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रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें बढ़ाई

३ मई २०११

महंगाई को काबू करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें बढ़ाईं. केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में 0.5 फीसदी का इजाफा किया. बचत खाते का ब्याज भी बढाया. इससे बाजार की नकदी सोखने में मदद मिलेगी.

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आरबीआई गवर्नर डी सुब्बारावतस्वीर: UNI

मंगलवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर डी सुब्बाराव ने ब्याज दरें बढ़ाने का एलान किया. उन्होंने उम्मीद जताई कि 2010-11 में देश के आर्थिक विकास की दर 8.6 फीसदी बनी रहेगी. सरकार का अनुमान नौ फीसदी विकास दर का है. रिजर्व बैंक ने माना है महंगाई की मार आम लोगों के साथ उद्योगों पर भी पड़ने लगी है. कच्चा माल और श्रम महंगा होने की वजह से मुश्किलें आ रही हैं. रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में इसीलिए इजाफा किया गया है.

रेपो रेट

रेपो रेट उस दर को कहा जाता है कि जिस पर रिजर्व बैंक व्यावसायिक बैंकों को अल्प अवधि का कर्ज देता है. मंगलवार को रेपो रेट में 50 बेसिक प्वाइंट की बढ़ोत्तरी की गई. व्यावसायिक बैंकों को अब 7.25 फीसदी की दर से रिजर्व बैंक को कर्ज चुकाना होगा.

रिवर्स रेपो रेट

रिवर्स रेपो रेट इसके उलट है जिसके आधार पर रिजर्व बैंक अन्य व्यावसायिक बैंकों से कर्ज लेता है. इस कर्ज पर रिजर्व बैंक ब्याज चुकाता है. रिवर्स रेपो रेट की दर 6.25 फीसदी कर दी गई है. बैंक ने बचत खाते पर मिलने वाले ब्याज की दर को भी बढ़ाकर चार फीसदी कर दिया है. उम्मीद है कि इससे लोग में बैंकों में सेविंग एकाउंट में पैसा जमा करने की इच्छा बढ़ेगी.

सीआरआर

कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) में कोई बदलाव नहीं किया गया है. सीआरआर छह फीसदी पर बना हुआ है. सीआरआर के तहत हर बैंक को अपनी कुल जमा पूंजी की एक निश्चित रकम आरबीआई के पास रखनी होती है. उदाहरण के लिए अगर किसी व्यावसायिक बैंक की जमा पूंजी में 100 रुपये का इजाफा होता है तो मौजूदा दर के अनुसार उसे छह रुपये रिजर्व बैंक के पास रखने होंगे.

डायन बनी है महंगाई

आरबीआई ने ये कदम महंगाई को नियंत्रित करने के लिए उठाए हैं. केंद्रीय बैंक बाजार में जरूरत से ज्यादा बह रही नकदी को सोखना चाहता है. रेपो रेट बढ़ाने से कर्ज महंगा हो सकता है. रिवर्स रेपो रेट से बैंकों में आरबीआई के पास पैसा जमा करने की चाहत बढ़ सकती है. जाहिर है अगर ऐसा हुआ तो बाजार में पैसा का बहाव कम होगा और महंगाई काबू में आ सकेगी.

अर्थशास्त्र की भाषा में मुद्रास्फीति या महंगाई उस अवस्था को कहा जाता है जब मुद्रा की क्रय शक्ति बेहद गिर जाती है, यानी मुद्रा का मूल्य गिर जाता है. विभिन्न कारणों से पनपने वाली महंगाई कई तरह की होती है. तेजी से विकास करती अर्थव्यवस्थाओं में हमेशा एक औसत किस्म की महंगाई बनी रहती है. लेकिन जरूरत से ज्यादा बढ़ने पर यही महंगाई आर्थिक विकास और सामाजिक तानेबाने को तहस नहस करने लगती है. भारत में इस वक्त महंगाई की दर 8.98 फीसदी है, जो सामान्य कही जाने वाली 5 से 6.5 फीसदी की दर से कहीं ज्यादा है. बीते दो साल से देश में महंगाई की यह डरावनी दर काबू होने के बजाय हल्की सी ऊपर नीचे ही हो रही है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: ए कुमार

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