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समाज

संदिग्ध आतंकी अब रिफ्यूजी बनकर है खुश

१५ अगस्त २०१८

संदिग्ध आतंकियों को जेल होने के बाद अगर रिहाई मिल भी जाए तो दोबारा जिंदगी शुरू करना मुश्किल होता है. लेकिन कुछ ऐसे हैं जिन्होंने न सिर्फ दोबारा कामकाज शुरू किया बल्कि जिंदगी के महत्व को भी समझा है.

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अहमद अहजाम उरुग्वे में पेस्ट्री और मिठाइयां बेच रहे हैं.तस्वीर: Getty Images/AFP/P.P Brune

एक वक्त सीरिया में जौहरी का काम करने वाले अहमद अहजाम को जब संदिग्ध आतंकी मानकर जेल में डाला गया तो उन्हें अपनी जिंदगी से उम्मीदें खत्म हो गईं. उन्होंने ग्वांतानामो बे की जेल में 12 साल बड़ी मुश्किलों में काटे. इसका अंत हुआ अब जाकर हुआ है और अब वह उरुग्वे में मिठाई बेच रहे हैं.   

सीरियाई शहर अलेप्पो में पैदा हुए अहजाम छह और कैदियों के साथ चार साल पहले ग्वांतानामो बे उरुग्वे आए. तब अमेरिका और उरुग्वे के बीच सहमति बनी थी कि ऐसे संदिग्धों को रिहाई दे दी जाए. 2002 से अहजाम ग्वांतानामो बे की जेल में कैद थे और अब उन्हें उरुग्वे में पेस्ट्री-मिठाई का ठेला लगाने की इजाजत मिली है. 

वह इसे अपना दूसरा जन्म मानते हैं और उरुग्वे की सरकार का शुक्रिया अदा करते हैं. वह कहते हैं, ''मेरे लिए यह सपना पूरे होने जैसा है. मैं उरुग्वे के लोगों को धन्यवाद कहना चाहता हूं जिन्होंने मुझे स्वीकार किया.''

''अहमद अहजाम, अरब गैस्ट्रोनॉमी'' नाम के ठेला मोंटोवीडियो फार्मर्स मार्केट में हैं जहां उरुग्वे की कैंडी, मिठाई और पेस्ट्री बिकती है. सोशल मीडिया के महत्व को समझते हुए वह फेसबुक के जरिए अपना प्रचार कर रहे हैं और मिठाइयां बेच रहे हैं.

90 की उम्र में फिर रिफ्यूजी बनना पड़ा

अहजाम की कहानी दूसरे संदिग्धों जैसी ही है. दरअसल, अमेरिका को शक था कि अहजाम अफगानिस्तान की तोरा बोरा पहाड़ियों पर रहा है और अल-कायदा व ओसामा बिल लादेन से जुड़ा हुआ है. सैन्य विभाग के मुताबिक, साल 2002 में उसे कंधार में गिरफ्तार किया गया और अमेरिकी अधिकारियों को सौंपा गया. इसके बाद से वह ग्वांतानामो की जेल में रह रहा था.

वापस नहीं लौटना चाहते सीरियाई रिफ्यूजी

जांच शुरू हुई तो अहजाम जैसे कई संदिग्धों के खिलाफ सबूत नहीं मिले. जब अमेरिका ने ऐसे संदिग्धों को रिहा करने का फैसला किया तो उरुग्वे से पनाह देने के बारे में सहमति बनी. बदले में उरुग्वे को आर्थिक सहायता मिली. कई कैदियों को उरुग्वे के माहौल के मुताबिक ढलने में दिक्कतें आईं और वे अपने वतन वापस लौट गए. लेकिन अहजाम यहां डटे रहे और काम करते रहे.

अहजाम के ठेले से पेस्ट्री खरीदने लोग कहते हैं, ''यह देखना सुखद है कि कैसे एक रिफ्यूजी खुशी-खुशी दूसरे देश में काम कर रहा है और अपने रास्ते ढूंढ रहा है. हर कोई जिंदगी जीना चाहता है.''          

वीसी/एनआर (एएफपी) 

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