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शिक्षा का मौलिक अधिकार

१ नवम्बर २००८

भारत में शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाएगा. इसके तहत छह से 14 साल के बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा दी जाएगी. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस विधेयक को मंज़ूरी दे दी है.

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छह से 14 साल तक मुफ़्त शिक्षातस्वीर: picture-alliance/ dpa

केंद्रीय मंत्रिमंडल से पास होने के बाद अब इसे संसद में दिसंबर में पेश किया जाएगा. वहां पारित होने के बाद संविधान के 86वें संशोधन के तहत शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल कर लिया जाएगा. इसके साथ ही सरकार का एक बड़ा वादा पूरा हो पाएगा.

वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पत्रकारों को जानकारी दी कि कई सतहों पर विचार विमर्श करने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शिक्षा के अधिकार के मसौदे को मंज़ूरी दे दी है. उन्होंने शिक्षा की दिशा में इसे बेहद अहम क़दम बताते हुए कहा कि इसके साथ ही शिक्षा संविधान के मौलिक अधिकारों में शामिल हो जाएगी. इस अधिकार के तहत केंद्र और राज्य सरकारों का ज़िम्मा होगा कि वह छह से 14 साल तक के बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराएं.

वित्त मंत्री ने इस मुद्दे पर ज़्यादा विवरण देने से इनकार कर दिया और कहा कि दिल्ली सहित कुछ राज्यों में चुनाव होने हैं और ऐसे में देखना होगा कि क़ायदे क्या कहते हैं. संभव है कि इसे चुनाव आयोग से पारित कराना पड़े.

इस प्रस्ताव पर लगभग दो साल तक माथापच्ची हुई, जिसके बाद योजना आयोग ने इस पर कुछ सवाल उठाए थे. बाद में इसे मंत्रियों के एक समूह के पास भेज दिया गया. इसमें वित्त मंत्री चिदंबरम के अलावा मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया और विज्ञान तकनीक मंत्री कपिल सिब्बल शामिल थे. इस समूह ने प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी और शिक्षा को मौलिक अधिकार में शामिल करने की सिफ़ारिश की.

जानकारों के मुताबिक़ इस योजना के तहत हर साल 10,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का ख़र्च आएगा और प्राइवेट स्कूलों में भी लगभग 25 फ़ीसदी सीटें ग़रीब घरों से आने वाले बच्चों के लिए सुरक्षित रखी जाएंगी.