदमे में सीबीआई ने कुल 18 अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी. इनमें से तीन अभियुक्त एएसआई नेकीराम, कांस्टेबल कुलदीप और कांस्टेबल सीताराम की मौत हो चुकी है जबकि चार अभियुक्तों को कोर्ट ने बरी कर दिया है.
यूं बदली राजनीति
राजा मान सिंह भरतपुर रियासत के महाराज कृष्ण सिंह के तीसरे पुत्र थे और आजादी के बाद से ही राजनीति में सक्रिय थे. उन्होंने इंग्लैंड में उच्च शिक्षा हासिल की और लंदन से मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री लेकर देश लौटे थे. जनता के बीच वे इतने लोकप्रिय थे कि निर्दलीय लड़ते हुए भी वे लगातार चुनाव जीतते रहे. साल 1885 में विधानसभा चुनाव के दौरान डींग क्षेत्र से राजा मान सिंह के खिलाफ कांग्रेस ने रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ब्रजेंद्र सिंह को मैदान में उतारा. चुनाव के दौरान ही जब कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके झंडे का अपमान किया, जो उन्हें नागवार गुजरा.
इस हत्याकांड ने उस समय राजस्थान में न सिर्फ राजनीतिक हलचल पैदा कर दी, बल्कि लोगों में कांग्रेस के खिलाफ जबर्दस्त गुस्सा पैदा हो गया. न सिर्फ राजस्थान, बल्कि यूपी के भी जाट बहुल इलाकों में कांग्रेस को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा. तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ इतना रोष फैल गया कि पार्टी को अपना मुख्यमंत्री तक बदलना पड़ा. लोगों के गुस्से को देखते हुए कांग्रेस ने तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को इस्तीफा देने का निर्देश दिया और उसके बाद हीरालाल देवपुरा को राजस्थान का मुख्य मंत्री बनाया गया.
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