"नोस्फेरातु": शैतान के 100 साल
ड्रैक्युला की कहानी पर आधारित जर्मन फिल्म "नोस्फेरातु" को दुनिया की सबसे पहली हॉरर फिल्मों में गिना जाता है. 100 साल पहले पर्दे पर आई इस फिल्म की कहानी एक बार फिर बयान की जा रही है.
एक उत्पीड़ित शैतान की कहानी
"नोस्फेरातु: अ सिम्फनी ऑफ हॉरर" 1922 में पर्दे पर आई थी. अभिनेता मैक्स श्रेक ने नोस्फेरातु नाम के वैम्पायर का किरदार निभाया था. यह शैतान काफी दुबला-पतला था, उसके कान अप्राकृतिक रूप से पैने थे, उसके दांत भी उतने ही पैने थे और उसके हाथों के नाखून लंबे और घुमावदार थे. यह रात को खून पीने वाले एक शैतान में बदल जाता था, जो शैतान होने के बावजूद सताया हुआ भी नजर आता था.
जहाज का आखिरी यात्री
नोस्फेरातु को एक ताबूत में एक जहाज पर लाया जाता है. जहाज की यात्रा के दौरान उसके चालक दल के सभी सदस्यों की मृत्यु हो जाती है. यहां तक कि जहाज का कप्तान और उसका सहायक भी मर जाते हैं. जहाज जब बंदरगाह पर पहुंचता है तो उस पर कोई भी नहीं होता, सिवाय एक शख्स के.
प्लेग और मृत्यु
नोस्फेरातु बंदरगाह वाले शहर में भी प्लेग और मृत्यु ले आता है. अब बस एक लड़की का खून ही उसे रोक सकता है. एक युवती अपने जीवन का त्याग कर देती है. नोस्फेरातु उसका खून पीना शुरू करने ही वाला होता है तब तक सुबह हो जाती है. सूरज की रोशनी से नोस्फेरातु जल कर धुंआ बन जाता है. वैम्पायरों पर आधारित अनगिनत फिल्मों और कहानियों में यही कहानी दोहराई गई है.
जर्मन अभिव्यक्ति की छाप
इस पोस्टर को बनाने वाले डिजाइनर एल्बिन ग्राउ को ही एक वैम्पायर फिल्म बनाने का आईडिया आया था जिसके लिए उन्होंने फ्रेडरिक मुरनाऊ को मना लिया. ग्राउ आगे जा कर फिल्म के कला निदेशक बने और फिल्म के मुखौटों से लेकर पोशाक और फिल्म के प्रचार के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ग्राफिक्स भी बनाए. ये सारी रचनाएं उन्होंने उस समय प्रचलित जर्मन अभिव्यक्ति के अनुकूल बनाईं.
सड़कों पर आतंक
बर्लिन की राष्ट्रीय गैलरी में इस फिल्म पर लगी प्रदर्शनी में फिल्म के प्रचार के लिए बनाई गई असली सामग्री मौजूद है. इस सामग्री में यह पोस्टर भी शामिल है. इसके अलावा वैम्पायर से जुड़े विश्वासों पर एक लेख भी प्रदर्शनी में रखा गया है. एक बुकलेट भी छापी गई थी जिसमें एक डरावने फिल्मी तजुर्बे का वादा किया गया था.
डरावनी कलाकृतियां
बर्लिन की प्रदर्शनी में फिल्म के दृश्यों के साथ अल्फ्रेड कुबिन, फ्रांसिस्को डे गोया और केस्पर डेविड फ्रेड्रिक जैसे चित्रकारों द्वारा बनाए गए चित्र भी लगाए गए हैं. यह चेक ग्राफिक कलाकार फ्रांतिसेक कोबलिहा का बनाया चित्र है, जिन्होंने एडगर ऐलन पो की डरावनी कहानियों से प्रेरित हो कर कई डरावने चित्र बनाए थे.
क्या यह चमगादड़ वैम्पायर बनने वाला है?
ऑस्ट्रियाई चित्रकार फ्रांज सेडलसेक द्वारा बनाई यह पेंटिंग "सॉन्ग इन द ट्वाइलाइट" तुलनात्मक रूप से शांत लगती है. लेकिन यह दृश्य भ्रामक भी हो सकता है. कमरे में उड़ते हुए चमगादड़ की कोई परछाई नहीं है और हो सकता है वो अंधेरा होते ही खून पीने वाले एक शैतान में बदल जाए. (सिल्के वुंश)